आदि गुरु शंकराचार्य वैशाख शुक्ल पञ्चमी जन्मोत्सव
आद्य गुरु शंकराचार्य वैशाख शुक्ल पञ्चमी जन्मोत्सव
आदि गुरु शंकराचार्यजी का जन्म वैशाख शुक्ल पंचमी को दक्षिण राज्य केरल के कालड़ी नामक ग्राम में शिव भक्त भट्ट ब्राह्मण परिवार में हुआ था। इनके पिता का नाम शिवगुरु नामपुद्री और माता का नाम विशिष्टादेवी था। गुरु शंकराचार्य जी के माता-पिता परम शिव भक्त थे।
गुरु शंकराचार्य के माता-पिता को यह आभास हो गया था कि उनका पुत्र कोई साधारण बालक नहीं है, बल्कि वह एक तेजस्वी बालक हैं। हालांकि बचपन में ही उनके पिता का साया उनके ऊपर से उठ गया था।
आदि गुरु शंकराचार्य विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। शंकराचार्य जी को छोटी आयु में सारे वेदों, उपनिषदों, पुराणों, रामायण, महाभारत कंठस्थ हो गए थे। उनके इस ज्ञान को देखकर गुरुकुल में उनके गुरुजन हैरान हो गए थे। उन्हें भगवान शिव का अवतार भी माना जाता है। उन्होंने केवल सात वर्ष की आयु में सन्यास ग्रहण कर लिया था।
आदि गुरु शंकराचार्य का जन्म भले ही दक्षिण भारत में हुआ हो लेकिन लेकिन उनका कार्यक्षेत्र संपूर्ण भारत रहा। उन्होंने अद्वैत वेदांत के दर्शन का विस्तार किया। सनातन धर्म का संरक्षण करने के लिए आदिगुरु ने भारत के चारों कोनों में चार मठों की स्थापना की। जो आज भी हिन्दू धर्म के सबसे पवित्र मठ माने जाते हैं और आस्था के बड़े केन्द्र हैं।
जिस समय हिन्दू धर्म अपनी गरिमा खोता जा रहा था तथा अन्य धर्म हिन्दू धर्म को नष्ट करने के लिए प्रयासरत थे। उस समय आदि गुरु शंकराचार्य ने हिन्दू धर्म के उत्थान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई तथा हिन्दू धर्म को उसका गौरव पुन: दिलाया।
उन्होंने सनातन धर्म की प्रतिष्ठा के लिए भारत के 4 क्षेत्रों में चार मठ स्थापित किए तथा शंकराचार्य पद की स्थापना करके उन पर अपने चार प्रमुख शिष्यों को स्थापित किया। तबसे इन चारों मठों में शंकराचार्य पद की परम्परा चली आ रही है।
ये चार मठ इस प्रकार हैं-
- 🔥उत्तरामण्य मठ या उत्तर मठ, ज्योतिर्मठ जो कि जोशीमठ में स्थित है।
2.🔥पूर्वामण्य मठ या पूर्वी मठ, गोवर्धन मठ जो कि पुरी में स्थित है।
3.🔥दक्षिणामण्य मठ या दक्षिणी मठ, शृंगेरी शारदा पीठ जो कि शृंगेरी में स्थित है।
4.🔥 पश्चिमामण्य मठ या पश्चिमी मठ, द्वारिका पीठ जो कि द्वारिका में स्थित है।
आदि गुरु शंकराचार्य अल्पायु के थे। उन्होंने केवल 32 वर्ष की आयु में अपना शरीर त्याग दिया था। उन्होंने केदारनाथ (उत्तराखंड) के समीप अपने जीवन की अन्तिम सांसे लीं। अपनी इस छोटी सी यात्रा में उन्होंने कई बड़े महान कार्य किए, जिनके लिए उन्हें सदैव स्मरण किया जाता है।
ऐसे महान् ओजस्वी, तेजस्वी एवं विलक्षण प्रतिभा वाले आद्य गुरु शंकराचार्य जी के चरणों में शत्-शत् नमन्।
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