घर माता की युनिवर्सिटी है
घर : कुटुंब , परिवार ,समाज , राष्ट्र , विश्व , संसार मे
घर माता की युनिवर्सिटी है।
॥ सूयवसाद्भगवती हि भूया , अथो वयं भगवन्तः स्याम॥
॥ अद्धि तृणमध्य्ने विश्वदानीं , पिब शुद्धमुदकमाचरन्ती ॥
( ऋग्वेद : 1/164/40 )
अपनी संतानों को यदि सुशिक्षित बनाना है , तो ऋषियों की यही पुकार है । माताओं को ज्ञानवती बनाओ ! जो स्त्रियाँ सदाचारियों के साथ विवाह करके अपनी संतानों को संस्कारयुक्त बनाती हैं ,
वे समाज के गौरव में वृद्धि करती हैं …
उनका यह प्रदान गोमाता जैसा पवित्र होता है !
आज तो हमारे देश की युवतियों के लिए ज्ञान का कोई एक स्रोत होता है ,
तो वह है केवल टी. वी . सीरियल तथा नेट, सर्फीग ! चाहे छोटा पर्दा हो या बड़ा पर्दा , उसके ‘ एक्टर ‘ या ‘ एक्ट्रेस ‘ उनके शिक्षक हैं , गुरु हैं , मार्गदर्शक हैं , फ्रेन्ड हैं और फिलॉसोफर भी हैं !
साधारण हालचाल से लेकर , घर में पलीता लगाने में माहिर बन जाने की ट्रेनिंग , इन युवतियों को टी.वी. सीरियलों और फिल्मों से ही मिलती है । तभी तो वे कहती हैं पिन्टू ! नाचो बेटा तू चीज बड़ी है …
इस प्रकार माता बन चुकी युवतियाँ अपने नन्हे – मुन्ने बच्चों को बहकाती रहती हैं । अपनी सगी माँ के मुंह से ऐसी दुर्गंधयुक्त वाणी सुन – सुनकर बड़ा हुआ बालक , अपनी ‘ माताजी ‘ को कितना ‘ महान ‘ समझेगा ❓
शिवाजी को हिमालय जैसा अडिग बनानेवाली जीजाबाई ,
ध्रुव को तप द्वारा प्रभु को प्राप्त करने की प्रेरणा देनेवाली सुमति , कृष्ण में परमेश्वर का दर्शन करनेवाली यशोदा और दस वर्ष के बालक घनश्याम ( भगवान स्वामिनारायण ) के मुख से मोक्ष प्राप्त कर लेने की ज्ञान – वाणी सुननेवाली भक्तिमाता आदि।
सहस्रों आदर्श माताओं का ऋण चुकाने हेतु , आजकी माताओं के पास क्या है ?
बस , चुटकी बजाकर बालकों को बंदर नाच सिखलाना ही शेष रह गया है !
अथवा इसके आगे भी संसार की जिम्मेदारियों को उठा सके , ऐसा संस्कार सिंचन करके उनके कंधों को मजबूत करने के लिए कोई ‘ पाठाशाला ‘ बनने की क्षमता भी इन माताओं के पास बची है ❓
इन दो मार्गों में से किसी एक का चुनाव भारत की माताओं को ही करना है !
निष्कर्ष : घर वह है , जहाँ की माताएँ संयम की मूर्ति हों और स्वयं ज्ञान की देवी बनी हों वे पढ़ी – लिखी हों और पढ़ाने की उन्हें उत्सुकता हो , इसके साथ ही वे धार्मिक हों तथा सदाचारों की प्रेरणामूर्ति हों
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