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गृहस्थ जीवन में रामायण को आत्मसात करें: महामंडलेश्वर धर्मदेव

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गृहस्थ जीवन में रामायण को आत्मसात करें: महामंडलेश्वर धर्मदेव

घर को स्वर्ग बनाएं, धरती स्वयं स्वर्ग बन जाएगी

परिवार का प्रत्येक सदस्य देवताओं का ही स्वरूप

जप-तप, यज्ञ-हवन से मिलता है सांसारिक सुख

आध्यात्मिक सुख शांति के लिए घर को स्वर्ग बनाएं

फतह सिंह उजाला
पटौदी ।
 भारतीय सनातन संस्कृति में गीता और रामायण सबसे अधिक प्रेरणादाई और पूजनीय है। गीता और रामायण में हमारे अपने जीवन चक्र का रहस्य और धर्म-कर्म सहित अध्यात्म का संपूर्ण ज्ञान एवं मार्गदर्शन समाहित है । गृहस्थ जीवन में रामायण को आत्मसात करें। निश्चित ही हमे अपना जन्म लेने का उद्देश्य का ज्ञान प्राप्त होगा तथा जीवन में आने वाली विभिन्न प्रकार की समस्याओं-व्याधियों के समाधान का मार्गदर्शन भी प्राप्त होगा । यह बात वेदों, धर्म ग्रंथों एवं पुराणों के मर्मज्ञ संस्कृत के प्रकांड विद्वान समाज सुधारक चिंतक आश्रम हरी मंदिर शिक्षण संस्थान के पीठाधीश्वर महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव महाराज ने अपनी 18वीं कल्पवास साधना के समापन के मौके पर उपस्थित श्रद्धालुओं के बीच कहीं ।

18वीं कल्पवास साधना के समापन से पहले देवी देवताओं का आह्वान कर हवन यज्ञ में प्रत्येक जीव के कल्याण, स्वास्थ्य, सुख समृद्धि, पर्यावरण की शुद्धि, सामाजिक भाईचारा, राष्ट्र की एकता-अखंडता के लिए सामूहिक रूप से आहुतियां अर्पित की गई । इसी मौके पर विधि विधान और वैदिक मंत्रोच्चारण के बीच महामंडलेश्वर स्वामी धर्मदेव के द्वारा कल्पवास साधना के समापन के मौके पर अपने हाथों से पूर्णाहुति सर्वजन हिताय-सर्वजन सुखाय के संकल्प के साथ अर्पित की गई । इस मौके पर अनेक गणमान्य लोग और महामंडलेश्वर धर्मदेव के शिष्य एवं अनुयाई मौजूद रहे । इस मौके पर अपने आशीर्वचन में उन्होंने कहा कि जप- तप, यज्ञ-हवन इत्यादि से सांसारिक और भौतिक सुख की प्राप्ति होती है। यदि वास्तव में आध्यात्मिक और आत्मिक सुख शांति प्राप्त करनी है तो इसके लिए ऋषि मुनियों द्वारा रचित धर्म ग्रंथों महा पुराणों को जीवन में आत्मसात करना चाहिए । उन्होंने कहा घर को स्वर्ग बना लिया जाए तो पूरी धरती अपने आप ही स्वर्ग बन जाएगी। वास्तव में परिवार का प्रत्येक सदस्य देवता का ही स्वरूप है, फिर वह चाहे नवजात शिशु हो या परिवार का सबसे बड़ा और बुजुर्ग सदस्य हो।

उन्होंने भावुक होते हुए कहा कि आज वह इस भौतिक संसार में जिस मुकाम पर पहुंचे हैं, वह सब उनके पिता के संस्कार की संपत्ति की बदौलत ही संभव हो सका है । जन्म के साथ परिवार से जो संस्कार धरोहर के रूप में प्राप्त हुए, उन्हीं संस्कारों को दादा गुरु ब्रह्मलीन स्वामी अमरदेव महाराज और गुरु ब्रह्मलीन स्वामी कृष्ण देव महाराज के द्वारा दी गई शिक्षा-दीक्षा के प्रतिफल स्वरूप अपना जीवन और प्रत्येक सांस जन कल्याण के लिए अर्पित किए हुए हैं । उन्होंने कहा कि हमारे अपने जीवन में सेवा, समर्पण और त्याग की भावना बहुत जरूरी है । इसके बिना परिवार, समाज, राष्ट्र एकजुट नहीं रह सकता। उन्होंने कहा जीवन में कामयाबी के लिए और लक्ष्य प्राप्त करने के लिए सच का ही अनुसरण करते हुए सच को जीवन का सारथी बनाना चाहिए । अपनी भविष्य में की जाने वाली कल्पवास साधना का विस्तार किया जाने की चर्चा करते हुए महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज ने कहा कि 18 वर्ष से यहां पटौदी आश्रम हरी मंदिर परिसर में साधना कर रहे हैं , अब भविष्य में पूरब, पश्चिम, उत्तर, दक्षिण चारों दिशाओं में जहां भी संभव होगा वहीं पर ही माघ माह में अपनी कल्पवास साधना किया जाना आरंभ करेंगे ।

उन्होंने एक माह की कठोर कल्पवास साधना के दौरान किए गए जप तप, हवन-यज्ञ, मंत्रोच्चारण इत्यादि से प्राप्त होने वाले पुण्य में वैसे अपने लिए भोलेनाथ महादेव से कुछ भी नहीं मांगा । उन्होंने कहा कल्पवास साधना का जो भी कुछ पुण्य बनता है , वह सब पुण्य संपूर्ण जगत में सभी को उनकी जरूरत के मुताबिक प्राप्त हो । परमपिता परमेश्वर मेरी झोली खाली रखें , लेकिन जिनकी आस्था, विश्वास, धर्म-कर्म, हवन-यज्ञ, गुरुजनों की सेवा, माता पिता की सेवा, बुजुर्गों की सेवा, सदाचार का पालन करना, समाज राष्ट्र की चिंता करना, दीन दुखियों की मदद करने में है, संपन्न हुई कल्पवास साधना का पुण्य ऐसे सभी लोगों को महादेव भगवान भोले की कृपा से उन्हें प्राप्त हो जाए । उन्होंने कहा साधु संतों की संगत और सत्संग बहुत ही सौभाग्य से और पुण्य से ही प्राप्त होता है । हमारा प्रयास होना चाहिए अपने इस मानव जीवन में ऐसे किसी भी अवसर को व्यर्थ नहीं जाने दे, तभी हमारा जीवन भी सफल हो सकेगा। अंत में महामंडलेश्वर धर्मदेव महाराज के द्वारा सभी श्रद्धालूओं को अपने हाथों से कल्पवास साधना के समापन का महाप्रसाद वितरित किया गया। 
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