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35 सालों से टिकैत परिवार में जल रही अमर किसान ज्योति

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राकेश टिकैत का जन्म 4 जून वर्ष 1969 को उत्तरप्रदेश में स्थित मुजफ्फरनगर शहर के एक छोटे से गांव सिसौली पिता महेंद्र सिंह टिकैत एवं माँ बलजोरी देवी के यहां हुआ था। राकेश टिकैत एक जाट परिवार से ताल्लुक रखते हैराकेश टिकैत ने चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ (पूर्व में मेरठ विश्वविद्यालय) से कला स्नातक की पढ़ाई कर रखी है। टिकैत ने मेरठ विश्वविद्यालय से एम ए की उपाधि प्राप्त की और 1992 में दिल्ली पुलिस में तत्कालीन सब इंस्पेक्टर के रूप में कांस्टेबल के रूप में शामिल हुए, लेकिन 1993-1994 में लाल किले पर किसानों के विरोध प्रदर्शन के दौरान दिल्ली पुलिस को छोड़ दिया और भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू) के सदस्य के रूप में विरोध में शामिल हो गए।

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भारतीय किसान नेता राकेश टिकैत की शादी बागपत जनपद के दादरी गांव की सुनीता देवी से साल 1985 में हुई थी। राकेश के एक बेटा है। जिसका नाम चैधरी चरण सिंह टिकैत है एवं दो बेटियां है जिनका नाम सीमा और ज्योति है। राकेश के तीनो बच्चो शादीशुदा है। राकेश टिकैत ने मुजफ्फरनगर के खतौली से एक स्वतंत्र उम्मीदवार के रूप में 2007 उत्तर प्रदेश विधान सभा चुनाव में असफल चुनाव लड़ा।

पहले चुनाव में हारने के बाद उन्होंने रालोद के टिकट पर अमरोहा निर्वाचन क्षेत्र से 2014 का लोकसभा चुनाव लड़ा। वह चुनाव में केवल 9,539 वोट हासिल कर सके (कुल वोटों का 0.62ः प्रतिशत), और इसलिए, हार का सामना करना पड़ा।
लगातार दो चुनावो में मिली हार के बाद एक बार फिर उन्होंने साल 2014 में राष्ट्रीय लोक दल सेअमरोहा लोकसभा क्षेत्र के लिए 14 मार्च 2014 को चुनाव लडा और राष्ट्रीय लोक दल (आरएलडी) में शामिल हो गए, जो भारत के 5 वें प्रधान मंत्री चैधरी चरण सिंह के बेटे अजीत सिंह द्वारा स्थापित एक राजनीतिक दल है।
साल 2018 में टिकैत उत्तराखंड के शहर हरिद्वार से दिल्ली तक किसान क्रांति यात्रा के नेता थे। साल 2019 में टिकैत ने 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा का समर्थन किया था।
साल 2020 के अंत में वह केंद्र सरकार के खिलाफ अपने किसान संगठन ”भारतीय किसान यूनियन संघ ” हुए और केंद्र सरकार के खिलाफ न्यूनतम समर्थन मूल्य के काले कानून का जोरदार विरोध करना शुरू कर दिया था।
राकेश टिकैत एक किसान नेता, राजनेता और भारतीय किसान संघ के राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। वह दिवंगत चैधरी महेंद्र सिंह टिकैत के पुत्र हैं। जो एक प्रसिद्ध किसान नेता है।, जिन्होंने किसानों के लिए कई बड़े आंदोलनों का नेतृत्व किया। भारतीय किसान यूनियन के नेता राकेश टिकैत के पिता स्व.महेंद्र सिंह टिकैत थे।


