तंबाकू उत्पादों के सेवन से कैंसर ही नहीं पर्यावरण पर भी पड़ रहा प्रतिकूल असार
तंबाकू का अलग-अलग रूप में सेवन न सिर्फ हमारा स्वास्थ्य को आज बिगाड़ रहा है। आज तंबाकू के कारण न जाने दिन प्रतिदिन लोग अपना दम तोड रहे है। आज इसका शिकार छोटे छोटे बच्चो ने भी शुरू कर दिया है। आज हमारी युवा पीढी इसका शिकार ज्यादा हो रही है। मध्य प्रदेश में अलग-अलग तंबाकू उत्पादों में उपयोग होने वाला प्लास्टिक का 5476 टन कचरा हर साल निकलता है। यह पर्यावरण के लिए बड़ा खतरा है। इसी कारण विश्व स्वास्थ संगठन ने इस साल तंबाकू निषेध दिवस 31 मई की थीम तंबाकू और पर्यावरण रखी है। इसी थीम के आधार पर इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर), एम्स जोधपुर और मध्य प्रदेश वालंटरी हेल्थ एसोसिएशन ने एक अध्ययन कर तंबाकू के अलग-अलग उत्पादों से निकलने वाले प्लास्टिक, कागज और अन्य तरह के कचरे का अनुमान लगाया है। यह रिपोर्ट मंगलवार को जारी की जाएगी। ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2016-17 के अनुसार तंबाकू उत्पादों का उपयोग और इन में इस्तेमाल होने वाले कचरे के आधार पर यह आकलन देश में पहली बार किया गया है। इसमें प्लास्टिक, कागज, एल्युमीनियम फाइल, फिल्टर कचरा शामिल है।
प्रदेश में तंबाकू से निकलने वाला प्लास्टिक कचरा
सिगरेट से उत्पन्न प्लास्टिक कचरा…38.9 टन
बीड़ी से उत्पन्न होने वाला प्लास्टिक कचरा..514 टन
चबाने वाले तंबाकू से उत्पन्न प्लास्टिक कचरा… 4923 टन
तंबाकू उत्पादों का कचरा (सालाना)कागज का कचरा..4409 टन
एल्युमीनियम फाइल कचरा ..116 टन
फिल्टर का कचरा… 28 टन
कुल कचरा…10629 टन
मध्यप्रदेश में हर साल निकलने वाला कचरा इन सब के बराबर
प्लास्टिक कचरा.. 54 लाख प्लास्टिक बाल्टी के बराबर
कागज का कचरा…10.9 लाख पेड़ के बराबरएल्युमीनियम फाइल… एक बोइंग विमान के बराबर
फिल्टर…1.84 लाख टी-शर्ट के बराबर
ग्लोबल एडल्ट टोबैको सर्वे 2016-17 के अनुसार प्रदेश में इतने लोग करते हैं तंबाकू का सेवन
तंबाकू उपयोग करने वाले… 34.2ः
सिगरेट पीने वाले… 1.3ः
बीड़ी पीने वाले… 9.1ःचबाने वाला तंबाकू उत्पाद सेवन करने वाले…28.1ः
धूम्रपान करने वाले… 10.2ः
हर साल 1500 करोड़ रुपए की चपत लगाता है तंबाकू
तंबाकू के अलग-अलग रूप में सेवन से प्रदेश को हर साल करीब 1500 करोड़ रुपए की चपत लगती है। पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया के पांच साल पहले किए गए अध्ययन में यह आंकड़ा 1375 करोड़ था। स्वास्थ्य विभाग के तंबाकू नियंत्रण कार्यक्रम से जुड़े डा.ललित श्रीवास्तव बताते हैं कि तंबाकू सेवन करने वालों की संख्या जिस तरह से बढ़ी है, उस अनुमान से अब यह आंकड़ा हर साल 1500 करोड़ हर साल तक पहुंच चुका है। इसमें तंबाकू उत्पाद खरीदने से लेकर कैंसर और अन्य बीमारियां होने पर इलाज पर 60 प्रतिशत हिस्सा खर्च होता है, जबकि 40 प्रतिशत चपत अप्रत्यक्ष रूप से लगती है। पुरुषों में कैंसर के 55 प्रतिशत मामले तंबाकू की वजह सेतंबाकू का अलग-अलग तरीके से सेवन कैंसर की बड़ी वजह बन रहा है। पुरुषों में 55 फीसद और महिलाओं में कैंसर के 18 फीसद मामले तंबाकू की वजह से हो रहे हैं। तंबाकू की वजह से जितने पुरुषों को कैंसर हो रहा है। उनमें सबसे ज्यादा 31 फीसद मुंह के कैंसर से प्रभावित हो रहे हैं। इसी तरह से तंबाकू के चलते कैंसर से जो महिलाएं प्रभावित हो रही हैं उनमें 29 फीसद को मुंह और 21 फीसद को जीभ का कैंसर हो रहा है। यानी अगर तंबाकू सेवन को रोक दिया जाए तो कैंसर की रोकथाम में काफी हद तक मदद मिल सकती है।
