रोग कारक ग्रहयोग
२👉 सूर्य यदि कुम्भ राशिगत हो तो धमनी में अवरोध उत्पन्न करता है। (सारावली, २२ । ११)
३👉 शुक्र यदि मकर राशिगत हो तो जातक हृदयरोगी होता है। (सारावली)
४👉 षष्ठेश सूर्य यदि चतुर्थ भावगत हो तो जातक हृदरोगी होता है। (जातकालंकार २।१६)
५👉 लग्नेश निर्बल राहु यदि चतुर्थगत हो तो हृच्छूल रोग होता है। (जा०पारि० ६ । १९)
६👉 सूर्य यदि चतुर्थ भावगत हो तो हृदय रोग उत्पन्न करता है। (जापारि० ८।६८)
७👉 चन्द्रमा शत्रुक्षेत्री होने पर हृदयरोग उत्पन्न करता है। (जापारि० ८।११२)
८👉 तृतीयेश यदि केतु से युक्त हो तो जातक हृदयरोगी होता है। (जा० पारि० १२।३६)
९👉 चतुर्थभाव में पापग्रह हो और चतुर्थेश पापयुक्त हो तो हृदयरोग उत्पन्न करता है। (सर्वार्थचिन्तामणि)
१०👉 मकर राशिगत सूर्य सामान्य हृदय रोग उत्पन्न करता है। (जा०सारदीप)
११👉 सूर्य वृष राशिगत हो तो जातक हृदयरोग से ग्रस्त होता है। (हो०प्र० १०। ४४)
१२👉 वृश्चिक राशिगत सर्य हृदयरोग उत्पन्न करता है। (शम्भु हो०, १० । ४६)
१३👉 चतुर्थ भावगत षष्ठेश की युति सूर्य-शनि के साथ होनेपर हृदयरोग होता है। (जा०५० ६।११)
१४👉 चतुर्थगत यदि शनि. भौम, गरु हो तो हृदयरोग होता है। (होरारल)
१५👉 तृतीयेश राहु-केतु से युक्त हो तो हृदयाघात होता है। (ज्यो०र०)
१६👉 यदि शनि निर्बल शयनावस्था में हो तो भी हृदयशूल रोग होता है। (ज्यो०र०)
१७👉 सूर्य यदि सिंह राशिगत हो तो जातक हृदयरोग से ग्रस्त होता है। (वी०वी० रमन)
१८👉 शनि यदि अष्टम भावगत हो तो हृच्छूल रोग उत्पन्न करता है। (गर्गवचन)
१९👉 मकर राशिगत सूर्य हृदय रोग प्रदान करता है। (मू०सू० ३।२।५)
२०👉 राहु यदि द्वादशस्थ हो तो हृच्छूल रोग देता है। (भाव०प्र०)
२१👉 चतुर्थेश चतुर्थ भावगत पापयुक्त हो तो हृदयरोग देता है। (गदावली २।२३)
२२👉 सिंह राशि के द्वितीय द्रेष्काण में यदि जन्म हो तो हृच्छूल रोग होता है। (गदावली २। २४)
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