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हृदय रोग का ज्योतिष शास्त्रीय निदान एवं उपचार

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हृदय रोग का ज्योतिष शास्त्रीय निदान एवं उपचार


मानव-जीवनके साथ ही रोग का इतिहास भी आरम्भ होता है। रोगों से रक्षाहेतु मनुष्य ने प्रारम्भ से ही है प्रयत्न करना प्रारम्भ कर दिया तथा आज तक इसके निदान एवं उपचार हेतु वह प्रयत्न कर रहा है। जब हैजा, प्लेग. टी०बी० आदि संक्रामक रोगों से ग्रस्त होकर इनसे छुटकारा पाने के लिये विविध प्रकार का अन्वेषण हुआ तो कालान्तर में पुन: कैंसर, एड्स, डेंगू-सदृश अनेक रोग उत्पन्न हो गये, जिनके समाधान एवं उपाय हेतु आज समस्त विश्व प्रयत्नशील है। विडम्बना है कि मनुष्य
जितना ही प्राकृतिक रहस्यों को खोजने का प्रयास करता है. प्रकृति उतना ही अपना विस्तार व्यापक करती जाती है, जिसके समाधान के समस्त उपाय विश्व के लिये
नगण्य पड़ जाते हैं, इसमें मानव का असदाचार ही मुख्य हेतु प्रतीत होता है।
हमारे प्राचीन ऋषियों ने जहाँ अणुवाद, परमाणुवाद को व्याख्यायित किया, अध्यात्म की गहराइयों में गोता लगाया,
सांख्य के प्रकृति एवं पुरुष से सृष्टि प्रक्रिया को जोड़ा, वहीं आकाशीय ग्रह-नक्षत्रों को बाँस की कमाची (पट्टी)-से कोसों दूर धरती पर बैठकर वेधित किया तथा उनके
धरती पर पड़ने वाले शुभाशुभ प्रभावों को मानवजीवन के साथ जोड़कर व्याख्यायित किया। विश्व के सर्वप्राचीन ग्रन्थ ऋग्वेद से रोगों का परिज्ञान आरम्भ हो जाता है, जिसमें पाण्डुरोग, हृदयरोग, उदररोग एवं नेत्ररोगों की चर्चा प्राप्त होती है। पौराणिक
कथाओंमें तो विविध प्रकारके रोगोंकी चर्चा एवं उपचा रके लिये औषधि, मन्त्र, एवं तन्त्र आदि का प्रयोग प्राप्त होता है। आर्ष परम्परा में तो रोगों के विनिश्चयार्थ ज्योतिष शास्त्रीय ग्रहयोगों सहित आयुर्वेदीय परम्परा का विकास सर्वतोभावेन दर्शनीय है। पद-पदपर सुश्रुत, चरक आदि आचार्यो ने
चिकित्सार्थ तथा माधव ने निदान एवं आचार्य सुश्रुत ने अस्थि-सम्बन्धित ज्ञान एवं शल्यक्रिया की पद्धति के द्वारा रोगों के उपचार में अतुलनीय योगदान दिया। स्वास्थ्य विज्ञान के साथ ही अन्य विषयों एवं तथ्यों का जनक ज्योतिर्विज्ञान आरम्भ से ही ग्रहों के द्वारा मानव जीवनके विभिन्न पहलुओं को प्रदर्शित करता रहा है। हमारे पूर्वाचार्य दैवज्ञों ने ग्रह- प्रभावों का धरातल पर बैठकर साक्षात्कार किया तथा भौम-दिव्य एवं नाभस प्रभावों को शिष्य-परम्परा के द्वारा लिपिबद्ध कराया। आज जो भी हमारे समक्ष ज्योतिषशास्त्र के
ग्रन्थ हैं, वे प्राचीन आचार्यों के अथक परिश्रम एवं सतत अन्वेषण के परिणाम स्वरूप हैं।

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