कबूतर दाना मामले में राहत देने से इनकार, बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, ‘हमने इसे बंद करने का आदेश नहीं दिया’
कबूतर दाना मामले में राहत देने से इनकार, बॉम्बे हाई कोर्ट ने कहा, ‘हमने इसे बंद करने का आदेश नहीं दिया’
मुंबई: बॉम्बे हाई कोर्ट ने खुले स्थानों में कबूतरों को दाना डालने पर नगर निगम द्वारा लगाए गए प्रतिबंध को हटाने से इनकार कर दिया है. हाई कोर्ट ने कहा कि, उसने शहर में कबूतरखानों (कबूतरों को दाना डालने वाले स्थान) को बंद करने का कोई आदेश नहीं दिया है, बल्कि उसने इन्हें बंद करने के नगर निकाय के आदेश पर रोक लगाने से परहेज किया है.
कोर्ट ने कहा कि विशेषज्ञों की एक समिति इस बात का अध्ययन कर सकती है कि शहर में पुराने कबूतरखाने जारी रहने चाहिए या नहीं, लेकिन ‘मानव जीवन सर्वोपरि है. अदालत ने कहा, “अगर कोई चीज वरिष्ठ नागरिकों और बच्चों के स्वास्थ्य को व्यापक रूप से प्रभावित करती है, तो उस पर ध्यान दिया जाना चाहिए. इसमें संतुलन होना चाहिए.”
इस संबंध में याचिकाकर्ताओं को कोई राहत देने से इनकार करते हुए हाईकोर्ट ने गुरुवार को अपनी सुनवाई में स्पष्ट किया कि मुंबई नगर निगम को दिए गए पहले के निर्देश अगली सुनवाई तक लागू रहेंगे. इस पर याचिकाकर्ता जयश्री पाटिल का कहना है कि, बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जाएगी.
इस बीच, शिवसेना ने बॉम्बे हाईकोर्ट के फैसले का स्वागत किया है. इस सप्ताह की शुरुआत में, शहर के कबूतरखानों को चादरों से ढक दिया गया था, जिसके बाद विरोध प्रदर्शन हुए. महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने तब दावा किया था कि हाई कोर्ट के आदेश के बाद कबूतरखाने बंद कर दिए गए हैं.
जस्टिस जी एस कुलकर्णी और न्यायमूर्ति आरिफ डॉक्टर की बेंच ने गुरुवार को स्पष्ट किया कि उसने कोई आदेश पारित नहीं किया है. हाई कोर्ट ने कहा कि, यह बीएमसी (बृहन्मुंबई महानगर पालिका) का फैसला (कबूतरखानों को बंद करने का) था, जिसे हमारे सामने चुनौती दी गई थी. कोर्ट ने कहा, “हमने कोई आदेश पारित नहीं किया. हमने केवल कोई अंतरिम राहत नहीं दी.” हालांकि, जजों ने यह भी कहा कि मानव स्वास्थ्य सर्वोपरि महत्व और चिंता का विषय है तथा वे इस मुद्दे का अध्ययन करने और सरकार को सिफारिशें प्रस्तुत करने के लिए विशेषज्ञों की एक समिति नियुक्त करने पर विचार करेंगे.
बेंच ने कहा, “हमें केवल सार्वजनिक स्वास्थ्य की चिंता है. ये सार्वजनिक स्थान हैं, जहां हजारों लोग रहते हैं… संतुलन होना चाहिए. कुछ ही लोग हैं, जो (कबूतरों को) खाना खिलाना चाहते हैं. अब सरकार को निर्णय लेना है. इसमें कुछ भी विरोधाभासी नहीं है.”
अदालत ने कहा कि सरकार और बीएमसी को यह सुनिश्चित करने के लिए एक सुविचारित निर्णय लेना होगा कि प्रत्येक नागरिक के संवैधानिक अधिकार सुरक्षित रहें, न कि केवल कुछ इच्छुक व्यक्तियों के. हाई कोर्ट ने कहा कि, सभी चिकित्सीय रिपोर्ट कबूतरों के कारण होने वाले नुकसान की ओर इशारा करती हैं. मानव जीवन सर्वोपरि है. बेंच ने कहा कि, अदालत इस मुद्दे पर निर्णय लेने के लिए विशेषज्ञ नहीं है, इसलिए कोई भी निर्णय लेने से पहले वैज्ञानिक अध्ययन किया जाना आवश्यक है.
मामले की अगली सुनवाई 13 अगस्त को निर्धारित करते हुए हाई कोर्ट ने महाराष्ट्र के महाधिवक्ता को उपस्थित रहने को कहा, ताकि विशेषज्ञ समिति गठित करने का आदेश पारित किया जा सके. अदालत कबूतरों को दाना डालने वाले लोगों द्वारा दायर याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें कबूतरों को दाना डालने पर प्रतिबंध लगाने तथा कबूतरखानों को बंद करने के नगर निकाय के फैसले को चुनौती दी गई थी. अदालत ने पिछले महीने याचिकाकर्ताओं को कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया था, लेकिन अधिकारियों से कहा था कि वे विरासत महत्व वाले किसी भी कबूतरखाने को न गिराएं.