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ज्योतिष एवं रोग

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ज्योतिष एवं रोग

ज्योतिष शास्त्र में रोग और उसकी दैवव्यपाश्रय चिकित्सा प्राप्त होती है। कफ-वात-पित्त-तीनों प्रकृतियों के
द्वारा ग्रहों का सम्बन्ध, शरीरांगों में राशियों एवं ग्रहों का विनिवेश, बालारिष्ट, आयु आदि विषयों की प्राप्ति रोग की दिशा में महत्त्वपूर्ण आयाम हैं। ज्योतिष में रोगों का
वर्गीकरण, लक्षण (ग्रहयोग) तथा उपाय (उपचार)- की परिचर्चा प्राप्त होती है।
ज्योतिषशास्त्र ने ही प्रधान रूप से रोगोत्पत्ति के मूल व कारणों में ‘कर्म’ को स्वीकार किया है, इसीलिये यहाँ कर्मज एवं दोषज-दो प्रकार की व्याधियों की चर्चा प्राप्त है होती है। इनके अतिरिक्त तीसरी आगन्तुक व्याधिका भी उल्लेख प्राप्त होता है। ग्रहों के प्रकृति, धातु, रस, अंग, अवयव, स्थान, बल एवं अन्यान्य विशेषताओं के आधार पर रोग का विनिश्चय किया गया है तथा उनके निदान के उपाय भी कि
बताये गये हैं।

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