उन्होंने दिल्ली में लोकसभा भवन के बाहर किसानों के गन्ना बिक्री के मूल्य में वर्दि्ध करने के लिए सरकार के खिलाफ आंदोलन किया और गन्नो को जला दिया था, जिसकी कारण एक बार फिर से उन्हें तिहाड़ जेल की हवा खानी पड़ी थी .राकेश टिकैट भारतीय किसान यूनियन के प्रमुख नेता एवं राष्ट्रीय प्रवक्ता हैं। जिन्होंने किसानों के हित के लिए दिल्ली में घेराबंदी की। राकेश टिकैत पूर्व किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत के बेटे है। भारतीय किसान यूनियन (बीकेयू ) भारतीय किसानो की प्रतिनिधि संगठन है. वर्तमान में किसान यूनियन उत्तरप्रदेश में सक्रीय है।
राकेश ने साल 2020 के अंत में केंद्र सरकार के खिलाफ कृषि कानून के विरोध में अन्य भारतीय किसानो के साथ गाजीपुर बार्डर पर धरना प्रदर्शन किया था जिसके कारण वो मीडिया में चर्चा का विषय रहे। टिकैत द्वारा चलाये गए इस आंदोलन को डंकल प्रस्ताव आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है।

यूपी में मुजफ्फरनगर जिले के सिसौली गांव में स्थित टिकैत परिवार करीब 35 साल से किसानों को श्रद्धांजलि के रूप में अमर किसान ज्योति जला रहा है। किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत ने पहली बार 1 मार्च 1987 को गांव सिसौली स्थित अपने परिवार में ज्योति जलाई थी।

एक ज्योति जो 35 साल से किसानों को श्रद्धांजलि दे रही है। एक ज्योति जो तीन दशक से अन्नदाताओं के अधिकारों को याद कर रही है. एक ज्योति जो किसानों के मसीहा महेंद्र सिंह टिकैत के संघर्ष का प्रतीक बनी हुई है. यह अखंड ज्योति मुज्जफरनगर के सिसोली में जल रही है. सिर्फ यह ज्योति ही नहीं, सिसोली में महेंद्र सिंह टिकैत के कमरे का हुक्का, उनके आंदोलनों के चित्र आज भी बाबा टिकैत की उपस्थिति का अहसास कराते हैं. सिसोली क्षेत्र को किसानों की राजधानी भी कहा जाता है।
किसानों के मसीहा कहलाने वाले बाबा महेंद्र सिंह टिकैत ने जनपद शामली में बिजली की बढ़ी हुई कीमतों के विरोध में एक बड़ा आंदोलन किया था। इस आंदोलन में जाने से पहले बाबा टिकैत ने 01 मार्च 1987 में देसी घी से अखंड ज्योति जलाकर आंदोलन का बिगुल बजाया था। किसान इस ज्योति को नमन करते हैं.। नरेंद्र टिकैत ने कहा कि लौ को बनाए रखने के लिए करीब 1.25 किलो देसी घी का इस्तेमान किया जाता है, जो कि देश भर के कई गांवों से लाया जाता है। किसान अमर किसान ज्योति पर आते हैं और किसान नेता और उनके पिता महेंद्र सिंह टिकैत को श्रद्धांजलि देते हैं।
लोगो की धारणा यह भी है कि जिस आंदोलन में भी अखंड ज्योति जलाई गई, वह आंदोलन सफल हुआ. बाबा टिकैत के निधन के बाद उनके कमरे में बाबा के चित्र के सम्मुख निरंतर यह ज्योति प्रज्वलित है. आंदोलन में शहीद हुए किसानों की शहादत में प्रज्जवलित इस अखंड ज्योति से किसानों को प्रेरणा मिलती है। रोजाना इस ज्योति में घी अर्पित किया जाता हैं। आज भी बाबा टिकैत का हुक्का गर्म किया जाता है
किसानों के लिए लंबी लड़ाई और अनेक किसान आंदोलन करने वाले 76 वर्षीय बाबा महेंद्र सिंह टिकैत का 15 मई 2011 को लंबी बीमारी के चलते निधन हो गया था। बाबा टिकैत के कमरे में आज भी उनकी खाट पर बिस्तर लगाया जाता है. बाबा टिकैत का हुक्का बाकायदा गर्म करके उनकी खाट के पास रखा जाता है। बाबा की खाट के पास बाकायदा लकड़ी के बने मूढ़े आज भी रखे हुए हैं. इन पर बैठकर क्षेत्र के ग्रामीण किसान अपनी समस्याएं बाबा को बताते थे. कमरे में बाकायदा साफ सफाई का ध्यान रखा जाता है. इसी कमरे में बाबा की देसी घी की अखंड ज्योत प्रज्जवलित रहती है. बाबा टिकैत के बरामदे में बने हॉल की दीवारों पर लगाए गए चित्रों से बाबा के संघर्ष और आंदोलन को आज भी जीवंत रखा गया है.।
बाबा टिकैत शुरू से ही पशु प्रेमी थे. बाबा टिकैत ने अच्छी नस्लों की गाय और भैंस अपने घेर पाल रखी थीं. इतना ही नहीं बाबा टिकैत ने एक घोड़ी भी पाल रखी थी. बाबा टिकैत के परिवार ने उन सभी चीजों को आज भी जीवंत रखा है, जो बाबा टिकैत को पसंद था.

