आंख बंद कर, सीएमओ तथा एमएलए जरावता की आंख में धूल !
आंख बंद कर, सीएमओ तथा एमएलए जरावता की आंख में धूल !
स्वास्थ्य अधिकारियों ने एमएलए के पत्र को भी नहीं दी अहमियत
4 दिन में जांच की खानापूर्ति कर रिपोर्ट भेजी सीएमओ कार्यालय
जांच कमेटी सहित एस एम ओ ने पत्रकारों को किया नजरअंदाज
जांच , पत्रकारों से हाथापाई , बाधित बिजली और ओटी में हंगामा
फतह सिंह उजाला
पटौदी । पटौदी मंडी नगर परिषद का पटौदी नागरिक अस्पताल यहां के तत्कालीन सीनियर मेडिकल ऑफिसर डा योगेंद्र सिंह के कार्यकाल के दौरान के अंतिम दिनों में ऐसा सुर्खियों में आया कि जांच पर जांच पटौदी अस्पताल के जिम्मेदार और जवाबदेह अधिकारियों के लिए जी का जंजाल बनती हुई दिखाई दे रही है । यह बात कहने में कतई भी संकोच नहीं है कि जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधि और सत्ता पक्ष पार्टी के पदाधिकारी एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता के लिखे गए पत्र को भी आंख बंद कर नजरअंदाज कर दिया गया या फिर बिल्कुल भी गंभीरता से नहीं लिया गया।
एमएलए एडवोकेट जरावता के द्वारा 5 सितंबर को सिविल सर्जन गुरूग्राम के नाम पत्र लिखकर पटौदी नागरिक अस्पताल में ऑपरेशन थिएटर प्रकरण सहित घटना को कवर करने गए पत्रकारों के साथ की गई स्टाफ के द्वारा बदतमीजी-हाथापाई और बिजली आपूर्ति के संबंध में जांच करने के साथ ही दोषी एचकेआरएमएल कर्मचारियों को तुरंत प्रभाव से टर्मिनेट करने की सिफारिश की गई । इस पत्र को सिविल सर्जन कार्यालय के द्वारा पटौदी नागरिक अस्पताल प्रशासन के पास 22 सितंबर को आवश्यक कार्यवाही सहित जांच के लिए भेजा गया । जांच के लिए तीन डॉक्टरों की टीम गठित की गई। सूत्रों के मुताबिक जांच कमेटी में से एक डॉक्टर ने अपने आप को अलग कर लिया गया।
हैरानी इस बात को लेकर है कि 27 तारीख को तीन डॉक्टरों की जांच कमेटी गठित की गई और 3 अक्टूबर को पटौदी सामान्य अस्पताल के सीनियर मेडिकल ऑफिसर के मुताबिक रिपोर्ट वापिस सिविल सर्जन कार्यालय भेजी जा चुकी है । इस पूरे प्रकरण में मौजूदा समय सीनियर मेडिकल ऑफिसर की जिम्मेदारी संभाल रहे डॉक्टर अधिकारी का जवाब है कि जांच के लिए जांच कमेटी को सीएमओ कार्यालय के द्वारा पत्रकारों के नाम या फिर उनके कांटेक्ट नंबर ही उपलब्ध नहीं करवाए गए । उनका जवाब बहुत ही हास्य पद है , यह जांच कमेटी की जिम्मेदारी बनती है की सिविल सर्जन के द्वारा जो निर्देश दिए गए हैं उस जांच को पूरा करने के लिए जांच से संबंधित सभी व्यक्तियों को किसी न किसी प्रकार संपर्क कर घटना की वास्तविकता और सच्चाई कर अपने वरिष्ठ अधिकारियों को उपलब्ध करवाया जाए । इस पूरे प्रकरण में सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि 7 सितंबर को पत्रकारों के द्वारा पटौदी अस्पताल प्रशासन को सांकेतिक धरना देने के लिए सूचित किया गया और 8 सितंबर को पत्रकारों के द्वारा पूरे घटनाक्रम सहित जांच के मुद्दे को लेकर सांकेतिक धरना भी दिया गया । उस समय जिम्मेदारी संभाल रहे स्थानीय सीनियर मेडिकल ऑफिसर पत्रकारों के पास पहुंचे धरने पर बैठे पत्रकारों के फोटो भी खींचे और बातचीत भी की । ऐसे में यह बहुत ही हास्य पद है कि जांच कमेटी को पत्रकारों के विषय में किसी भी प्रकार की जानकारी क्यों उपलब्ध नहीं करवाई गई ? जबकि अस्पताल प्रशासन ईमेल पत्राचार में पत्रकारों के नाम और संपर्क नंबर लिखे हुए हैं।
