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नावी बांड योजना पर सुनवाई के दौरान सीजेआई ने दोनों पक्षों से पूछे कई सवाल

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नावी बांड योजना पर सुनवाई के दौरान सीजेआई ने दोनों पक्षों से पूछे कई सवाल
नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष दलील दी कि चुनावी बांड योजना के संदर्भ में दो अभिव्यक्तियों, गुमनामी और अस्पष्टता, का बार-बार उपयोग किया गया है. इसके साथ ही केंद्र सरकार ने कहा कि सीमित गोपनीयता को न्यायिक आदेश से हटाया जा सकता है. इस योजना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं ने शीर्ष अदालत के समक्ष जोरदार तर्क दिया है कि राजनीतिक दलों के वित्तपोषण के लिए अपारदर्शी चुनावी बांड योजना ‘लोकतंत्र को नष्ट कर देगी’. याचिकाकर्ताओं का कहना है कि यह योजना भ्रष्टाचार को बढ़ावा देती है और सत्तारूढ़ और विपक्षी दलों के बीच समान अवसर की अनुमति नहीं देती है.

भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, बीआर गवई, जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की अध्यक्षता वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ राजनीतिक फंडिंग स्रोत के रूप में केंद्र की चुनावी बांड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली कई याचिकाओं पर सुनवाई कर रही है.
याचिकाकर्ताओं की ओर से अपना तर्क पूरा करने के बाद, न्यायमूर्ति खन्ना ने केंद्र का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से पूछा, एक बड़ा मुद्दा था जिसे अदालत नहीं उठा रही है जो चुनावी फंडिंग था और दूसरा मुद्दा जो उठता है, वह फंडिंग में सहयोग करने के संबंध में आता है, चाहे यह खुला, पारदर्शी होना चाहिए? दूसरा मुद्दा जो उठता है वह यह है: उन्होंने (याचिकाकर्ताओं) रिश्वत और रिश्वत या बदले की भावना का हवाला दिया है. न्यायमूर्ति खन्ना ने कहा कि यह मुद्दा जो सामने आ सकता है वह अपारदर्शिता, फंडिंग कौन कर रहा है आदि से संबंधित है, और यदि कोई बदले की भावना है, तो कोई इसे कैसे स्थापित करेगा?

सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि उनके पास अदालत की ओर से उठाये गये सवाल का जवाब है. उन्होंने कहा कि कृपया फिलहाल मेरी एक एक बात ध्यान में रखें. उन्होंने कहा कि याचिकाकर्ता बार-बार दो अभिव्यक्तियों का इस्तेमाल किया जा रहा है जिसे हटाने की जरूरत है. ये दो अभिव्यक्तियां हैं गुमनामी और अस्पष्टता. यह प्रतिबंधित और सीमित गोपनीयता है, जिसे न्यायिक निर्देश के माध्यम से खोला जा सकता है. उन्होंने कहा कि मैं इस बारे में जानकारी दे सकता हूं.

आज सुनवाई के दौरान सीजेआई ने कहा कि अगर कंपनी अधिनियम, 1956 के तहत राजनीतिक दलों के लिए चंदे के संबंध में कोई प्रावधान नहीं होता तो परिणाम क्या होते. उन्होंने कहा कि कोई भी कंपनी राजनीतिक उद्देश्यों के लिए बिल्कुल भी दान नहीं दे सकती है. मुख्य न्यायाधीश ने एक याचिकाकर्ता का प्रतिनिधित्व कर रहे वकील से पूछा कि मान लीजिए कि कंपनी अधिनियम 1956 में राजनीतिक दलों के लिए कोई प्रावधान नहीं है, तो परिणाम क्या होंगे?

कोर्ट से इतर याचिकाकर्ता डॉ. जया ठाकुर ने कहा कि सरकार को इलेक्टोरल बॉन्ड योजना पर पारदर्शिता दिखानी चाहिए थी क्योंकि अगर पारदर्शिता नहीं है तो कोई जिम्मेदारी नहीं होगी और कोई विश्वसनीयता नहीं होगी. वे इलेक्टोरल बॉन्ड से राजनैतिक दलों की बेनाम फंडिंग की वैधता को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रही है. डॉ. जया ठाकुर ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि एक अच्छा निर्णय आएगा क्योंकि पांच जजों की पीठ हालात की गंभीरता को समझती है. इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को सरकार ने दो जनवरी, 2018 को अधिसूचित किया गया था.
योजना को राजनीतिक फंडिंग में पारदर्शिता लाने की कोशिशों के लिए राजनैतिक दलों को दिए जाने वाले कैश डोनेशन के विकल्प के रूप में पेश किया गया था. योजना के प्रावधानों के मुताबिक, इलेक्टोरल बॉन्ड भारत के किसी भी नागरिक या भारत में बनी यूनिट से खरीदा जा सकता है. कोई भी व्यक्ति अकेले या दूसरे व्यक्तियों के साथ मिलकर इलेक्टोरल बॉन्ड खरीद सकता है. सिर्फ जन प्रतिनिधित्व अधिनियम, 1951 की धारा 29ए के तहत पंजीकृत राजनैतिक दल और जिन्हें लोकसभा या राज्य विधानसभा के पिछले चुनाव में कम से कम एक प्रतिशत वोट मिले हों, वे चुनावी बांड खरीद सकते है. अधिसूचना के अनुसार, इलेक्टोरल बॉन्ड को कोई भी राजनैतिक दल, केवल ऑथराइज्ड बैंक के खाते से ही रुपये निकाल सकता है.

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