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पटौदी में सुबह 6 बजे ही ईद उल अजहा की नमाज अता की गई

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पटौदी में सुबह 6 बजे ही ईद उल अजहा की नमाज अता की गई

मंगलवार देर रात को प्रबुद्ध मुस्लिमों के द्वारा किया गया फैसला

कोरोना प्रोटोकॉल का पालन, ईदगाह में नमाज आता करने से परहेज

फतह सिंह उजाला
पटौदी ।
 बीते वर्ष फरवरी माह से ही कोरोना कोविड-19 जैसी महामारी के तेजी से पांव फैलाने को देखते हुए बुधवार को यह तीसरा मौका था जब मुस्लिम समुदाय के लोगों के द्वारा ईदगाह और मस्जिद के विपरीत अधिकांश ने अपने-अपने घरों में ही नमाज अता की। बुधवार को मुस्लिम समुदाय का ईद उल अजहा बकरीद अथवा कुर्बानी का त्यौहार था । सरकार और स्वास्थ्य विभाग के द्वारा दी गई विभिन्न प्रकार के छूट के अतिरिक्त खासतौर से सामूहिक रूप से खुले में नमाज अदा किए जाने के स्पष्ट दिशानिर्देश के अभाव में मुस्लिम समुदाय के प्रबुद्ध लोगों के द्वारा मंगलवार देर रात को यह फैसला किया गया कि जो भी कोरोना प्राटोकोल के मुताबिक गाइडलाइन जारी की गई है ,उनका पालन करते हुए ही नमाज अता की जाए।  

संभवत बुधवार को यह पहला पहला ऐसा मौका था जब मुस्लिम समुदाय के द्वारा अलसुबह 6 बजे ही ईद उल फितर या फिर ईद उल अजहा जैसे मुस्लिम पर्व के मौके पर नमाज और सुबह 6ः00 बजे ही आता की गई जानकारी के मुताबिक ईदगाह में सामूहिक रूप में नमाज अदा करने से मुस्लिम समुदाय के द्वारा परहेज की किया गया । बताया गया है कि कल सुबह 6ः00 बजे ही पटौदी शहर के साथ साथ हेली मंडी इलाके की मस्जिदों मे कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए बेहद सीमित संख्या में नमाजियों के द्वारा पहुंचकर नमाज अता की गई । बुधवार को अधिकांश मुस्लिम समुदाय के लोगों सहित परिवार के सदस्यों के द्वारा अपने अपने घरों में ही ईद उल अजहा की नमाज अदा की गई । पटौदी और हेली मंडी दोनों इलाकों को मिलाकर ईदगाह सहित करीब एक दर्जन मस्जिद मौजूद हैं ।  मुस्लिम समुदाय के ही प्रबुद्ध लोगों की माने तो और सुबह नमाज अता करने के पीछे एक अन्य मुख्य कारण यह भी रहा कि दिन निकलने के साथ ही पटोदी या फिर आसपास के इलाकों से बड़ी संख्या में नमाज अद करने के लिए मुस्लिम समुदाय के लोग नमाज अता करने के लिए बड़ी संख्या में मुस्लिम समुदाय के नमाजी ईदगाह पर पहुंचना आरंभ हो जाते हैं ।

ऐसे में हजारों की संख्या में नमाज अदा करने वालों के पहुंचने से ईदगाह में जगह की कमी के कारण सड़क या फिर सड़क के किनारे बैठ कर भी नमाज अदा करना मजबूरी बन जाता है । बुधवार को सबसे अहम और महत्वपूर्ण बात यह रही कि अभी कोविड-19 का खतरा पूरी तरह से समाप्त नहीं हो सका है , अपने अपने परिचितों और सभी विभिन्न समुदाय के जानकारों के स्वास्थ्य हित को भी प्राथमिकता देते हुए कोरोना प्रोटोकॉल का पालन करते हुए नमाज अदा की गई । पटौदी शहर का हिंदू मुस्लिम एकता और भाईचारे के लिए एक अलग ही इतिहास सहित पहचान भी रही है । यहां पर हिंदू मुस्लिम भाईचारे की मिसाल ऐसी बनी हुई है जिसका उदाहरण दूरदराज के इलाकों तक की दिया जाता है । नमाज अदा किया जाने के बाद अनेक नमाजियों के द्वारा विभिन्न कब्रिस्तान में पहुंचकर अपने पूर्वजों को याद किया गया और इसके उपरांत ईद उल अजहा अथवा बकरीद के मौके पर अपनी धार्मिक मान्यता के मुताबिक कुर्बानी भी दी गई ।

हालांकि ईद उल अजहा या फिर बकरीद के मौके पर बीते कई वर्षों के मुकाबले एक बार फिर से कोविड-19 जैसी महामारी को देखते हुए पहले की अपेक्षा बहुत कम संख्या में परंपरा के मुताबिक कुर्बानी दी गई । पंडित कैलाश चंद्र वाली पालम वाले के शिष्य हजरत बाबा सैयद नूरउद्दीन धर्मार्थ ट्रस्ट के चेयरमैन सैयद एजाज हुसैन जैदी जज्जू बाबा के मुताबिक बदलते समय के अनुसार त्योहार मनाने के तौर तरीकों में भी तेजी से बदलाव महसूस किया जा रहा है । वास्तव में कुर्बानी का मकसद ही यही है की इंसान अपनी और अपने अंदर की बुराइयों की कुर्बानी दे । वही पूर्व पार्षद अब्दुल जलील नंबरदार के मुताबिक इस बात में कोई शक नहीं है कि जैसे-जैसे शिक्षा का प्रसार प्रचार हो रहा है , शुद्ध वातावरण और पर्यावरण को प्राथमिकता प्रदान की जा रही है । मानव जीवन के अनुकूल प्रकृति को बनाए रखने के लिए अब प्रतीकात्मक रूप से भी कुर्बानी की  रस्म आता की जाने लगी है। इस मौके पर मुस्लिम और हिंदू परिचितों मित्रों और वर्षों से एक दूसरे के सुख दुख के भागीदार लोगों के द्वारा मुस्लिम समुदाय के अपने मित्रों को ईद उल अजहा पर्व की बधाई भी दी गई।  विभिन्न मुस्लिम मित्रों और परिचितों के द्वारा अपने यहां परिचित मित्रों को आमंत्रित कर मीठी सिमैयां खिलाकर मुंह मीठा करवाया गया। 

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