दिल्ली सरकार ने बाइक टैक्सी की बैन, 1 लाख हुए बेरोजगार, नाराज लोग बोले- हमारे पास जॉब नही,
दिल्ली सरकार ने बाइक टैक्सी की बैन, 1 लाख हुए बेरोजगार, नाराज लोग बोले- हमारे पास जॉब नही, बच्चों को क्या खिलाएं-कैसे पढाएं, अब क्या फांसी लगा लें?
मेरा नाम सुनील कुमार है. मैं अपनी कहानी बताऊं, तो मैं पहले कैब चलाता था. मेरी अपनी कैब थी. कोरोना के वक्त बेचनी पड़ी, क्योंकि बच्चों की फीस भरनी थी. मेरे पास पुरानी बाइक थी, मैं उसे बाइक टैक्सी के तौर पर चलाने लगा. घर किसी तरह संभला था, अब सरकार ने बाइक टैक्सी बैन कर दी. अब बच्चों की फीस कहां से दूं, उन्हें कैसे पढ़ाऊं. बेटा 12वीं में है, क्या उससे कहूं कि तुम भी काम करो, क्योंकि मेरे पास काम नहीं है. उम्र हो गई है, तो कोई जॉब भी नहीं देगा. समझ नहीं आ रहा क्या करूं, अब फांसी लगा लूं क्या.
47 साल के सुनील ये बात गुस्से में कहते हैं, लेकिन इसमें बेबसी ज्यादा छिपी है. दिल्ली सरकार ने 20 फरवरी को एक आदेश जारी किया, जिसमें लिखा था कि निजी बाइक का कॉमर्शियल यूज नहीं किया जा सकेगा, अगर कोई ऐसा करते पाया गया तो 1 लाख रुपए तक का जुर्माना लगेगा. इस आदेश से दिल्ली में बाइक टैक्सी चलाने वाले 80 हजार से 1 लाख लोगों की हालत सुनील जैसी हो गई. वे कहते हैं कि खाने तक का पैसा नहीं है. बच्चे भूखे रोते हैं, ऐसे में कुछ सही गलत नहीं दिखता.
ये सर्विस इस्तेमाल करने वाले लोग भी परेशान हैं. इसकी 2 वजहें है- पहली बाइक टैक्सी ऑटो या कैब के मुकाबले बहुत सस्ती होती है. इनका किराया कैब से एक चौथाई और ऑटो से लगभग आधा होता था. दूसरी कि दिल्ली के जाम में ये कम समय में मंजिल तक पहुंचा देती थीं. कोरोना के दौरान जिनका काम छिन गया, घर में खड़ी बाइक उनके लिए रोजगार हो गई. बहुत से लोग जो कुछ और नहीं कर पा रहे थे और जिनके पास बाइक थी, उन्होंने बाइक राइड सर्विस देने वाले ऐप पर आईडी बनाई और ये काम शुरू कर दिया. इसमें कोई खर्च भी नहीं आया और रोज 5 सौ रुपए तक कमाई हो जाती.
ये सर्विस बंद होने के बाद जब उन लोगों से बात की गई, जो बाइक टैक्सी से अपना परिवार चला रहे थे तो उनमें से एक 53 साल के वेद प्रकाश मिले ने बताया, तीन साल से बाइक टैक्सी चला रहे थे. वेद प्रकाश कहते हैं, परिवार में 5 लोग हैं. उनका खर्च कैसे उठाऊं. पहले रोज 700-800 रुपए कमा लेता था. इतने में घर चलाना मुश्किल था, लेकिन फिर भी चल तो रहा था. बाइक टैक्सी बंद हुई तो, सब रुक गया. अब इस उम्र में और क्या काम करूंगा? 10वीं तक पढ़ा हूं. तीन बच्चे हैं, जो पढ़ाई कर रहे हैं. अगर मैं कोई काम नहीं कर पाया, तो उनकी पढ़ाई रुक जाएगी.
2020 में कोरोना आने के बाद से कई परिवारों के लिए मुश्किल वक्त शुरू हुआ. उनके काम-धंधे बंद हो गए. चीजें बेचकर घर की जरूरतें पूरी करनी पड़ीं. सुनील कुमार भी उनमें से एक हैं. वे कहते हैं, महामारी का वक्त बहुत मुश्किल था. मुझे अपनी टैक्सी बेचनी पड़ी. कुछ समय बाद डीटीसी बस पर बाइक टैक्सी का एड दिखाई दिया. मैंने बाइक चलानी शुरू कर दी. अब बाइक टैक्सी बंद होने से दोबारा वहीं खड़ा हूं. अच्छा है कि दिल्ली में मेरा अपना घर है. नहीं तो, सड़क पर आ गया होता. मेरे पास अब कोई काम नहीं है.