यह हकीकत इंडियन काउंसिल आफ मेडिकल रिसर्च (आइसीएमआर) के नेशनल कैंसर रजिस्ट्री प्रोग्राम की दिसंबर 2021 में जारी रिपोर्ट में सामने आई है। तंबाकू उत्पादों के वेस्ट (गुटखे के रैपर, कागज, सिगरेट का शेष हिस्सा) पारिस्थितिक तंत्र के लिए चुनौती बढ़ा रहे हैं। हर साल तंबाकू के सेवन के कारण होने वाले प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोगों से 8 मिलियन (80 लाख) से अधिक लोगों की मौत हो रही है।
हम सब सोचतें है कि बीड़ी, सिगरेट, पान, गुटखों, धूम्रपान उत्पादों के सेवन से कैंसर हो सकता है, लेकिन इससे भी अधिक खतरा बढ़ रहा है। हमारे पर्यावरण पर, जिससे हम सब प्रभावित हो रहे है। तंबाकू व अन्य चबाने वाले उत्पादों के सेवन से देशभर में करीब 13 लाख लोग अकारण ही मौत के शिकार हो जाते है। वहीं राजस्थान में करीब 65 हजार लोगों की मौत हो जाती है। इस पर राजस्थान के ईएनटी चिकित्सकों, सुखम फाउंडेशन, एसोसियेशन ऑफ आटोलंरेंगोलेजिस्ट ऑफ इंडिया (एओआई) सहित कई सामाजिक संगठनों ने ‘‘विश्व तंबाकू निषेध दिवस’’ के मुद्दे पर गंभीर चिंता जताई है।
सवाई मान सिंह चिकित्सालय जयपुर के कान नाक गला विभाग आचार्य डा.पवन सिंघल ने बताया कि प्रदेश में ही नही देशभर में आज सिगरेट, बीड़ी के बट्स, गुटखे के खाली पाउच, पान मसाला, धूम्रपान उत्पादों को उपभोग के बाद खुले में फैक दिया जाता है। कुछ ही समय बाद ये सब नालियों में जमा हो जाते है। जिससे नालियां भी अवरुद्व हो जाती है, और इसके विषेले पदार्थ मिट्टी में तथा उसके माध्यम से भूमिगत पानी में भी चले जाते है, जैसा कि हम जानते है कि तंबाकू उत्पादों में करीब 7 हजार से अधिक विषेले रसायन होते है। जोकि ना केवल मानव स्वास्थ्य वरण पर्यावरण पर भी बड़े खतरे के रुप में उभर रहे है।
उन्होने बताया कि सिगरेट, बिड़ी के टुकड़े, लोगों द्वारा पान सुपारी, गुटखे की पीक जमीन पर थूकने से जमीन का पानी विषेला होता जा रहा है। सिगरेट के बट में प्लास्टिक होता है, जोकि कभी गलता नही है। सिगरेट बट को बनाने वाले पदार्थ सेल्यूलोज एसीटेट, पेपर और रेयाॅन के साथ मिलकर पानी और जमीन को भी प्रदूषित और विषेला बना रहे है।
तंबाकू के सेवन से मुंह का कैंसर, फैफड़े, हृदय, गले का कैंसर तो होता ही है। यह हमारे पर्यावरण को भी कैंसर बनाता जा रहा है। हवा से लेकर पानी तक पर भी इसका प्रभाव सामने आ रहा है। सिगरेट के बट माइक्रोप्लास्टिक से जुड़े प्रदूषण की बड़ी समस्या बनता जा रहा है।
डॉ.सिंघल ने बताया कि टुथ इनीशिएटिव की रिसर्च में भी सामने आया है कि सिगरेट बट और धूम्रपान के अन्य उत्पादों से जितना विषैला जहर निकलता है। वह हमारे ताजे पानी और नमकीन पानी की 50 फीसदी मछलियों को भी मार सकता है। इसका दूरगामी परिणाम पर्यावरण को नुकसान पहुंचाता है तथा पर्यावरण की खाद्य श्रृंखला पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रहा है।