32 साल पहले भारतीय किसान यूनियन के संस्थापक रहे चैधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने दिल्ली को ठप कर दिया था. उस वक्त केंद्र में राजीव गांधी की सरकार थी. उन्हें किसानों के आगे झुकना ही पड़ा था. दो माह से कड़ाके की सर्दी में सड़कों पर डटे किसानों को सत्ता से टकराने का जज्बा और प्रेरणा बाबा टिकैत से ही मिली. किसानों को अपने हक के लिए लड़ना सिखाने वाले चैधरी महेंद्र सिंह टिकैत के एक इशारे पर लाखों किसान जमा हो जाते थे. कहा तो यहां तक जाता था कि किसानों की मांगें पूरी कराने के लिए वह सरकारों के पास नहीं जाते थे, बल्कि उनका व्यक्तित्व इतना प्रभावी था कि सरकारें उनके दरवाजे पर आती थीं.


सन 2008 में किसानों के उत्पीड़न को लेकर एक पंचायत जनपद बिजनौर में की गई थी. इसमें चैधरी महेंद्र सिंह टिकैत भी थे. उस समय प्रदेश में बसपा की सरकार थी और मायावती मुख्यमंत्री थीं. बाबा टिकैत ने अपने संबोधन में मायावती पर टिप्पणी की, जिस पर प्रदेश की मुख्य्मंत्री नाराज हो गईं. बाबा टिकैत के खिलाफ मुकदमा दर्ज किया गया. उनकी गिरफ्तारी को लेकर पुलिस ने तैयारी कर ली. बाबा की गिरफ्तारी के विरोध में हजारों किसान ट्रैक्टर-ट्रॉली लेकर सिसोली पहुंच गए. सभी रास्तों को सील कर दिया गया. किसानों का जनसैलाब देखकर प्रशासन सहम गया. सुनियोजित ढंग से बाबा टिकैत और मायावती का विवाद समाप्त हुआ. इसी मामले में हुई पंचायत में प्रदेश भर के किसानों और राजनैतिक पार्टियों ने बाबा को समर्थन देकर बाबा टिकैत का स्वाभिमान बचाया था.किसान नेता महेंद्र सिंह टिकैत का मुजफ्फरनगर में निधन

मुद्दा चाहे गन्ना भुगतान का हो या फिर बिजली-पानी का. बाबा टिकैत किसान हित में कभी पीछे नहीं रहते थे. अधिकारियों के यहां हुक्के की गुड़गुड़ाहट के साथ डेरा डाल देते थे और तब तक नहीं उठते थे जब तक समस्या का समाधान न हो जाए. बाबा टिकैत ने अपने जीवनकाल में बहुत से ऐतिहासिक आंदोलन किए हैं. चैधरी टिकैत ने कहा था कि सरकार की गोली और लाठी, किसान की राह नहीं रोक सकते. किसानों के हित के लिए टिकैत सरकार से कई बार नाराज हुए. किसानों के लिए उन्होंने सरकार से कई बार आमना-सामना किया. टिकैत का प्रभाव सूबे से लेकर देश की राजनीति तक था, लेकिन उन्होंने किसान आंदोलन को राजनीति से बिल्कुल अलग रखा. किसानों के प्रति अपने आप को समर्पित करते हुए चैधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने 15 मई 2011 को अंतिम सांस ली. उनके निधन पर प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री, राजनेताओं और किसानों तक ने गहरी संवेदना व्यक्त की थी. किसानों के बीच वह आज भी जिंदा हैं.

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