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दो आंख दान से, 10 नेत्रहीनों की जिंदगी हो सकती है रोशन

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दो आंख दान से, 10 नेत्रहीनों की जिंदगी हो सकती है रोशन

व्यक्ति की एक आंख के विभिन्न पांच पार्ट्स आ सकते हैं काम

पटोदी अस्पताल में मोतियाबिंद मुक्त भारत अभियान के तहत कार्यक्रम

आंख के अलावा शरीर के विभिन्न पांच ऑर्गन भी बेहद उपयोगी

मानव कल्याण व हित में मृत्यु के उपरांत अपने ऑर्गन दान करें

जीवन में नेत्रदान करने से बड़ा अन्य कोई दान नहीं हो सकता

फतह सिंह उजाला
पटौदी । 
एक और एक ग्यारह । यह एक पारंपरिक चली आ रही कहावत है, आज के आधुनिक और चिकित्सा जगत में यह कहावत नेत्रहीन जरूरतमंद लोगों को प्रकृति की अनमोल रचना को देखने के लिए सबसे अधिक लाभकारी साबित हो सकती है। मृत्यु के उपरांत यदि दोनों नेत्र दान कर दिए जाएं, तो 10 नेत्रहीन लोगों की जिंदगी रोशन हो सकती है या फिर भगवान की बनाई हुई इस दुनिया को अपनी आंखों से देख सकते हैं । वास्तव में एक आंख के विभिन्न 5 हिस्से अलग-अलग प्रकार से काम आते हैं और यही हिस्से ऐसे नेत्रहीन जरूरतमंद की आंखों में लगाकर उनको आंखों की रोशनी प्रदान की जा सकती है । इस प्रकार से दो आंखें दान करने के बाद 10 जरूरतमंद नेत्रहीन लोगों की जिंदगी रोशन होकर वह किसी अन्य पर निर्भर नहीं रह कर , स्वेच्छा से अपना प्रत्येक कार्य करने में सक्षम रहेंगे।

यह जानकारी पटौदी नागरिक अस्पताल में मोतियाबिंद मुक्त भारत अभियान के तहत आयोजित कार्यक्रम में सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर नीरू यादव और आई सर्जन डॉक्टर सुशांत शर्मा ने संयुक्त रुप से आशा वर्कर के बीच में सांझा कीं । मंगलवार को पटौदी मंडी नगर परिषद के पटौदी नागरिक अस्पताल में मोतियाबिंद मुक्त भारत अभियान के तहत अरुणोदय चौरिटेबल ट्रस्ट तथा सिविल हॉस्पिटल गुरुग्राम के सौजन्य से जागरूकता कार्यक्रम का आयोजन किया गया।  इसका मुख्य उद्देश्य भारत को पूरी तरह से अंधता से मुक्त करना रहा । इसी मौके पर सीनियर मेडिकल ऑफिसर के द्वारा कार्यक्रम में मौजूद विभिन्न आशा वर्कर से भी आंखों सहित नेत्र रोगों के विषय में विभिन्न प्रकार की जानकारी प्राप्त की गई, कि वह नेत्र रोगों के विषय में कितना अधिक जागरूक है ।

इस मौके पर विभिन्न आशा वर्कर के द्वारा बताया गया कि उनके द्वारा किए जाने वाले कार्य क्षेत्र में जन्म से लेकर अन्य कारणों की वजह से भी बहुत से ऐसे लोग मौजूद हैं जोकि नेत्रहीन है या फिर उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह से समाप्त हो चुकी है। इस मौके पर आई सर्जन डॉक्टर सुशांत शर्मा ने सभी आशा वर्कर का आह्वान किया कि वह अपने अपने कार्य क्षेत्र में लोगों को नेत्रदान करने के लिए प्रेरित करें । इसके साथ ही ऐसे लोगों की भी सूची तैयार करें , जो कि किसी भी कारण से देखने में सक्षम नहीं है । ऐसे लोगों की आंखों की जांच कर इस बात के प्रयास किए जाएंगे कि आंखों का उपचार कर नेत्र रोशनी उपलब्ध करवाई जा सके ।

इसी मौके पर सीनियर मेडिकल ऑफिसर डॉक्टर नीरू यादव ने बताया कि जिला गुरुग्राम में पहला नेत्रदान पटोरी क्षेत्र से ही किया गया। जो कि पटौदी के लोगों के लिए अपने आप में एक बहुत ही प्रेरणादाई कार्य है । इसी मौके पर अरुणोदय चौरिटेबल ट्रस्ट की एजुकेटर उर्मिला के द्वारा बताया गया कि मृत्यु के उपरांत नेत्र औसतन 6 घंटे तक स्वस्थ रहते हैं या फिर नेत्र खराब नहीं होते हैं। ऐसे में जागरूक अभियान चलाकर लोगों को इस बात के लिए प्रेरित किया जाने की जरूरत है, जिससे कि मृत्यु के उपरांत लोग अधिक से अधिक स्वयं या फिर अपने परिजनों के नेत्रदान करने के लिए आगे आए । आज भी भारत देश में करोड़ों लोग मौजूद हैं जो कि पूरी तरह से अपनी आंखों से देखने में सक्षम नहीं है । इसी मौके पर पटौदी नागरिक अस्पताल के डॉक्टर गुरिंदर सिंह के अलावा सिविल अस्पताल गुरुग्राम से आए हुए प्रशिक्षक चिकित्सकों की भी टीम मौजूद रही इनके द्वारा भी आंखों की विभिन्न प्रकार की बीमारियों और इन बीमारियों की वजह से देखने की क्षमता कम होने के विषय में विस्तार से जानकारी दी गई ।

डॉक्टर सुशांत शर्मा आई सर्जन ने बताया आंख में कॉर्निया सहित विभिन्न प्रकार के पांच अन्य अलग-अलग ऑर्गन उपलब्ध होते हैं और यही ऑर्गन किसी भी ऐसे जरूरतमंद व्यक्ति को आंखों में लगाए जा सकते हैं, जिसे की अपनी आंखों से देखने में परेशानी हो रही हो । उन्होंने भी इस मौके पर एक बार फिर से सभी का आह्वान किया कि मोतियाबिंद मुक्त भारत अभियान को सफल बनाने के लिए नेत्रदान के लिए हम सभी को मिलकर जन आंदोलन चलाने की जरूरत है । इसी मौके पर आशा वर्कर्स का सामान्य ज्ञान जानने के लिए सीनियर मेडिकल ऑफिसर ने यह भी सवाल किया कि जिस प्रकार मृत्यु के उपरांत औसतन 6 घंटे तक आंखें खराब नहीं होती हैं, ठीक उसी प्रकार शरीर के फेफड़े लीवर दिल किडनी जैसे ऑर्गन भी मृत्यु के उपरांत कई घंटे तक उपयोगी रहते हैं । यदि समय रहते इन ऑर्गन का दान कर दिया जाए तो , हमारा यह एक छोटा सा प्रयास किसी भी गंभीर रोगी या जरूरतमंद की जिंदगी को नया जीवन देने में सहायक साबित होगा। 

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