विश्व तंबाकू निषेध दिवस की थीम के माध्यम से सालभर इस मुद्दे पर काम किया जाता है, ताकि तंबाकू व अन्य उत्पादों के सेवन से होने वाले खतरों व बीमारियों के साथ स्वास्थ्य पर पड़ने वाले प्रभाव के प्रति लोगों में जागरुकता फैलाई जा सके। इसे विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा विश्व तंबाकू निषेध दिवस के रुप में 31 मई 1987 से लगातार मनाया जाता है।
प्रदेश के ईएनटी चिकित्सकों के संगठन व सामाजिक संगठनों के प्रतिनिधियों की और से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, मुख्यमंत्री अशोक गहलोत को विश्व तंबाकू निषेध दिवस के अवसर पर पत्र देकर तंबाकू व चबाने वाले सभी तरह के उत्पादों पर प्रतिबंध लगाने का आग्रह किया जा रहा है। इसके साथ ही इससे होने वाले खतरों के बारे में भी जानकारी दी जाएगी।
वहीं तंबाकू व अन्य धूम्रपान उत्पादों के सेवन से होने वाली बीमारियों पर तंबाकू उत्पादों से होने वाले राजस्व आय से तीन गुणा अधिक इन उत्पादों से बीमार होने वालों के स्वास्थ्य पर खर्च करना पड़ता है। इन सभी उत्पादों की पीक, खाली पाउच, सिगरेट व बीड़ी के बट को साफ करने पर भी सरकार को अधिक खर्च करना पड़ता है।
तंबाकू उत्पादों के सेवन से शरीर को कितना नुकसान होता है, किस-किस तरह की बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है, ये बातें 7 साल के बच्चे से लेकर 70 साल के बुजुर्ग तक सभी को बहुत अच्छी तरह से पता है।
यहां 70 की जगह 100 साल भी तो लिखा जा सकता था? जरूर लिखा जा सकता था, पर पिछले दो दशक के आंकड़े उठाकर देख लें तो साफ हो जाता है कि तंबाकू उत्पादों के बढ़े हुए सेवन ने कई तरह की गंभीर स्वास्थ्य समस्याओं के जोखिम को बढ़ा दिया है। लिहाजा लोगों को आयु कम हो गई है, मोटे तौर पर औसत आयु 60-70 तक सिमट कर रह गई है। तंबाकू उत्पादों से होने वाले नुकसान के इस लेख की शुरुआत इसी विषय को केंद्र बनाकर करते हैं।
आज हम इस सच्चाई से भी बिल्कुल इनकार नहीं किया जा सकता है कि तंबाकू के सेवन से होने वाले गंभीर खतरों से हम सभी अवगत होते हैं, फिर भी यह लत, हमारी जान से सौदा करती आ रही है। सामान्यतौर पर तंबाकू निषेध दिवस जैसे खास दिन पर इसके शारीरिक दुष्प्रभाव और रोकथाम के उपायों को लेकर चर्चा करके मामले को फिर एक बरस के लिए ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है।
तंबाकू उत्पादों के कारण शरीर को होने वाले नुकसान पर अक्सर बात होती रही है पर यह दीर्घकालिक रूप हमारे पर्यावरण को कितना गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है,
तंबाकू उत्पादों का पर्यावरण पर असर
