चार आश्रम व्यवस्था
चार आश्रम व्यवस्था
( 1 ) ब्रह्मचर्य :- कम से कम 25 वर्ष तक वेद आदि शास्त्रों का अध्ययन करना (भौतिक शिक्षा के साथ-साथ), इन्द्रियों को अपने वश में रखना, ब्रह्म अर्थात् ईश्वर चिंतन, जप व ध्यान करना। अपने अन्दर बाहर सर्वत्र ईश्वर को व्यापक मानते समस्त प्रकार के दुष्ट कर्मों से पृथक् रहना।
(2) गृहस्थ :- 25 से 50 वर्ष तक घर-परिवार के दायित्वों का निर्वहन करना ( आजकल आयु को 60-65 वर्ष तक की मान्यता दी गई है) विवाह संस्कार को सम्पादित कर सुयोग्य धार्मिक संतान उत्पन्न करना, उनका पालन-पोषण करके बड़ा करना तथा पारिवारिक उन्नति के लिए भी प्रयत्न करना ।
(3) वानप्रस्थ :- जब संतान की भी संतान हो जाये तब अपने संतान को घर-गृहस्थी का कार्य भार सौंप कर वानप्रस्थ आश्रम में प्रवेश करना। वहाँ पर साधना, सेवा, स्वाध्याय करते हुए आत्मिक उन्नति करना। पत्नी साथ चले तो उसे भी साथ रखना व संयम पूर्वक रहना ।
(4) संन्यास :- जब वैराग्य की भावना स्थिर हो जाये तो पत्नी को पुत्र के पास छोड़कर या वानप्रस्थ में छोड़ कर समस्त रागात्मक सम्बन्ध का त्याग कर, उम्र भर तपस्या करते हुए समाज में व्याप्त अविद्या को दूर करने हेतु प्रयास करना और वैदिक धर्म का प्रचार करना तथा मोक्ष प्राप्त करने व कराने के लिए प्रयत्नशील रहना ।
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