दिल्ली सरकार का कहना है कि उसे बाइक टैक्सी सर्विस चलाने के बारे में बहुत जानकारी नहीं थी, अब पता चला है कि इससे 1988 के मोटर व्हीकल एक्ट का उल्लंघन होता है, इसलिए इसे बैन किया जा रहा है. इतने साल से इस सर्विस पर सरकार 5% GST ले रही थी. ऐसे में सरकार की दलील समझ नहीं आती. 2 हफ्ते से खाली बैठे सुनील कहते हैं, नौकरी के लिए कई जगह बात की, 12-14 हजार से ऊपर और सिक्योरिटी गार्ड के अलावा कोई नौकरी मिल नहीं रही है. मेरी उम्र ऐसी हो गई है कि मैं 12 घंटे कहीं बैठकर लगातार काम नहीं कर सकता. बाइक टैक्सी चलाने में ये सहूलियत थी कि मैं अपने हिसाब से काम कर पाऊं. परिवार और काम को बराबर टाइम दे पाता था.
हम जो काम करते हैं, उससे हमें गिग वर्कर (काम के हिसाब से पेमेंट पाने वाले) कहते हैं यानी हम अपने हिसाब से काम करते हैं. मैं एक हफ्ते से घर बैठकर इंटरनेट पर यही रिसर्च कर रहा हूं. दुनिया के सभी देशों और भारत के दूसरे शहरों में बाइक टैक्सी चल रही है. दिल्ली सरकार ने ही इसे बंद कर दिया है. लोकेश शर्मा पिछले 8 साल से ड्राइवर हैं. वे कहते हैं, काम बंद होने की वजह से रोज की जरूरतें भी पूरी नहीं कर पा रहा हूं. खर्च चलाने के लिए कर्ज लेना पड़ रहा है. हमारी सबसे बड़ी समस्या ये है कि हमें नहीं पता किससे मदद मांगें.
पता चला कि एक NGO हमारा मसला उठा सकता है, तो हम उसके पास पहुंचे. हम न्यूज वालों के पास भी जा रहे हैं. 15 दिनों से रोज किसी न किसी से बात कर रहे हैं कि कोई हमारी मदद कर दे. परिवार में पत्नी और दो बच्चे हैं. बड़े भाई के साथ दिक्कतें हैं, उनके परिवार की भी मदद करनी पड़ती है. मैं दो सप्ताह से खाली बैठा हूं. काम छूट जाना बहुत बड़ा धक्का होता है जिसके साथ ऐसा होता है, उसकी समझ खत्म हो जाती है. बिना सिफारिश कहीं काम नहीं मिलता. ये काम हमारे लिए नाव की तरह था. हम सब भंवर में फंसे थे और इस नाव के साथ जिंदगी चला रहे थे. मैं रोज 7-8 सौ रुपए कमा रहा था. बेटी के लिए रोज दो सौ रुपए जमा करने की कोशिश करता था. अब नहीं कर पा रहा हूं.
लोकेश कहते हैं, बाइक टैक्सी चलाने वालों को भी दिक्कतें हैं. किसी की मां बीमार है, कोई बच्चों की फीस भर रहा है, किसी को बाइक की किस्त देनी है. सरकार ने हमारे बारे में नहीं सोचा. हमें बताएं कि हम कहां जाकर अपनी बात रखें? सरकार जल्द बाइक टैक्सी पर कानून लाए और हमारा काम फिर से शुरू कराए. 30 साल के एक शख्स अपना नाम नहीं बताते, लेकिन परेशानी शेयर करने के लिए तैयार हो जाते है. वे बताते हैं, मैं नौकरी करता हूं और बचे टाइम में बाइक चलाता था. नौकरी से जितनी सैलरी मिल रही थी, उससे परिवार का खर्च नहीं चल पा रहा था. इसलिए बाइक टैक्सी शुरू की थी. परिवार में चार लोग हैं. पूरा खर्च मैं ही चलाता हूं. गांव भी पैसे भेजने पड़ते हैं.
फिलहाल बाइक बंद है, मैं अपने बाकी खर्च पूरे नहीं कर पा रहा हूं. किराये पर रहता हूं, बाइक भी 4 हजार रुपए महीने की किस्त पर है. किराया और बाकी खर्च मिलाकर 8 हजार महीना खर्च हो जाते हैं. दो हजार ही बचते थे. बाइक चलाकर 200-300 रुपए एक्स्ट्रा कमा लेता था. उससे मेरा रोज का खर्च चल रहा था. मेरे पिता नहीं है, बस मां और भाई हैं गांव में. मैं शादीशुदा हूं, तीन साल की एक बेटी है. इतने बड़े परिवार का खर्च एक नौकरी करके नहीं चलाया जा सकता. मैं रोज 4-5 घंटे एक्स्ट्रा काम करता हूं ताकि जरूरतें पूरी कर सकूं.
