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गुरु उत्तराधिकारी बनना आसान, गुरु स्थान पाना असंभव – धीरज गिरी

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गुरु उत्तराधिकारी बनना आसान, गुरु स्थान पाना असंभव – धीरज गिरी

गांव गोकुलपुर के महाभारत कालीन प्राचीन शिव मंदिर में गुरु पर्व का आयोजन

गुरु प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से अपने शिष्य और श्रद्धालुओं पर रहते कृपालु

हम सभी जीवन में केवल गुरु के द्वारा दी गई शिक्षा को ही आत्मसात करें

फतह सिंह उजाला
गुरुग्राम । 
गुरु का उत्तराधिकारी बनना आसान और सरल तो हो सकता है । लेकिन गुरु का स्थान प्राप्त करना शिष्य के लिए संभव नहीं हो सकता , गुरु वास्तव में गुरु ही होते हैं। दूसरे शब्दों में गुरु परमपिता परमेश्वर के समकक्ष ही होते हैं । कहा भी गया है केवल मात्र गुरु ही परमपिता परमेश्वर को प्राप्त करने का मार्गदर्शन प्रदान कर रास्ता भी बताते हैं । इसके बाद ही किसी शिष्य , श्रद्धालु या फिर अनुयाई के लिए देव दर्शन और कृपा संभव हो सकती है । यह बात सीमांत गांव गोकुलपुर में महाभारत कालीन पांडवों के समय के प्राचीन शिव मंदिर परिसर में महाकाल संस्थान के अधिष्ठाता और महाकाल के अन्नयन भक्त महामंडलेश्वर स्वामी ज्योति गिरी महाराज के शिष्य महंत धीरज गिरी ने गुरु पर्व अथवा गुरु पूर्णिमा के मौके पर पहुंचे श्रद्धालुओं को अपना आशीर्वचन प्रदान करते कहीं ।

इससे पहले बुधवार को ब्रह्म मुहूर्त में महंत धीरज गिरी ने अपने गुरु महामंडलेश्वर ज्योति गिरी महाराज जोकि अज्ञातवास में है , उन्हें साक्षात मान श्रद्धा पूर्वक पूजा अर्चना कर आशीर्वाद प्राप्त किया । इसके उपरांत मंदिर परिसर में ऐतिहासिक शिव परिवार की पूजा अर्चना करते हुए भगवान शिव का रुद्राभिषेक किया । इस मौके पर रेवाड़ी, गुरुग्राम, पटौदी, दिल्ली, रोहतक , झज्जर सहित अन्य स्थानों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु ऐतिहासिक शिव मंदिर परिसर में पहुंचे और यहां महंत धीरज गिरी सहित महादेव का आशीर्वाद प्राप्त किया । इसी मौके पर बड़ी संख्या में पहुंची महिला श्रद्धालुओं के द्वारा गुरु की महिमा और भगवान शिव पार्वती को याद करते हुए पारंपरिक धार्मिक भजन कीर्तन करते हुए माहौल में संगीतमयं भक्ति की लहर फैलाने का कार्य किया । इस मौके पर देव दर्शन सहित आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए पहुंचे श्रद्धालुओं के द्वारा अपनी श्रद्धा अनुसार गुरु गद्दी को नमन करते हुए भेंट और उपहार भी अर्पित किए गए।

इस मौके पर जूना अखाड़े के महंत धीरज गिरी महाराज ने कहा परमपिता परमेश्वर भगवान ने केवल और केवल इंसान के रूप में ही प्रत्येक व्यक्ति को इस धरती पर अवतरित किया है । लेकिन यहां जन्म लेने के उपरांत जन्म लेने वाले की पहचान सामाजिक संरचना के मुताबिक अलग-अलग होती चली जाती है। वास्तव में हकीकत यही है कि प्रत्येक व्यक्ति पंचतत्व से ही बना हुआ है और अंतिम समय में पंचतत्व में ही विलीन भी हो जाता है । उन्होंने कहा व्यक्ति के जीवन में आध्यात्मिक गुरु और गुरु कृपा सहित आशीर्वाद के बिना मानव जीवन को अधूरा भी माना जा सकता है। व्यक्ति अपने जीवन में जाने अनजाने विभिन्न प्रकार के अनुचित और गलत कार्य भी करता रहता है । इन प्रकार के कार्यों के दुष्परिणामों को केवल मात्र गुरु मार्गदर्शन और गुरु कृपा से ही दूर किया जा सकता है । इसके लिए अति आवश्यक है कि गुरु से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त किया जाए । उन्होंने कहा धर्म शास्त्रों में भी कहा गया है जो कुछ भी गुरु कहे या निर्देश दें , केवल मात्र उसका ही इंसान को पालन करना चाहिए ।

उन्होंने  कहा कि गुरु के द्वारा की जाने वाली क्रिया का किसी को भी बिना कारण समझे अनुसरण नहीं करना चाहिए । गुरु के द्वारा की जाने वाली क्रिया किस लक्ष्य और उद्देश्य सहित इस कार्य के लिए की जा रही है ? यह केवल क्रिया करने वाला गुरु ही जानता है । उन्होंने कहा भारतीय सनातन संस्कृति का आधार स्तंभ गुरु और गुरु कृपा ही है । आम इंसान हो, देवता हो या कोई अन्य हो, प्रत्येक युग में गुरु के मार्गदर्शन और कृपा के बिना किसी भी व्यक्ति के लिए किसी भी लक्ष्य को प्राप्त करना संभव नहीं रहा है। अपने आप को भुला कर पूरी तरह से गुरु के प्रति समर्पित किया जाना और इसके बाद गुरु की कृपा सहित आशीर्वाद प्राप्त होना , व्यक्ति के लिए बहुत कल्याणकारी होता है। शिष्य को अपने गुरु के द्वारा दिखाए गए मार्गदर्शन पर चलते हुए केवल और केवल बिना किसी भेदभाव के इंसान सहित जीव कल्याण के कार्य में समर्पित रहना चाहिए।  इसी मौके पर मंदिर परिसर में पहुंचे सभी श्रद्धालुओं के लिए भंडारे का प्रसाद वितरित किया गया । महंत धीरज गिरी ने महाभारत कालीन प्राचीन शिव मंदिर में पहुंचे सभी धर्म वर्ग संप्रदाय के श्रद्धालुओं के कल्याण की अपने गुरु और महादेव से समर्पित होकर कामना की।

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