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बाला साहेब देवरस 17 जून पुण्य-तिथि

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बाला साहेब देवरस 17 जून पुण्य-तिथि

श्री बाला साहब देवरस का जन्म 11 दिसम्‍बर 1915 को नागपुर में हुआ था। उनके पिता सरकारी कर्मचारी थे और नागपुर इतवारी में आपका निवास था। यहीं देवरस परिवार के बच्चे व्यायामशाला जाते थे 1925 में संघ की शाखा प्रारम्भ हुई और कुछ ही दिनों बाद बालासाहेब ने शाखा जाना प्रारम्भ कर दिया।

स्थायी रूप से उनका परिवार मध्यप्रदेश के बालाघाट जिले के आमगांव के निकटवर्ती ग्राम कारंजा का था। उनकी सम्‍पूर्ण शिक्षा नागपुर में ही हुई। न्यू इंगलिश स्कूल मे उनकी प्रारम्भिक शिक्षा हुई।
संस्कृत और दर्शनशास्त्र विषय लेकर मौरिस कालेज से बालासाहेब ने 1935 में बीए किया। दो वर्ष बाद उन्होंने विधि (लॉ) की परीक्षा उत्तीर्ण की। विधि स्नातक बनने के बाद बालासाहेब ने दो वर्ष तक ‘अनाथ विद्यार्थी बस्ती गृह’ मे अध्यापन कार्य किया। इसके बाद उन्हें नागपुर मे नगर कार्यवाह का दायित्व सौंपा गया। 1965 में उन्हें सरकार्यवाह का दायित्व सौंपा गया जो 6 जून 1973 तक उनके पास रहा।

एक बार बाला साहेब अपने गाँव से लौट रहे थे. नागपुर के लिए आने वाली रेल-गाड़ी उनके गाँव से कुछ दूरी के अन्य गाँव से मिलती थी. वे प्लेटफार्म पर बैठे ट्रेन की प्रतीक्षा कर रहे थे.

प्लेटफार्म पर उस गाँव के कुछ बच्चे खेल रहे थे. बाला साहेब ने उन बच्चों को अपने पास बुलाया और उनसे बात-चीत करने लगे. एक बालक ने जब अपना नाम बताया तो बाकी बच्चे कहने लगे यह अपना नाम गलत बता रहा है. बालासाहेब ने उस बालक को प्यार से बुलाया और गलत नाम बताने का कारण पूछा.

बालक ने रोते-रोते बताया कि वह ‘महार’ जाति का है. इसलिए सब उसका उपहास उड़ाते हैं. उस समय महाराष्ट्र में महार को अछूत माना जाता था. बालासाहेब बालक की बात से बड़े व्यथित हुए. उन्होंने नागपुर जाना स्थगित कर दिया.

वे बालक के साथ उसके घर गये और सायंकाल का भोजन उसी घर में किया. फिर आस-पास के गाँव वालों को बुलाया. सब लोग उसी महार बन्धु के घर के सामने बैठे.

बाला साहेब ने उन्हें समझाया कि सभी हिन्दू भाई-भाई हैं, कोई छोटा-बड़ा या ऊँचा-नीचा नहीं है. बाला साहेब ने यह भी कहा, कि संघ इस समस्या के समाधान के लिए दृढ़ता से लगा है. हम सबको धैर्य के साथ आगे बढ़ना है.

श्रीगुरू जी के स्वर्गवास के बाद 6 जून 1973 को सरसंघचालक के दायित्व को ग्रहण किया। उनके कार्यकाल में संघ कार्य को नई दिशा मिली। उन्होंने सेवाकार्य पर बल दिया परिणाम स्‍वरूप उत्‍तर पूर्वाचल सहित देश के वनवासी क्षेत्रों के हजारों की संख्‍या में सेवाकार्य आरम्भ हुए।

सन् 1975 में भारत की तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इन्दिरा गांधीने आपातकाल की घोषणा कर संघ पर प्रतिबन्‍ध लगा दिया। हजारों संघ के स्‍वयंसेवको को मीसा तथा डी आई आर जैसे काले कानून के अन्‍तर्गत जेलों में डाल दिया गया और यातनाऐं दी गई। परमपूज्‍यनीय बाला साहब की प्रेरण एवं सफल मार्गदर्शन में विशाल सत्‍याग्रह हुआ और 1977 में आपातकाल समाप्‍त होकर संघ से प्रतिबन्‍ध हटा।

स्‍वास्‍थ्‍य कारणों से जीवन काल में ही सन् 1994 में ही सरसंघचालक का दायित्व उन्होंने प्रो॰ राजेन्‍द्र प्रसाद उपाख्‍य रज्‍जू भइया को सौंप दिया। 17 जून 1996 को उनका स्वर्गवास हो गया।

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