शिक्षा और संस्कार
शिक्षा और संस्कार
✍️आज अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है।इस दिवस पर सम्पूर्ण मातृ शक्ति को हार्दिक बधाई एवं उनके उज्ज्वल जीवन की अनेकानेक शुभकामनाये।🙏🙏
शिक्षा और संस्कार की महत्वपूर्ण धुरी नारी के रूप में माँ ही होती है जिसके आँचल में बच्चा संस्कार पाता है।बच्चो को श्रेष्ठ संस्कार और शिक्षा देने में माँ अपनी अद्वितीय भूमिका निभाती है।माँ ही बच्चे की प्रथम गुरु होती है।माँ ही अपने बच्चों को संस्कारवान और गुणवान बनाती है। श्रेष्ठ संस्कारों से युक्त बच्चा ही सभ्य समाज की नींव डालता है और समाज एवं राष्ट्र का नाम उज्ज्वल करता है।राम,कृष्ण, शिवाजी, महाराणा प्रताप,भगतसिंह,सुभाषचंद्र बोस,अब्दुल कलाम आजाद इत्यादि ऐसे अनेको महापुरुषो ने अपनी माँ के दिए संस्कारो से न केवल समाज को बल्कि राष्ट्र को गौरवान्वित किया।माता सीता ने वन में रहकर लव-कुश को जन्म दिया और उन्हें संस्कारित कर योग्य बनाया। राष्ट्र के आजादी के दीवानों की माताओं ने अपने पुत्रों को जो संस्कार दिए उन्ही का परिणाम है कि आज हम आजादी का परम आनंद ले रहे हैं। सृष्टि के आदिकाल से नारी की महत्ता अक्षुण्ण है।वैदिक काल मे प्रत्येक धार्मिक अनुष्ठान में नारी की उपस्थिति आवश्यक थी।मैत्रयी,गार्गी जैसी नारियों की गणना ऋषियों के साथ होती थी।नारी सृजन की पूर्णता है,उसके अभाव में मानवता के विकास की कल्पना असंभव है।नारी ने समाज में संस्कारों की नई क्रांति दी है।जब-जब समाज में संस्कारों का पतन हुआ या मूल्यों में विकृति आई तब-तब नारी ने रानी लक्ष्मीबाई,रानी दुर्गावती,पद्मिनी,हाड़ा रानी बन उन विकृतियों को दूर किया और समाज को एक नई दिशा प्रदान की।भारतीय महान नारियों ने अपने श्रेष्ठ कर्तव्यकर्म एवं बलिदान से यह दिखाया कि-उनके लिए सतीत्व और मातृभूमि की महत्ता क्या है।ऐसी श्रेष्ठ नारियों के बतलाये पथ पर आज की नारियों को चलने की आवश्यकता है।आज नारियों ने अपनी बौद्धिक कुशलता से जीवन के हर क्षेत्र में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया है।आज आधी आबादी का शैक्षिक स्तर बहुत उन्नत हुआ है।यह सुकूनदायी है।आज की नारियों से अपेक्षा की जाती है कि वे भारतीय संस्कृति के महान आदर्शो और प्रतिमानों को पतित होने से बचाने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर लेवे।आज जिस तरह से युवा पीढ़ी पाश्चात्य संस्कृति के प्रति आकृष्ट हो रही है,वह राष्ट्र के लिए मंगलकारी नही है।पाश्चात्य संस्कृति में आदर्श मूल्यों और प्रतिमानों की कोई महत्ता नही है,वह केवल भोगवादी विकृत मानसिकता पर केंद्रित है।मातृ शक्ति को चाहिए कि वे भारतीय संस्कृति की महत्ता को जाने और संस्कृति की महान परम्पराओ,रीति-रिवाजों और मूल्यों के अनुरुप आचरण-व्यवहार कर जीवन जिए तथा पाश्चात्य संस्कृति के प्रति कदापि आकृष्ट न हो। वह ऐसे झूठे मोहपाश की शिकार न हो और न ही किसी के हाथ के कठपुतली बन अपने आपको अर्पित करे।वह अपने श्रेष्ठ आचरण-व्यवहार से समाज व राष्ट्र को गर्वित करे।सारांश यह है कि नारी सृष्टि का आधार है।नारी संस्कारो की जननी है।नारी प्रेरणा पुंज है।नारी को चाहिए कि वह अपने आपको नैतिक एवं व्यवहारिक ज्ञान से परिपूर्ण रखे।नैतिक उत्थान से ही समाज और राष्ट्र का विकास होता है।सभी मातृ शक्ति को नमन-वन्दन।एवं आप सभी परम आदरणीय सम्माननीय वन्दनीय महानुभावो को मुकेश आंगिरस मोहनपुरिया की ओर से सादर प्रणाम चरण वंदन अभिनंदन एवं सुबह का वंदन स्वीकार करना सा,जय श्री राम,जय श्री ब्रह्म ऋषि अंगिरा स्वामी जी की सा।
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