अथर्ववेद
घर ,कुटुंब ,परिवार ,समाज ,राष्ट्र , विश्व संसार मे
घर : पुरुषार्थ की ज्योति ।
॥ अश्लीला तनूर्भवति रुशती पापयामुया ॥
॥ पतिर्यद् वध्योः बारसः स्वड्गमभ्युर्णते ॥
( अथर्ववेद : 14/1/27 )
वैदिककालीन ऋषियों ने कहा है जो पुरुष , स्त्री – द्रव्य का उपभोग करता रहता है ,
वह अपवित्र हो जाता है ,
इसलिए दहेज वर्जित है ।
पुरुषों की दहेज लेने की हराम की वृत्ति उनके पुरुषत्व को तो कलंकित करती ही है ,
किन्तु साथ ही उससे उत्पन्न कलह तथा पारिवारिक तनाव परिवार के बालकों की कांति , उनकी निर्दोषता और उनके आनंद को भी चूस लेती है ।
केवल स्वार्थवश अपने बैंक – बैलेन्स ‘ को बढ़ाने के लिए कोई पुरुष , स्त्री के सामने बार – बार हाथ फैलाकर उसका धन लूटता जाए , यह आत्मा को अधम बनाने की निकृष्टतम प्रक्रिया है !
पुरुषों के घृणित चरित्र की निशानी है !
उसका परिणाम क्या आता है ?
दहेज की ज्वाला में दाम्पत्य जीवन का भस्मीभूत हो जाना ! कोई संस्कारयुक्त घर , मात्र कुमकुम – अक्षत के साथ ही कन्या को हर्षपूर्वक स्वीकार कर लेता है ।
किन्तु कन्या के पिता से कन्या की सौदेबाजी करते हुए , उसे दहेज की लिस्ट पकड़ानेवाले युवकों की मर्दानगी क्या धिक्कार के लायक नहीं होती ?
स्वेच्छा से दी गई वस्तुओं को सहर्षपूर्वक स्वीकार कर लेने में पवित्रता है ।
अन्यथा मूल्यवान चीजें भी रक्त एवं मांस भक्षण दूध जैसी है।
निष्कर्ष : घर वह है , जहाँ पुरुष के पुरुषार्थ का डंका बजता हो , किन्तु समान हैं ! जहाँ पर कन्या के पिता से दहेज के नाम पर ‘ जोंक ‘
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