गाय ब्रह्मांड का सबसे अधिक परोपकारी जीव – महामंडलेश्वर धर्मदेव
वैज्ञानिक प्रमाणिकता गाय के दूध में 13 प्रकार के विभिन्न पोषक तत्व
इस ब्रह्मांड में इस प्रकार के पोषक तत्व केवल जननी के दूध में ही उपलब्ध
जननी के साथ साथ गाय को इसीलिए ही माता की मान्यता मिली
वास्तव में गाय उपभोग की नहीं जगत कल्याण के बहु उपयोगी जीव
मानव शरीर और ब्रह्मांड पंचतत्व से बना गाय के पंचगव्य का भी अपना महत्व
कामधेनु गाय और महत्व को वर्णन भी हमारे अपने धर्म शास्त्रों में लिखा
फतह सिंह उजाला
पटौदी । गाय इस ब्रह्मांड का सबसे अधिक परोपकारी जीव है । गाय का जीवन उसके जीते जी और देवलोक गमन के बाद भी लोक कल्याण के काम ही आ रहा है। 16 कला संपूर्ण कहे जाने वाले भगवान श्री कृष्णा का को प्रेम इस ब्रह्मांड में अपने आप में ही एक गाय प्रेम की गाय संरक्षण की बहुत बड़ी प्रेरणा भी है । अनादि काल से लेकर मौजूदा समय में भी प्रकांड विद्वान, ऋषि -मुनि, तपस्वी, साधु -संत और विशेष रूप से गाय प्रेमी, गाय का पालन पोषण करते आ रहे हैं। हमारे अपने वेद पुराण धर्म ग्रंथो में भी कामधेनु गाय का विस्तार से वर्णन किया गया है। वास्तव में गाय उपभोग या केवल मात्र वर्ष में एक बार गोपाष्टमी पर पूजा पाठ का जीव नहीं है। गौ माता सही मायने में उपयोग का जीव है । दूसरे शब्दों में गाय को जीव ना कह कर अनादि काल से और मौजूदा समय में भी माता के रूप में मान्यता देकर इसको माता ही कहा जा रहा है। यह बात गोपाष्टमी पर्व के मौके पर विशेष बातचीत के दौरान वेद, पुराण, गीता, धर्म ग्रंथ, संस्कृत के प्रकांड विद्वान समाज चेतना के अग्रज महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने विशेष बातचीत के दौरान कही।
उन्होंने गाय के विषय में नई जानकारी देते हुए बताया वैज्ञानिक शोध में भी यह प्रमाणित हो गया है कि गाय के दूध में विभिन्न 13 प्रकार के पोषक तत्व पाए गए हैं। इस प्रकार के पोषक तत्व केवल और केवल मानव को जन्म देने वाली जनानी के दूध में ही उपलब्ध होते हैं । इसके विपरीत भैंस भेड़ बकरी वह अन्य पशुओं के दूध में नाम मात्र के ही पोषक तत्व पाए गए हैं। इस प्रकार से यह बात कहने में संकोच नहीं होना चाहिए गाय और जननी में हमें भेदभाव की विचारधारा को अपने आसपास भी नहीं आने देना चाहिए। उन्होंने कहा भारतीय सनातन संस्कृति और हिंदुत्व विचारधारा अनादि काल से ही प्रकृति प्रेमी और जीवो की संरक्षक रही है । आज हम सभी को इस बात पर भी गंभीरता से विचार करना चाहिए कि आखिर क्या कारण और क्या मजबूरियां हैं ? जो गोधन यहां वहां पर अनावश्यक रूप से घूमते हुए या बैठे हुए दिखाई देने के साथ-साथ अपना पेट भरने के लिए संघर्ष करता हुआ दिखाई देता है ? भारतीय सनातन संस्कृति और परिवार में आज भी परंपरा चली आ रही है की पहली रोटी गाय के नाम की ही निकल जाती है।
महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कहा भारतीय सनातन संस्कृति और हिंदू विचारधारा में केवल मात्र गाय को ही माँ नहीं कहा गया ।यहां तो तुलसी को भी माँ कहा गया है, गंगा को भी माँ कहा गया है और धरती को भी माँ कहा गया है। कुल मिलाकर के ब्रह्मांड और मानव शरीर पंचतत्व से बना हुआ है। इसी कड़ी में गाय के पंचगव्य का भारतीय सनातन संस्कृति में देश ही नहीं दुनिया के विभिन्न देशों में विशेष महत्व है विभिन्न प्रकार के अनुष्ठान इत्यादि किया जाने के मौके पर भी हवन यज्ञ स्थल अथवा पूजा स्थल को गाय के गोबर से लिपाई कर तैयार किया जाने का सिलसिला आज भी बना हुआ है। उन्होंने कहा कि इसमें कोई शक अथवा गुंजाइश नहीं है कि भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी गाय के संरक्षण और संवर्धन के लिए पूरी तरह से समर्पित हैं । पीएम मोदी का गाय के प्रति प्रेम अक्सर मीडिया के माध्यम से भी सामने आता रहा है। हमारी संस्कृति पर्यावरण में शामिल विभिन्न प्रकार के जीव जंतु वनस्पति खनिज औषधीय पौधे सहित अन्य उपयोगी पदार्थ के लिए अपनी एक अलग पूरी दुनिया में पहचान बनाए हुए हैं। उन्होंने बात समाप्त करने से पहले कहा प्रकृति और गाय के बचाव और संरक्षण के लिए जिस प्रकार की गंभीर प्रयास भारत में किया जा रहे हैं । उसका अनुसरण पूरी दुनिया को किया जाना चाहिए।
