दुराचार का परिणाम दुःख
दुराचार का परिणाम दुःख
दुराचार के समानार्थक शब्द हैं कुकर्म, दुष्कर्म, भ्रष्टाचार, अन्याय, निन्दनीय व्यवहार आजकल सामान्य धारणा है कि जो लोग अनैतिक साधनों से धन कमाते हैं वे सुखी देखे जाते हैं। इसके विपरीत जो मनुष्य इमानदारी आदि सदाचार से जीवन व्यतीत करते हैं वे प्रायः दुःखी, दरिद्र एवं चिन्ताकुल देखे जाते हैं। यह धारणा पूर्णतया गलत है। लोग प्रायः ऐसा निष्कर्ष अपने व्यक्तिगत दृष्टिकोण से, वर्तमान में दुराचारी की अस्थिर सुख-सुविधाओं को देखकर करते हैं।
दुराचार व्यक्ति को पतन के पथ पर ढकेल देता है। दुराचारी मनुष्य सर्वव्यापक, सर्वान्तर्यामी, न्यायकारी ईश्वर की दण्ड व्यवस्था से नहीं बच पाता है। यह दण्ड दुराचारी को इस जन्म में अथवा मृत्यु के बाद पुनः मनुष्य योनि में अथवा नीच योनियों में जाकर अवश्य मिलता है। भगवान मनु निम्न शब्दों में इसका समर्थन करते हैं : “ना धर्मश्चरितो लोके सद्यः फलति गौरिव । शनैरावर्त मानस्तु कर्तुर्मूलानि कृन्तति ।। मनु0 4/172
किया हुआ पाप पृथ्वी में बोये बीज के समान तत्काल ही फल नहीं देता किन्तु धीरे-धीरे फलीभूत होता है तथा पापकर्ता को जड़ मूल से उच्छेद (काट) कर देता है। दुराचार का परिणाम निःसन्देह दुःख है। इसका दण्ड दुराचारी को ही नहीं बल्कि उसके परिवार के सदस्यों को भी भोगना पड़ता है। फिर भी मनुष्य दुराचार, भ्रष्टाचार, अन्याय, दुष्कर्म आदि में रूचि लेते हैं। इसका कारण है वैदिक ज्ञान का अभाव, इन्द्रियों पर संयम न होना, भौतिकता की तरफ बहुत अधिक आकर्षण, ईश्वरीय कर्मफल व्यवस्था की अज्ञानता अथवा उसमें अविश्वास
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