इस साल विश्व तंबाकू निषेध दिवस का थीम पर्यावरण पर केंद्रित है। 5 जून को विश्व पर्यावरण दिवस भी है और तंबाकू निषेध दिवस 2022 का थीम पर्यावरण बचाएंहै। कई शोध इस खतरे को लेकर अलर्ट करते रहे हैं कि तंबाकू, मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों के लिए किसी जहर से कम नहीं है। तंबाकू उत्पादों के वेस्ट (गुटखे के रैपर, कागज, सिगरेट का शेष हिस्सा) पारिस्थितिक तंत्र के लिए चुनौती बढ़ा रहे हैं। हर साल तंबाकू के सेवन के कारण होने वाले प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष रोगों से 8 मिलियन (80 लाख) से अधिक लोगों की मौत हो रही है। वहीं तंबाकू उद्योग का कचरा, तंबाकू उत्पादों को बनाने और पैकेजिंग में पर्यावरण का भयंकर नाश किया जा रहा है। मतलब तंबाकू उत्पाद आपको बीमार तो बना ही रहे हैं, आने वाली पीढ़ियों के लिए भी चुनौती खड़ी हो रही है।
भारत का तंबाकू उद्योग
भारत विश्व में तंबाकू का तीसरा सबसे बड़ा उत्पादक देश है। साल 1995 में यहां कुल 450 मिलियन किलोग्राम (करीब साढ़े चार लाख टन) तंबाकू का उत्पादन होता था, साल दर साल इसमें बढ़ोतरी देखी गई है। अप्रैल 2021 से फरवरी 2022 के बीच, भारत ने 838.80 मिलियन डॉलर कीमत के तंबाकू उत्पादों का निर्यात किया। इस उद्योग की वृद्धि और तंबाकू उत्पादों की बढ़ती मांग का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि फरवरी 2021 की तुलना में 2022 में 12.78ः वृद्धि के साथ भारत ने 78 मिलियन डॉलर कीमत के तंबाकू उत्पादों का निर्यात किया।
तंबाकू उत्पादों से पर्यावरण को कैसे नुकसान?
तंबाकू उत्पादों को तैयार करने में उस पर्यावरण को गंभीर नुकसान पहुंच रहा है, जिसकी हालत पहले से ही खराब है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के आंकड़े बताते हैं-
श्श्वैश्विक स्तर पर सिगरेट को तैयार करने के लिए 60 करोड़ से अधिक पेड़ काटे जाते हैं और 22 बिलियन ( 2200 करोड़) लीटर से अधिक मात्रा में पानी खर्च होता है। इसके अलावा केवल उत्पादों के निर्माण में ही 8.40 करोड़ टन की मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है। पेड़ों की कटाई, पानी और कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन, तीनों पर्यावरण के लिए चुनौतियां पैदा कर रहे हैं। अफसोस इस तरफ ध्यान किसी का नहीं है।
इन आंकड़ों के आधार कहा जा सकता है कि तम्बाकू उगाना, उत्पादों का निर्माण और उपयोग करना हमारे पानी, मिट्टी, समुद्र तटों और वायुमंडल में जहर घोल रहा है। इसके बाद- श्श्हर फिक्र को धुएं में उड़ाता चला गयाश्श् वाले एटीट्यूड में जो सिगरेट का धुंआ पर्यावरण में जा रहा है, वह हमारे जीवन के साथ आने वाली पीढ़ियों के लिए फिक्र बढ़ाने वाला है।
10 वर्षों तक प्रदूषण वाले इलाकों में रहने से फेफड़ों के जितना नुकसान होता है, उतना ही नुकसान 30 साल तक रोजाना सिगरेट पीने से होता है। अब आप खुद ही सोचिए, सिगरेट किस तरह से हमारी सेहत के लिए आगे कुंआ पीछे खाई वाली स्थिति बनाते जा रहा है? हर साल 100 अरब से अधिक सिगरेट बड्स कचरे के रूप में इकट्ठा हो रहे हैं।
तंबाकू उत्पादों से बढ़ता कचरा
