सद-चिन्तन
🌻सद-चिन्तन🌻
हर मनुष्य सहानभूति का भूखा होता है l दु:ख में संवेदना,दया किसी कीमती दवा से कम नहीं होती है l इसलिए मनोवैज्ञानिकों ने इस ओर शोधकार्य करने भी शुरू कर दिए है l दया,करुणा, ममता,प्रेम आदि का हमारे मन एवं स्वास्थ्य पर असर पड़ता हैl आपत्ति के समय प्रेम के ; सांत्वना के दो शब्द शांति देते हैं l इसका अनुभव हर मनुष्य को होगा l इतना आभास या विश्वास कि किसी की सहानुभूति मेरे से हैं ; चाहे शारीरिक,आर्थिक या भौतिक रूप में वह सहानुभूति प्रकट हुई हो या नहीं l
कईं प्रसंग ऐसे पाए जाते हैं ; जब हम यह कहते हुए पाएं जातें हैं – अरे! आपके आने से एकदम वातावरण में महक आ गई lआपके शब्दों से शांति मिली ; साहस मिला l ये शब्द बताते हैं कि सहानुभूति,प्रेम और दया का मन और मस्तिष्क से गहन संबंध है l दु:ख में हमारी भूख मर जाती है l खुशी के समय हम दो रोटी ज्यादा खाते है ; यह सिद्ध करता है कि इन महान विचारों और गुणों का शरीर पर , मन पर कितना गहन असर पड़ता है l
कुछ मनोवैज्ञानिकों का कहना है – ” सहानुभूति लेने और देने वाले,दोनों की उम्र बढ़ती है l कुत्तों और बिल्लियों पर प्रयोग किए गए हैं ; उनसे यह सिद्ध हुआँ कि सहानुभूति का स्पर्श होते ही फेफड़े गरम हो जातें हैं l धमनियाँ अपने स्वाभाविक ताप पर स्थिर होने लगती है l रक्त का रंग निखरने लगता है l “
सहानुभूति अगर मानव हृदय का जन्मजात गुण न होता, तो सच मानिए संसार का नक्शा ही कुछ और होता l हमारा न केवल विकासक्रम रुक जाता ; बल्कि जीवन नरक जैसा भी बन जाता l कन्फ्यूशियस,फ्रांसिस, बेकन, तथा माओत्से तुंग आदि ने आरंभ में सहानुभूति को ठगी विद्या माना था, किन्तु बाद में जब जीवन के तत्वों और सत्त्वों की गहराई में उतरे, तो पता चला कि मनुष्य केवल सहानुभूति के कारण जिंदा है l इस सत्य का अनुभव हम अपने परिवार में भी कर सकते हैं l बच्चे को यदि रोज ताड़ना देना शुरू कर दीजिए ; आप देखिए सहानुभूति के अभाव में बच्चा पागलों जैसा हो जाएगा हर अहंकारी,घमंडी,पूंजीपति को अंत में मानवीय गुणों के आगे घुटने टेकते पाया गया है l आत्मा का भूख मिटाने के लिए सहानुभूति की भीख मागते पाया ही सुना है l क्रांतिकारी माओत्से तुंग सहानुभूति की एक बूंद के लिए लिए अंत तक तरसते रहेl
सहानुभूति के बारे में काक्स ने लिखा है – जब दूसरों की तरफ देखों तो संवेदना से काम लो,पर जब अपनी तरफ देखों तो सख्ती से काम लो l “
सहानुभूति की भावना मानसिक उत्थान की बड़ी प्रेरक शक्ति है l मानसिक रोगों की भारी दवा है l खुशी की बात है कि मनुष्य के लिए यह पूण्य निश्शुल्क और असीम है, अन्यथा इस महगाई के युग में यह भी खरच के तर्क उपस्थित कर सकती थी l
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