वर्ष 2014 से आयुर्वेद पद्धति को मिला है उचित सम्मान: सुधीर सिंगला
-आजादी से पहले व काफी बाद तक उपेक्षित रहा आयुर्वेद
-विधायक ने कामधेनू आयुर्वेदिक वेलनेस संस्थान का किया उद्घाटन
प्रधान संपादक योगेश
गुरुग्राम। गुरुग्राम के विधायक सुधीर सिंगला ने कामधेनु आयुर्वेदिक वेलनेस संस्थान का उद्घाटन किया। कामधेनु संस्थान के संस्थापक एसपी गुप्ता (रिटायर्ड आईएएस) व शशि गुप्ता को संस्थान के लिए शुभकामनाएं दी।
इस अवसर पर धर्म योग फाउंडेशन के संस्थापक स्वामी योगभूषण, राष्ट्रवादी सुदर्शन मीडिया के अध्यक्ष सुरेश चव्हाण, नूंह के जिला सेशन जज सुशील गर्ग, योगेश मोदी (आईपीएस), यशपाल सिंहल (आईपीएस), कमलाकांत (यूपी रेरा) दिनेश रघुवंशी, परवीन जैन (ट्यूलिप) समेत अनेक लोग मौजूद रहे। विधायक सुधीर सिंगला ने कहा कि आयुर्वेद का हमारे जीवन में बहुत अधिक महत्व है। आयुर्वेद का जनक भगवान धन्वन्तरि को कहा जाता है। भगवान धन्वंतरि स्वास्थ्य, आरोग्य, तेज और दीर्घायु के देवता हैं। विधायक ने कहा कि आयुर्वेद के महत्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद में आयुर्वेद का उद्देश्य, वैद्य के गुण-कर्म, विविध औषधियों के लाभ, शरीर के अंग और अग्नि चिकित्सा, जल चिकित्सा, सूर्य चिकित्सा, शल्य चिकित्सा, विष चिकित्सा आदि के बारे में भी जानकारी मिलती है। ऋग्वेद में 67 औषधियों का उल्लेख मिलता है, इसलिए आयुर्वेद की दृष्टि से ऋग्वेद बहुत उपयोगी है। यजुर्वेद में आयुर्वेद से सम्बन्धित विभिन्न औषधियों के नाम, शरीर के विभिन्न अंग, वैद्यक गुण-कर्म चिकित्सा, नीरोगता आदि शामिल हैं। इसमें 82 औषधियों का उल्लेख है।
आयुर्वेद के अध्ययन के रूप में सामवेद में आयुर्वेद से सम्बन्धित कुछ सामग्री मिलती है। आयुर्वेद की दृष्टि से अथर्ववेद का स्थान अत्यन्त महत्वपूर्ण है। यह कह सकते हैं कि अथर्ववेद ही आयुर्वेद का मूल आधार है। अथर्ववेद में आयुर्वेद से सम्बन्धित विभिन्न विषयों का वर्णन है। विधायक सुधीर सिंगला ने कहा कि ब्रिटिश राज ने आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को अवैज्ञानिक, रहस्यमयी और केवल एक धार्मिक विश्वास माना। इसके विपरीत अंग्रेजों ने एलोपैथी को राज्य का संरक्षण प्रदान किया। आयुर्वेदिक चिकित्सा पद्धति को खत्म करने का प्रयास भी किया गया। आयुर्वेद उन ग्रामीण क्षेत्रों में जीवित रहा जो आधुनिक सभ्यता की पहुंच से दूर थे।
उन्होंने कहा कि आजादी से पहले आयुर्वेद उपेक्षित था। आजादी के बाद भी कई दशकों तक आयुर्वेद की उपेक्षा होती रही। आयुर्वेद को आधुनिक चिकित्सा पद्धति के साथ जोडऩे का प्रयास किया गया। आजादी के बाद कोलकाता, बनारस, हरिद्वार, इंदौर, पूना और बंबई आयुर्वेद के प्राचीन उत्कृष्ट संस्थान के रूप में स्थित थे। वर्ष 1960 के दशक में विशेष रूप से गुजरात और केरल में मेडिकल कॉलेजों और विश्वविद्यालयों के विकास में तेजी तो आई, लेकिन आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति को तब भी गंभीरता से नहीं लिया गया। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में वर्ष 2014 में आयुष मंत्रालय की स्थापना हुई और आयुर्वेद को प्रोत्साहन मिला। वर्ष 2020 में भारत सरकार ने आयुर्वेदिक वैद्यों को भी कुछ शल्य चिकित्सा करने की अनुमति दे दी।
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