Publisher Theme
I’m a gamer, always have been.
Rajni

गो-पुत्र हरफूल जाट 28 मई बलिदान दिवस)

26

गो-पुत्र हरफूल जाट 28 मई बलिदान दिवस)

17 बूचड़खाने तोड़ने वाले विश्व के सबसे बड़े गौरक्षक वीर हरफूल का जन्म 1892 ई० में भिवानी जिले के लोहारू तहसील के गांव बारवास में एक जाट क्षत्रिय परिवार में हुआ था। उनके पिता एक किसान थे। बारवास गांव के इन्द्रायण पाने में उनके पिता चौधरी चतरू राम सिंह रहते थे। उनके दादा का नाम चौधरी किताराम सिंह था। 1899 में हरफूल के पिताजी की प्लेग के कारण मृत्यु हो गयी। इसी बीच उनका परिवार जुलानी (जींद) गांव में आ गया। यहीं के नाम से उन्हें वीर हरफूल जाट जुलानी वाला कहा जाता है।

उसके बाद हरफूल सेना में भर्ती हो गए। उन्होंने 10 साल सेना में काम किया। उन्होंने प्रथम विश्वयुद्ध में भी भाग लिया। उस दौरान ब्रिटिश आर्मी के किसी अफसर के बच्चों व औरत को घेर लिया। तब हरफूल ने बड़ी वीरता दिखलाई व बच्चों की रक्षा की। अकेले ही दुश्मनों को मार भगाया।

पहला हत्था तोड़ने का किस्सा- 28 जुलाई,1930 – टोहाना में मुस्लिम राँघड़ों का एक गाय काटने का एक कसाईखाना था। वहां की 52 गांवों की नैन खाप ने इसका कई बार विरोध किया। कई बार हमला भी किया जिसमें नैन खाप के कई नौजवान शहीद हुए व कुछ कसाई भी मारे गए। लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई क्योंकि ब्रिटिश सरकार मुस्लिमों के साथ थी और खाप के पास हथियार भी नहीं थे।

तब नैन खाप ने वीर हरफूल को बुलाया व अपनी समस्या सुनाई। हिन्दू वीर हरफूल भी गौहत्या की बात सुनकर लाल पीले हो गए और फिर नैन खाप के लिए हथियारों का प्रबन्ध किया। हरफूल ने युक्ति बनाकर दिमाग से काम लिया। उन्होंने एक औरत का रूप धरकर कसाईखाने के मुस्लिम सैनिकों और कसाइयों का ध्यान बांट दिया। फिर नौजवान अन्दर घुस गए उसके बाद हरफूल ने ऐसी तबाही मचाई कि बड़े-बड़े कसाई उनके नाम से ही कांपने लगे। उन्होंने कसाइयों पर कोई रहम नहीं खाया। सैंकड़ों मुस्लिम राँघड़ो को मौत के घाट उतार दिया और गऊओं को मुक्त करवाया। अंग्रेजों के समय बूचड़खाने तोड़ने की यह प्रथम घटना थी।

इस महान साहसिक कार्य के लिए नैन खाप ने उन्हें सवा शेर की उपाधि दी व पगड़ी भेंट की। उसके बाद तो हरफूल ने ऐसी कोई जगह नहीं छोड़ी जहां उन्हें पता चला कि कसाईखाना है, वहीं जाकर धावा बोल देते थे।

उन्होंने जींद, नरवाना, गौहाना, रोहतक आदि में 17 गौहत्थे तोड़े। उनका नाम पूरे उत्तर भारत में फैल गया। कसाई उनके नाम से ही थर्राने लगे। उनके आने की खबर सुनकर ही कसाई सब छोड़कर भाग जाते थे। मुसलमान और अंग्रेजों का कसाईवाड़े का धंधा चौपट हो गया।

इसलिए अंग्रेज पुलिस उनके पीछे लग गयी। किन्तु हरफूल कभी हाथ न आये। कोई अग्रेजों को उनका पता बताने को तैयार नहीं हुआ।

वीर हरफूल उस समय चलती फिरती कोर्ट के नाम से भी मशहूर थे। जहाँ भी गरीब या औरत के साथ अन्याय होता था वे वहीं उसे न्याय दिलाने पहुंच जाते थे। उनके न्याय के भी बहुत से किस्से प्रचलित हैं।

अंग्रेजों ने हरफूल के ऊपर इनाम रख दिया और उन्हें पकड़ने की प्रक्रिया आरम्भ कर दी।

इसलिए हरफूल अपनी एक ब्राह्मण धर्म-बहन के पास झुंझनु (राजस्थान) के पंचेरी कलां पहुंच गए। इस ब्राह्मण बहन की शादी भी हरफूल ने ही करवाई थी। यहां का एक ठाकुर भी उनका दोस्त था। वह इनाम के लालच में आ गया व उसने अंग्रेजों के हाथों अपना जमीर बेचकर दोस्त व धर्म से गद्दारी की।

अंग्रेजों ने हरफूल को सोते हुए गिरफ्तार कर लिया। कुछ दिन जींद जेल में रखा लेकिन उन्हें छुड़वाने के लिये हिन्दुओं ने जेल में सुरंग बनाकर सेंध लगाने की कोशिश की और विद्रोह कर दिया। इसलिये अंग्रेजों ने उन्हें फिरोजपुर जेल में चुपके से ट्रांसफर कर दिया।

बाद में 28 जुलाई 1936 को चुपके से पंजाब की फिरोजपुर जेल में अंग्रेजों ने उन्हें रात को फांसी दे दी। उन्होंने विद्रोह के डर से इस बात को लोगों के सामने स्पष्ट नहीं किया। उनके पार्थिव शरीर को भी हिन्दुओं को नहीं दिया गया। उनके शरीर को सतलुज नदी में बहा दिया गया।

इस तरह देश के सबसे बड़े गौरक्षक, गरीबों के मसीहा, उत्तर भारत के रॉबिनहुड कहे जाने वाले वीर हरफूल सिंह ने अपना सर्वस्व गौमाता की सेवा में बलिदान कर दिया।

Comments are closed.

Discover more from Theliveindia.co.in

Subscribe now to keep reading and get access to the full archive.

Continue reading