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Rajni

अपरिग्रह वृत्ति महान बनाती है।

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अपरिग्रह वृत्ति महान बनाती है।

🌻अपरिग्रह वृत्ति महान बनाती है।🌻

कश्मीर में तर्करत्न,न्यायाचार्य पंडित रहते थे।उन्होंने चार पुस्तकों की रचना की थी,जिनसे बड़े-बड़े विद्वान तक प्रभावित थे।
इतनी विद्वता होते हुए भी उनका जीवन अत्यंत सीधा-सादा एवं सरल था। उनकी पत्नी भी उन्हीं के समान सरल एवं सीधा-सादा जीवन-यापन करने वाली साध्वी थीं।

उनके पास संपत्ति के नाम पर एक चटाई,लेखनी कागज एवं कुछ पुस्तकें तथा दो जोड़ी वस्त्र थे। वे कभी किसी से कुछ माँगते न थे और न ही दान का खाते थे।
उनकी पत्नी जंगल से मूँज काटकर लातीं,उससे रस्सी बनातीं और उसे बेचकर अनाज-सब्जी आदि खरीद लातीं। फिर भोजन बना कर पति को प्रेम से खिलातीं और घर के अन्य कामकाज करतीं।

पति को तो यह पता भी न रहता कि घर में कुछ है या नहीं। वे तो बस,अपने अध्ययन-मनन में मस्त रहते।ऐसी महान साध्वी स्त्रियाँ भी इस भारतभूमि में हो चुकी हैं।
धीरे-धीरे पंडित जी की ख्याति अन्य देशों में भी फैलने लगी अन्य देशों के विद्वान लोग आकर उनको देखकर कश्मीर के राजा शंकरदेव से कहने लगेः- राजन ! जिस देश में विद्वान, धर्मात्मा,पवित्रात्मा दुःख पाते हैं,उस देश के राजा को पाप लगता है।
आपके देश में भी एक ऐसे पवित्रात्मा विद्वान हैं,जिनके पास खाने पीने का ठिकाना नहीं है, फिर भी आप उनकी कोई सँभाल नहीं रखते ?

यह सुनकर राजा स्वयं पंडितजी की कुटिया में पहुँच गया। हाथ जोड़कर उनसे प्रार्थना करने लगाः भगवन् ! आपके पास कोई कमी तो नहीं है ? पंडितजीः मैंने जो चार ग्रन्थ लिखे हैं,उनमें मुझे तो कोई कमी नहीं दिखती। आपको कोई कमी लगती हो तो बताओ।

राजाः भगवन् ! मैं शब्दों की,ग्रन्थ की कमी नहीं पूछता हूँ, वरन् अन्न,जल,वस्त्र आदि घर के व्यवहार की चीजों की कमी पूछ रहा हूँ।पंडितजीः उसका मुझे कोई पता नहीं है। मेरा तो केवल एक प्रभु से नाता है। उसी के स्मरण में इतना तल्लीन रहता हूँ कि मुझे घर का कुछ पता ही नहीं रहता।जो भगवान की स्मृति में तल्लीन रहता है,उसके द्वार पर सम्राट स्वयं आ जाते हैं,फिर भी उसे कोई परवाह नहीं रहती।

राजा ने खूब विनम्र भाव से पुनः प्रार्थना की एवं कहाः भगवन् ! जिस देश में पवित्रात्मा दुःखी होते हैं, उस देश का राजा पाप का भागी होता है। अतः आप बताने की कृपा करें कि मैं आपकी सेवा करूँ ?जैसे ही पंडितजी ने ये वचन सुने कि तुरंत अपनी चटाई लपेटकर बगल में दबा ली एवं पुस्तकों की पोटली बाँधकर उसे भी उठाते हुए अपनी पत्नी से कहा- चलो देवी ! यदि अपने यहाँ रहने से इन राजा को पाप का भागी होना पड़ता हो, इस राज्य को लाँछन लगता हो तो हम लोग कहीं ओर चलें। अपने रहने से किसी को दुःख हो,यह तो ठीक नहीं है।

यह सुनकर राजा उनके चरणों में गिर पड़ा एवं बोलाः भगवन् ! मेरा यह आशय न था,वरन् मैं तो केवल सेवा करना चाहता था।
फिर राजा पंडित जी से आज्ञा लेकर उनकी धर्मपत्नी के समक्ष जाकर प्रणाम करते हुए बोला – माँ ! आपके यहाँ अन्न-जल-वस्त्रादि किसी भी चीज की कमी हो तो आज्ञा करें,ताकि मैं आप लोगों की कुछ सेवा कर सकूँ।

पंडित जी की धर्मपत्नी भी कोई साधारण नारी तो थीं नहीं। वे भगवत्परायण नारी थीं। सच पूछो तो नारी के रूप में मानों साक्षात् नारायणी ही थीं।

वह बोलीं – नदियाँ जल दे रही हैं,सूर्य प्रकाश दे रहा है,प्राणों के लिए आवश्यक पवन बह ही रही है एवं सबको सत्ता देने वाला वह सर्वसत्ताधीश परमात्मा हमारे साथ ही है, फिर कमी किस बात की ? राजन ! शाम तक का आटा पड़ा है,लक़डियाँ भी दो दिन जल सकें,इतनी हैं। मिर्च-मसाला भी कल तक का है। पक्षियों के पास तो शाम तक का भी ठिकाना नहीं होता,फिर भी वे आनंद से जी लेते हैं। मेरे पास तो कल तक का है।
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राजन ! मेरे वस्त्र अभी इतने फटे नहीं कि मैं उन्हें पहन न सकूँ ? बिछाने के लिए चटाई एवं ओढ़ने के लिए चादर भी है।….

और मैं क्या कहूँ ? मेरी चूड़ी अमर है और सब में बसे हुए मेरे पति का तत्त्व मुझमें भी धड़क रहा है। मुझे अभाव किस बात का,बेटा !
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पंडितजी की धर्मपत्नी की दिव्यता को देखकर राजा की भी गदगद हो उठा एवं चरणों में गिरकर बोला…
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माँ ! आप गृहिणी हैं कि तपस्विनी, यह कहना मुश्किल है। माँ ! मैं बड़भागी हूँ कि आपके दर्शन का सौभाग्य पा सका। आपके चरणों में मेरे कोटि-कोटि प्रणाम हैं ! जो लोग परमात्मा का निरंतर स्मरण करते रहते हैं,उन्हें वेश बदलने की फुर्सत ही नहीं होती, जरूरत भी नहीं होती। जो परमात्मा के चिंतन में तल्लीन हैं, उन्हें संसार के अभाव का पता ही नहीं होता। कोई सम्राट आकर उनका आदर करे तो उन्हें हर्ष नहीं होता, उसके प्रति आकर्षण नहीं होता।ऐसे ही यदि कोई मूर्ख आकर अनादर कर दे तो शोक नहीं होता,क्योंकि हर्ष-शोक तो वृत्ति से भासते हैं। जिनकी वृत्ति परमात्मा के शरण चली गयी है, उन्हें हर्ष-शोक,सुख-दुःख के प्रसंगवश सत्य ही नहीं भासते तो डिगा कैसे सकते हैं।उन्हें अभाव कैसे डिगा सकता है ? उनके आगे अभाव का भी अभाव हो जाता है।

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