अब तक हमने तंबाकू उत्पादों के निर्माण और इसके उपयोग से होने वाले पर्यावरणीय और सेहत से संबंधित जोखिमों के बारे में जाना। खतरा यहीं तक सीमित नहीं है, इन उत्पादों का कचरा मृदा और जल को भी गंभीर नुकसान पहुंचा रहा है। भारत के लैंडफिल में हर साल 100 अरब से अधिक सिगरेट बड्स कचरे के रूप में इकट्ठा हो रहे हैं। गौर करने वाली बात यह है कि सिगरेट का फिल्टर श्सेल्युलोज एसीटेटश् नामक एक प्रकार के नॉन बायोडिग्रेडेबल प्लास्टिक से बनाता है जिसे पूरी तरह से विघटित होने में लगभग 10 साल से अधिक का समय लग सकता है। वहीं तंबाकू उत्पादों के रैपर के कचरे तो कई दशकों तक जस के तस बने रहते हैं।
ये समुद्री तटों पर एकत्रित होकर जलजीवों के लिए तो हानिकारक साबित हो ही रहे हैं साथ ही जो रैपर मिट्टी के नीचे दब जाते हैं, वह उस भूमि की उपज को साल-दर-साल कम करते जाते हैं।
तंबाकू की खेती
तंबाकू की खेती और इसके दुष्प्रभावों के बारे में भी कई अध्ययनों में जिक्र मिलता है। भारत में तंबाकू उत्पादन के लिहाज से देखें तो आंध्र प्रदेश (45ः), कर्नाटक (26ः), गुजरात (14ः), उत्तर प्रदेश (5ः), तमिलनाडु (2ः), बिहार (2ः) और पश्चिम बंगाल (1ः) इसके बड़े उत्पादक राज्य हैं।
तंबाकू की खेती के बारे में जानने के लिए हमने आंध्र प्रदेश के एक उत्पादक से संपर्क किया (यहां नाम देना उचित नहीं है)। खैर, किसान बंधु बताते हैं, तम्बाकू बहुत मेहनत से उपजने वाले फसलों में से एक है, जिसकी देखरेख के लिए कई प्रकार के कीटनाशक और भारी मात्रा में रासायनिक उर्वरकों की आवश्यकता होती है।
संयुक्त राज्य अमेरिका में तंबाकू उत्पादन के लिए हर साल 27 मिलियन पाउंड कीटनाशकों का छिड़काव किया जाता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि आमतौर पर इस प्रकार के कीटनाशक और उर्वरक, भूजल को प्रदूषित करने के साथ ओजोन परत के लिए भी नुकसानदायक हैं। इतना ही नहीं इसके दुष्प्रभाव के कारण बड़ी संख्या में मधुमक्खियां भी मारी जाती है, जिससे परागण प्रक्रिया बाधित होती है साथ ही इसके संपर्क में रहने वाले लोगों में कैंसर और अन्य गंभीर स्वास्थ्य जोखिम का खतरा भी कई गुना बढ़ जाता है।
जिस उत्पादक से हमने बात की वह बताते हैं- श्श्तंबाकू की फसल में मेहनत तो है ही पर दाम हर साल गिरते जा रहे हैं। पिछले तीन वर्षों से तंबाकू की औसत कीमत में गिरावट देखी जा रही है। साल 2018-19 के दौरान जहां कीमत 136 रु. हुआ करती थी वह 2020-21 के दौरान घटकर 119.87 तक रह गई है।
तो सवाल है कि आखिर अब किया क्या जाए? कैसे पर्यावरण के इस संकट को कम किया जाए
सबसे पहले शुरुआत हमें-आपको ही करनी है, शुरुआत हमारे तंबाकू उत्पादों को छोड़ने से होगी। हर एक सिगरेट, बनने से लेकर धुएं में उड़ने तक, प्राकृतिक संसाधनों के लिए खतरा है, वह संसाधन जिस पर हमारा अस्तित्व निर्भर करता है।
प्रत्येक सिगरेट से करीब 1.39 ग्राम मानव निर्मित ग्रीनहाउस गैस का उत्सर्जन होता है। अगर आप एक दिन में 10 सिगरेट पीते हैं तो आप पर्यावरण में सालाना 11 पाउंड कार्बन डाई ऑक्साइड छोड़ रहे हैं। यह कितना नुकसानदायक है, हम सभी अच्छी तरह से जानते हैं। अगर हम सिगरेट छोड़ने का प्रण ले लें तो सोचिए पर्यावरण संरक्षण के लिए हमारा कितना कीमती योगदान हो सकता है।