दिल्ली का मानवाधिकार संगठन एम्पावरिंग ह्यूमैनिटी बाइक टैक्सी बैन का मुद्दा उठा रहा है. संस्था के डायरेक्टर हेमंत शर्मा कहते हैं, कई लोगों ने हमसे संपर्क किया जो बाइक राइड कंपनियों के साथ काम करते हैं. दिल्ली सरकार के आदेश पर असमंजस की स्थिति है. कई लोग मानते हैं कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद दिल्ली सरकार ने ऐसा किया है, कुछ को लग रहा है कि दिल्ली सरकार ने खुद से ये आदेश जारी किया है. दिल्ली सरकार का कहना है कि उसे बाइक टैक्सी के बारे में अब पता चला है, इसके बाद ये आदेश निकाला गया है. सरकार के इस तर्क को स्वीकार नहीं किया जा सकता, क्योंकि डीटीसी और दिल्ली मेट्रो जैसी सरकारी सर्विस में भी इनके विज्ञापन लगते थे. सरकार ने इन विज्ञापनों से पैसा कमाया है.
दिल्ली में कुल कितने लोग बाइक टैक्सी चलाते हैं, इसका ऑफिशियल आंकड़ा नहीं है. अनुमान है कि ऐसे करीब एक लाख लोग हैं. वहीं कैब सर्विस देने वाली कंपनी ऊबर के एक प्रवक्ता के मुताबिक, दिल्ली में 70 से 80 हजार लोग अलग-अलग प्लेटफार्म पर बाइक टैक्सी सर्विस से जुड़े हैं. हेमंत शर्मा कहते हैं, रातों-रात इनके रोजगार को बंद नहीं किया जा सकता है. इस प्रतिबंध से दिल्ली की बड़ी आबादी प्रभावित हो रही है. हर ड्राइवर एक परिवार भी चला रहा है, अगर माना जाए एक परिवार में तीन लोग भी हैं, तो कहा जा सकता है कि लगभग चार-साढ़े चार लाख लोग सीधे प्रभावित हैं.
सरकार के आदेश के मुताबिक, बाइक टैक्सी चलाते हुए पकड़े जाने पर एक लाख रुपए तक का जुर्माना लगाया जा सकता है. दिल्ली में बाइक चलाने वाले ज्यादातर लोगों की सालाना बचत भी इतनी नहीं है. ऐसे में इतने बड़े जुर्माने का प्रावधान अमानवीय है. हेमंत शर्मा कहते हैं, हम दिल्ली सरकार से मांग कर रहे हैं कि इस प्रतिबंध को तुरंत लागू ना किया जाए. बेशक ये गैरकानूनी है, लेकिन ये भी समझना होगा कि ये एक्ट 40 साल पुराना है. उस समय इंटरनेट और मोबाइल एप्लिकेशन नहीं थे. सरकार के प्रतिबंध के बावजूद अब भी कैब कंपनियों के ऐप्स पर बाइक राइड मिल रही है. कई राइडर पकड़े जाने का खतरा उठाते हुए भी काम कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें परिवार के लिए खाने का इंतजाम करना है.
ऐसे ही एक शख्स ने नाम न जाहिर करते हुए बताया- जो लोग दूसरे के पेट की भूख को नहीं समझते, वही इस तरह के आदेश निकालते हैं. हमें तो परिवार पालना ही है. इसलिए छुप-छुपकर काम कर रहे हैं. पकड़े गए तो हाथ पैर जोड़ लेंगे, पैरों में गिर जाएंगे. काम नहीं करेंगे तो बच्चों के लिए दूध कहां से आएगा. बाप के सामने, जब बच्चे भूखे रोते हैं तो उसे सही-गलत नहीं दिखता. जब दिल्ली सरकार से इसके बारे में जानने के लिए परिवहन मंत्री कैलाश गहलोत और उनके ऑफिस में संपर्क किया गया, तो कोई जवाब नहीं मिल सका. दिल्ली में बाइक टैक्सी सर्विस दे रही कंपनियों ने भी अभी ऑफिशियली इस बैन पर कुछ नहीं कहा है. हालांकि फूड डिलीवरी सर्विस देने वाले जोमैटो और स्विगी ने लेटर लिखकर शिकायत की है कि उनके डिलीवरी राइडर को भी इस बैन की आड़ में परेशान किया जा रहा है.
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