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शिव की आराधना से मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण: शंकराचार्य नरेंद्रानंद

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शिव की आराधना से मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण: शंकराचार्य नरेंद्रानंद

भगवान शिव जगत कल्याण के लिए देवताओं के भी महादेवता

भगवान शिव का ना तो आदि था और न ही कोई अंत है

फतह सिंह उजाला
गुरूग्राम।
 महाशिवरात्रि के दिन भगवान शिव शिवलिंग स्वरूप में पहली बार प्रकट हुए थे । शिव का प्राकट्य ज्योतिर्लिंग अर्थात् अग्नि के शिवलिंग के रूप में था, जिसका ना तो आदि था और न अंत । शास्त्रों के अनुसार शिवलिंग का पता लगाने के लिए ब्रह्मा जी हंस रूप में शिवलिंग के सबसे ऊपरी भाग को देखने की कोशिश कर रहे थे, लेकिन वे सफल नहीं हो सके । वहीं, भगवान विष्णु भी वराह रूप लेकर शिवलिंग का आधार ढूंढ रहे थे, लेकिन उन्हें भी आधार नहीं मिला । शिव पुराण में बताया गया है कि महाशिवरात्रि के दिन देशभर में द्वादश ज्योतिर्लिंग प्रकट हुए थे । इनमें सोमनाथ ज्योतिर्लिंग, मल्लिकार्जुन ज्योतिर्लिंग, महाकालेश्वर ज्योतिर्लिंग, ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग, केदारनाथ ज्योतिर्लिंग, भीमाशंकर ज्योतिर्लिंग, विश्वनाथ ज्योतिर्लिंग, त्र्यंबकेश्वर ज्योतिर्लिंग, वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग, नागेश्वर ज्योतिर्लिंग, रामेश्वर ज्योतिर्लिंग और घृष्णेश्वर ज्योतिर्लिंग शामिल हैं द्य शिव जी के इन 12 ज्योतिर्लिंगों के प्रकट होने के उपलक्ष्य में महाशिवरात्रि मनाई जाती है । यह ज्ञानोपर्जन काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने शक्ति पीठ, भानपुर जौनपुर में सार्वभौम विश्वगुरु स्वामी करुणानन्द सरस्वती जी महाराज के निर्देशन में आयोजित श्री शिव विवाह शोभायात्रा के मौके पर शिवभक्त श्रद्धालूओं के बीच कही।

शंकराचार्य नरेंद्रानंद महाराज ने निजी सचिव स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती जी महाराज में माध्यम से मीडिया को के नाम जारी वकत्व में बताया है कि शिव जी को पति रूप में पाने के लिए माता पार्वती ने कठिन तपस्या की थी, और फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को उन्होंने माता पार्वती को पत्नी रूप में स्वीकार किया। इसलिए इस दिन को महत्वपूर्ण माना जाता है । इसके साथ-साथ भगवान शिव कल्याण के देवता हैं, और भगवान शिव की आराधना से मनुष्य के सभी मनोरथ पूर्ण होते है। इस अवसर पर दर्जनों हाथी,घोड़े एवम् रथों तथा बैण्ड-बाजे के साथ भव्य शोभायात्रा निकाली गई । कार्यक्रम में स्वामी दुर्गेशानन्द तीर्थ, स्वामी केदारानन्द तीर्थ, स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती, भगवान परशुराम अखाड़ा के संस्थापक ब्रह्मर्षि सुदर्शन जी महाराज सहित अन्य साधु-सन्यासी एवम् भक्तगणों की सहभागिता रही, जिसमें हजारों श्रद्धालु उपस्थित थे।

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