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DRDO को GE डील से उन्नत तकनीक मिलने की उम्मीद, स्वदेशी इंजन कार्यक्रम को मिलेगी मदद

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DRDO को GE डील से उन्नत तकनीक मिलने की उम्मीद, स्वदेशी इंजन कार्यक्रम को मिलेगी मदद
नईदिल्ली : पीएम मोदी के 21जून से होनेवाले यूएस दौरे से DRDO को काफी उम्मीदें हैं। डीआरडीओ की लैब, गैस टर्बाइन रिसर्च एस्टैब्लिशमेंट (GTRE) के अधिकारियों ने बताया कि उनके दौरे में अमेरिकी कंपनी GE (जेनरल इलेक्ट्रॉनिक्स) के साथ देश में जेट इंजन विकसित करने को लेकर अहम समझौता होने की पूरी संभावना है। अधिकारियों ने कहा कि अमेरिकी कंपनी GE एक “अभूतपूर्व कदम” के तहत भारत में ही लड़ाकू विमानों के इंजन निर्माण के लिए प्रौद्योगिकी साझा करने पर सहमत हो गई है। भारत में जेट इंजन के निर्माण के लिए प्रस्तावित सौदे को मंजूरी मिलने से देश को इस क्षेत्र में विशेषज्ञता हासिल करने में मदद मिलेगी।

जानिए क्या है GTRE?

आपको बता दें कि GTRE बेंगलुरु में स्थित एक रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन प्रयोगशाला है, जो स्वदेशी इंजन विकसित करने में जुटी है। इसी ने कावेरी इंजन विकसित किया है, जिसे मूल रूप से एलसीए तेजस विमान वेरिएंट को शक्ति देने के लिए बनाया गया था। लेकिन इस परियोजना में देरी के कारण, भारत को शुरुआती 113 एलसीए विमानों के लिए जीई-404 इंजन और एलसीए मार्क 2 के लिए जीई-414 खरीदने पड़े। अब इनकी योजना है कि पांचवीं पीढ़ी के फाइटर विमानों को भारत में बने इंजन से चलाया जाए। इसलिए GE से डील अहम मानी जा रही है।

डील से कई फायदे

सरकारी अधिकारियों ने कहा, इस डील से सबसे बड़ा फायदा ये है कि भविष्य में अत्याधुनिक प्रौद्योगिकी के हस्तांतरण (टीओटी) का प्रतिशत और बढ़ने की उम्मीद है। प्रौद्योगिकी के इस हस्तांतरण के साथ, पुर्जे देश में बनाए जाएंगे और GRTE को क्रिस्टल ब्लेड आदि के लिए प्रक्रियाओं और कोटिंग्स सहित सभी जानकारी प्राप्त होगी।
अधिकारियों ने कहा कि प्रस्तावित टीओटी अभूतपूर्व है और जीई ने इस स्तर पर अपने नाटो सहयोगियों को भी तकनीक का स्थानांतरण नहीं किया है।

भविष्य की योजना

भारत रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता का प्रयास कर रहा है। जेट इंजन की तकनीक हासिल करने के बाद देश में स्वदेशी लड़ाकू विमान बनने लगेंगे और हमारी हवाई क्षमता काफी बढ़ जाएगी। साथ ही इसके लिए दुनिया के देशों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा। उन्नत मध्यम श्रेणी के लड़ाकू विमान के लिए एक और बड़े जेट विमान इंजन की तकनीक हासिल करने के लिए भारत की फ्रांस से भी बातचीत चल रही है, लेकिन फिलहाल इसकी प्रगति के बारे में स्थिति स्पष्ट नहीं है। ऐसे में अमेरिकी कंपनी से होनेवाली डील भारत के लिए बहुत अहम साबित हो सकती है।

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