इस पूरे प्रकरण में एक और महत्वपूर्ण बात से मौजूदा सीनियर मेडिकल ऑफिसर किसी भी कीमत पर इंकार नहीं कर सकते, क्योंकि इसी अस्पताल में कार्यरत मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर विकास यादव को पटौदी के उपमंडल कार्यालय के द्वारा 15 सितंबर को सीनियर मेडिकल ऑफिसर पटौदी अस्पताल की मार्फत जांच के लिए 29 सितंबर को तलब किया गया । उप मंडल कार्यालय द्वारा भेजे गए इस पत्र में भी कम से कम दो पत्रकारों के नाम सबसे ऊपर उपमंडल कार्यालय और जांच अधिकारी के द्वारा लिखे हुए हैं । फिर भी सीनियर मेडिकल ऑफिसर पटौदी अस्पताल यदि यह कहते हैं कि पत्रकारों के नाम और कांटेक्ट नंबर उपलब्ध ही नहीं थे, यह अपने आप में एक और जांच का विषय बन जाता है । कि जब सब कुछ पटौदी अस्पताल के ईमेल पत्राचार के रिकॉर्ड पर मौजूद है , तो उस तरफ ध्यान क्यों नहीं दिया गया या फिर एक सोची समझी रणनीति और योजना के तहत पत्रकारों को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया गया । जिससे कि पटौदी नागरिक अस्पताल में 2 और 3 सितंबर को जो कुछ भी घटना घटी , वह सच्चाई और स्थानीय चिकित्सा अधिकारियों की कोताही सहित लापरवाही की पोल पट्टी वरिष्ठ अधिकारियों सहित स्वास्थ्य विभाग के समक्ष पूरी तरह से नहीं खुल जाए ।
इस मामले में यदि सीएमओ गुरुग्राम के द्वारा प्रेषित पत्र या सीएमओ कार्यालय द्वारा प्रेषित पत्र में किसी वजह से पत्रकारों के नाम और कांटेक्ट नंबर नहीं भी थे, तो कम से कम पटोदी सीनियर मेडिकल ऑफिसर और जांच कमेटी का भी यह दायित्व बनता है कि सीएमओ कार्यालय से पत्रकारों के नाम और कांटेक्ट नंबर की डिमांड की जानी चाहिए थी । इतना ही नहीं कम से कम जनता के चुने हुए जनप्रतिनिधि पटौदी के एमएलए एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता के कार्यालय , पटौदी नागरिक अस्पताल के बगल में ही मौजूद पटोदी सब डिवीजन कार्यालय और यहां तक की पटौदी पुलिस थाना , पटौदी पुलिस चौकी से भी संपर्क कर पत्रकारों के नाम और कांटेक्ट नंबर यदि जांच कमेटी सहित सीनियर मेडिकल ऑफिसर की जांच के प्रति ईमानदार निष्ठा होती तो वह अवश्य प्राप्त कर सकते थे । लेकिन लगता है जिस प्रकार से आनन-फानन में 27 सितंबर से लेकर 3 अक्टूबर के बीच जिसमें कि 2 दिन अवकाश भी शामिल है, कुछ कर्मचारियों के बयान दर्ज कर रिपोर्ट सीएमओ कार्यालय को लौटा दी गई । यह जांच भी कितनी निष्पक्ष और कितनी इमानदारी से की गई होगी इस पर भी सवाल उठना स्वाभाविक है ।
जांच के नाम पर पटौदी अस्पताल प्रशासन , यहां के सीनियर मेडिकल ऑफिसर और जांच कमेटी के द्वारा जिस प्रकार की खानापूर्ति कर सिविल सर्जन सहित एमएलए एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता को भी पूरी तरह से अंधेरे में रखने का काम किया गया , उससे यही प्रतीत होता है कि पटौदी नागरिक अस्पताल के मौजूदा सीनियर मेडिकल ऑफिसर सहित जांच कमेटी के द्वारा जांच से पहले ही अपनी आंखें भी बंद कर ली गई थी। जिस प्रकार से जांच की खानापूर्ति की गई , उसे देखते हुए सरकार की निष्पक्ष और पारदर्शी कार्यप्रणाली पर भी सवालिया निशान उठना स्वभाविक है या फिर जांच के नाम पर 2 और 3 सितंबर के पटौदी अस्पताल में हुए घटनाक्रम को लेकर दोषियों को बचाने की पहले से ही योजना बनाकर रखी गई है ? इस प्रकार की कार्यप्रणाली पर हरियाणा के स्वास्थ्य मंत्री और गृहमंत्री अनिल विज सहित सीएमओ डॉ वीरेंद्र यादव के साथ साथ जिला प्रशासन और पटौदी के एमएलए एडवोकेट सत्य प्रकाश जरावता को गंभीरता से संज्ञान लिया जाना चाहिए।
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