दूसरा- पहले से ही कम कीमत मिलने से परेशान तंबाकू उत्पादकों के लिए सरकार और नीति निर्माताओं को वैकल्पिक खेती की व्यवस्था कर उन्हें प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे किसानों को कम लागत में अधिक मुनाफा हो सके और पर्यावरण के इस संकट को काबू किया जा सके।
तीसरा- नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) जैसे संस्थाओं को तंबाकू उत्पादों के कचरे के सही प्रबंधन को लेकर सख्ती दिखाने की आवश्यकता है। तंबाकू उद्योगों की पर्यावरण संरक्षण में भागीदारी सुनिश्चित करने की जरूरत है।
आखिरी लेकिन सबसे महत्वपूर्ण बात, पर्यावरण संकट के खतरे को सिर्फ कागजों में सिमट कर देखने के बजाय। इसकी गंभीरता को समझते हुए काम करने और पर्यावरण को बचाने पर ध्यान देने की आवश्यकता है। कहीं ऐसा न हो कि हमारी आज की चीजों को नजरअंदाज करने की आदत, आने वाली पीढ़ियों के अस्तित्व के लिए ही खतरा बन जाए। आप भी विचार कीजिएगा।
दुनिया भर में हर वर्ष 70 लाख से अधिक मौतें
तंबाकू हमारे जीवन के 13 साल कम कर रहा है. महज एक सिगरेट ही 14 मिनट उम्र घटा देता है. आंकड़ों के मुताबिक तंबाकू के कारण दुनिया भर में हर वर्ष 70 लाख से अधिक मौतें होती हैं. वैश्विक स्तर पर सिगरेट उत्पादन के लिए 60 करोड़ से अधिक पेड़ काटे जाते हैं और 2200 करोड़ लीटर से अधिक मात्रा में पानी खर्च होता है. इसके उत्पादन में ही 8.40 करोड़ टन की मात्रा में कार्बन डाइऑक्साइड का उत्सर्जन होता है.
लड़कों की तुलना में लड़कियां ज्यादा लेतीं तंबाकू
गैट सर्वे पर भरोसा करें तो बिहार में लड़कों की तुलना में लड़कियां तंबाकू का सेवन ज्यादा करती हैं.। बिहार में 13 से 15 साल के आयु वर्ग के 6.6 प्रतिशत लड़के तंबाकू का सेवन करते हैं, जबकि लड़कियों के मामले में यह आंकड़ा आठ प्रतिशत है. बिहार में लड़कियों के बीच तंबाकू के बढ़ते सेवन पर स्वास्थ्य मंत्री मंगल पांडेय ने चिंता जाहिर की थी.
बिहार में राष्ट्रीय औसत से कम तंबाकू का सेवन
तंबाकू सेवन को लेकर गैट सर्वे की बात करें तो बिहार में 7.3 प्रतिशत लोग इसका सेवन करते हैं. यह 8.5 प्रतिशत के राष्ट्रीय औसत से कम है. देश में सर्वाधिक मिजोरम व अरुणाचल प्रदेश के 57.9 प्रतिशत लोग तंबाकू सेवन करते हैं. बिहार के पड़ोसी राज्यों की बात करें तो उत्तर प्रदेश की 22.9, पश्चिम बंगाल की 7.1 तथा झारखंड की 5.1 प्रतिशत आबादी तंबाकू का सेवन करती है.
तंबाकू से छुटकारे की उम्मीद नहीं छोड़ी है बिहार
बिहार ने तंबाकू से छुटकारे की उम्मीद नहीं छोड़ी है. ताजा आकड़े उम्मीद को कायम रखने में मददगार साबित हो रहे हैं. बिहार में तंबाकू सेवन का आंकड़ा घटकर राष्ट्रीय औसत से कम हो गया है. उपमुख्यमंत्री तारकिशोर प्रसाद की माने तंबाकू सेवन करने वालों का प्रतिशत 53.5 से घटकर 25.9 हो गया है. तंबाकू सेवन को लेकर हुए गैट सर्वे में भी कहा गया है कि राज्य में करीब 7.3 प्रतिशत लोग किसी न किसी रूप में तंबाकू का सेवन कर रहे हैं. सबसे गौर करनेवाली बात यह है कि बिहार में लड़कों से अधिक लड़कियां तंबाकू का सेवन कर रहीं हैं. इतना ही नहीं बिहार में प्रतिबंध के बावजूद तंबाकू से बने उत्पादों की बिक्री जारी है.।
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