सुविचार
सुविचार
ढलना तो एक दिन है सभी को। चाहे इंसान हो या सूरज।
मगर हौसला सूरज से सीखो
जो रोज़ ढल के भी हर दिन नयी उम्मीद से निकलता है…
क्या खूब कहा है किसी ने – थक कर बैठा हूँ हार कर नहीं..!! सिर्फ बाज़ी हाथ से निकली है ज़िन्दगी नहीं!!
हे जिंदगी !! तेरी कैसी ये फिलोसफी है – एक इन्सान के आने’ की खबर नौ महीने पहले ही आ जाती है। पर जाने की खबर नौ सेकंड पहले भी नहीं आती। बंद लिफाफे में रखी चिट्ठी सी है ये जिंदगी.. पता नहीं अगले ही पल कौन सा पैगाम ले आये !!
इसलिये सदैव खुश रहिये
जो प्राप्त है वह पर्याप्त है।
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