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सर्दियों में घट रही बारिश, रबी की फसल के लिए नहीं बेहतर

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Monsoon Update: सर्दियों में घट रही बारिश, रबी की फसल के लिए नहीं बेहतर

कमजोर पश्चिमी विक्षोभ के कारण ही पहले दिसंबर और जनवरी में पूरे भारत में सामान्य से कम बरसात रही। फरवरी का महीना अभी चल ही रहा है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से भी इनकार नहीं किया जा सकता।

नई दिल्ली । जलवायु परिवर्तन का असर कहें या पश्चिमी विक्षोभों की घटती बढ़ती संख्या देशभर में सर्दियों की बरसात घट रही है। पिछले छह वर्षों की ही बात करें तो 2019 और 2022 को छोड़कर हर बार सामान्य से कम वर्षा दर्ज की गई है। मौसम विज्ञानियों के अनुसार जलवायु परिवर्तन के चलते हालात बदल रहे हैं। वहीं कृषि विज्ञानियों के अनुसार इसकी वजह से रबी की फसल का उत्पादन भी कम होने की संभावना है।

माैसम विभाग के अनुसार सर्दियों की बरसात जनवरी और फरवरी में मापी जाती है। मार्च से मई तक प्री मानसून, जून से सितंबर तक का समय मानसून और अक्टूबर से दिसंबर तक पोस्ट मानसून होता है। इस लिहाज से जनवरी और फरवरी दोनों ही माह में बरसात अब कम हो रही है। मालूम हो कि इन दोनों माह की सामान्य औसत बरसात 39.8 मिमी (जनवरी की 17.1 मिमी और फरवरी की 22.7 मिमी) है।

आंकड़ों के मुताबिक इस वर्ष की ही बात करें तो एक जनवरी से 15 फरवरी तक देशभर में 30 प्रतिशत कम बरसात हुई है। सन 2018 से 2023 के दौरान जिन दो वर्षों में यह ज्यादा हुई, उसको भी चरम मौसमी घटनाओं से जोड़कर देखा जा रहा है। अन्य वर्षों में तो यह सामान्य का आंकड़ा भी नहीं छू पाई।

2018 से 2023 के दौरान देशभर में हुई सर्दियों की वर्षा का आंकड़ा

साल   वर्ष
2018    62 प्रतिशत कम
2019    26 प्रतिशत ज्यादा
2020   01 प्रतिशत कम
2021   32 प्रतिशत कम
2022    47 प्रतिशत ज्यादा
2023   30 प्रतिशत कम
दिसंबर 2022 में वर्ष 2016 के बाद सबसे कम 13.6 मिमी वर्षा दर्ज की गई।
जनवरी 2023 में बरसात का अनुपात 25 प्रतिशत कम रिकार्ड किया गया।

उत्तर भारत के कुछ राज्यों में जनवरी 2023 की वर्षा का आंकड़ा

राज्य       वर्षा
बिहार          98 प्रतिशत कम

उत्तर प्रदेश   65 प्रतिशत कम

उत्तराखंड     47 प्रतिशत कम

पंजाब         33 प्रतिशत कम

क्या बोले मौसम विज्ञानी?

भारत मौसम विज्ञान विभाग के महानिदेशक डा मृत्युंजय महापात्रा ने बताया कि बरसात की कमी या अधिकता मजबूत पश्चिमी विक्षोभों की संख्या और सक्रियता पर निर्भर करती है। इनकी कमी से वर्षा घट जाती है तो इनकी अधिकता से बढ़ जाती है। कमजोर पश्चिमी विक्षोभ के कारण ही पहले दिसंबर और जनवरी में पूरे भारत में सामान्य से कम बरसात रही। फरवरी का महीना अभी चल ही रहा है। जलवायु परिवर्तन के प्रभाव से भी इनकार नहीं किया जा सकता। इस दिशा में अध्ययन-विश्लेषण किया जा रहा है।

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्था के प्रधान कृषि विज्ञानी डा जेपीएस डबास ने बताया कि बरसात का नहीं होना या बहुत कम होना फसलों की सेहत के लिए कतई अच्छा नहीं कहा जा सकता। दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, पंजाब और उत्तर प्रदेश में अनेक ऐसे क्षेत्र हैं जहां फसलों की सिंचाई का बेहतर प्रबंध नहीं है। ऐसे में वहां जौ एवं सरसों जैसी ऐसी फसलें उगाई जाती हैं जो कम पानी में भी उग जाएं। इन फसलों और क्षेत्रों के लिए वर्षा किसी वरदान से कम नहीं होती। जिन इलाकों में भूजल की गुणवत्ता अच्छी नहीं होती है, वहां भी वर्षा का पानी फसलों के लिए लाभप्रद होता है। लेकिन सर्दियों की कम होती बरसात खासतौर पर रबी की फसलों के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती।

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