आँवला (अक्षय) नवमी कार्तिक शुक्ल नवमी आँवला नवमी
आँवला (अक्षय) नवमी कार्तिक शुक्ल नवमी आँवला नवमी
कार्तिक शुक्ल नवमी को ‘धात्री नवमी’ आँवला नवमी और ‘कूष्माण्ड नवमी (पेठा नवमी अथवा सीताफल नवमी) भी कहते हैं. इस दिन से द्वापर युग का प्रारंभ हुआ था ।
स्कन्दपुराण के अनुसार अक्षय नवमी को आंवला पूजन से स्त्री जाति के लिए अखंड सौभाग्य और पेठा पूजन से घर में शान्ति, आयु पुत्र रत्न प्राप्ति एवं संतान वृद्धि होती है ।
आंवले के वृक्षमें सभी देवताओं का निवास होता है तथा यह फल भगवान विष्णु को भी अतिप्रिय है ।
अक्षय नवमी के दिन अगर आंवले की पूजा करना और आंवले के वृक्ष के नीचे बैठकर भोजन बनाना और खाना संभव नहीं हो तो इसदिन आंवला अवश्य खाना चाहिए ।
ऐसी मान्यता है कि कार्तिक शुक्ल नवमी तिथि को आंवले के पेड़ से अमृत की बूंदे गिरती है और यदि इस पेड़ के नीचे व्यक्ति भोजन करता है तो भोजन में अमृत के अंश आ जाता है।
जिसके प्रभाव से मनुष्य रोगमुक्त होकर दीर्घायु बनता है ।
चरक संहिता के अनुसार अक्षय नवमी को आंवला खाने से महर्षि च्यवन को फिर से जवानी यानी नवयौवन प्राप्त हुआ था ।
व्रत की पूजा का विधान
नवमी के दिन महिलाएँ प्रातः से ही स्नान ध्यान कर आँवला के वृक्ष के नीचे पूर्व दिशा की ओर मुँह करके बैठती हैं। उसके तने पर कच्चे सूत का धागा लपेटा जाता है. तत्पश्चात् रोली, चावल, धूप दीप से वृक्ष की पूजा की जाती है ।
यानि कानि च पापानि जन्मान्तरकृतानि च.
तानि सर्वाणि नश्यन्तु प्रदक्षिण पदे पदे.
इस मन्त्र को पढ़ कर आँवले के वृक्ष की 108 परिक्रमा या फिर कम से कम 21 परिक्रमा करनी चाहिए. पूजन में कर्पूर या शुद्ध घी के दीपक से आँवले वृक्ष की आरती करनी चाहिए ।
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