Publisher Theme
I’m a gamer, always have been.
Rajni

महान् सेनानी राणा सांगा 12 अप्रैल जन्म दिवस

28

महान् सेनानी राणा सांगा 12 अप्रैल जन्म दिवस

राणा सांगा का पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था। उनका जन्म 12 अप्रैल,1484 को मालवा, राजस्थान मे हुआ था। राणा सांगा सिसोदिया (सूर्यवंशी राजपूत) राजवंशी थे।

राणा सांगा ने विदेशी आक्रमणकारियों के विरुद्ध सभी राजपूतों को एकजुट किया। राणा सांगा अपनी वीरता और उदारता के लिये प्रसिद्ध हुये।

एक विश्वासघाती के कारण वह बाबर से युद्ध हारे लेकिन उन्होंने अपने शौर्य से दूसरों को प्रेरित किया। राणा रायमल के बाद सन 1509 में राणा सांगा मेवाड़ के उत्तराधिकारी बने। इन्होंने दिल्ली, गुजरात, व मालवा मुगल बादशाहों के आक्रमणों से अपने राज्य की बहादुरी से ऱक्षा की।

उस समय के वह सबसे शक्तिशाली हिन्दू राजा थे। इनके शासन काल मे मेवाड़ अपनी समृद्धि की सर्वोच्च ऊँचाई पर था। एक आदर्श राजा की तरह इन्होंने अपने राज्य की ‍रक्षा तथा उन्नति की!

राणा सांगा अदम्य साहसी थे। एक भुजा, एक आँख खोने व अनगिनत ज़ख्मों के बावजूद उन्होंने अपना महान पराक्रम नहीं खोया, सुलतान मोहम्मद शासक माण्डु को युद्ध मे हराने व बन्दी बनाने के बाद उन्हें उनका राज्य पुनः उदारता के साथ सौंप दिया।

बाबर ने पानीपत के युद्ध को तो जीत लिया परन्तु हिन्दू समाज ने उसे केवल एक विदेशी, आक्रमणकारी तथा लुटेरे से अधिक स्वीकार न किया। बाबर के आगरा पहुंचने पर उसके अधिकारियों तथा सेना को तीन दिन तक भोजन नहीं मिला। घोड़ों को चारा भी उपलब्ध नहीं हुआ।

अबुल फजल ने स्वीकार किया है कि हिन्दुस्थानी बाबर से घृणा करते थे। इस विदेशी लुटेरे बाबर का अपने जीवन का महानतम संघर्ष खानवा के मैदान में मेवाड़ के शक्तिशाली शासक राणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) से हुआ।

राणा सांगा महाराणा कुंभा के पौत्र तथा महाराणा रायमल के पुत्र थे। वे अपने समय के महानतम विजेता तथा हिन्दूपति के नाम से विख्यात थे। वे भारत में हिन्दू-साम्राज्य की स्थापना के लिए प्रयत्नशील थे। उन्होंने मालवा तथा गुजरात पर अपना आधिपत्य स्थापित किया था।

बाबर के साथ इस संघर्ष के बारे में इतिहासकार लेनपूल ने लिखा है, “अब बाबर को ऐसे उच्च कोटि के कुछ योद्धाओं का सामना करना पड़ा जिनसे इससे पहले कभी टक्कर न हुई थी।”

इस भीषण युद्ध के प्रारंम्भ में ही बाबर की करारी हार हुई तथा उसकी विशाल सेना भाग खड़ी हुई। वास्तव में इस युद्ध में ऐसा कोई राजपूत कुल नहीं था जिसके श्रेष्ठ नायक का रक्त न बहा हो।

परन्तु बाबर भागती हुई अपनी सेना को पुन: एकत्रित करने में सफल हुआ। उसने अपने सैनिकों में मजहबी उन्माद तथा भविष्य के सुन्दर सपने देकर जोश भरा तथा लड़ने के लिए तैयार किया, जिसमें उसे सफलता मिली।

चन्देरी दुर्ग के रक्षक, राणा सांगा द्वारा नियुक्त मेदिनी राय ने 4,000 राजपूत सैनिकों के साथ संघर्ष किया। संख्या अत्यधिक कम होने पर भी केसरिया वस्त्र धारण कर सैनिकों ने अंतिम सांस तक संघर्ष किया।

Comments are closed.

Discover more from Theliveindia.co.in

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading