बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य किया हासिल
बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य किया हासिल
वहीं, भारत इससे पहले विश्व में तेजी से घट रही बाघों की संख्या को बढ़ाने को लेकर भी उत्साहजनक कार्य कर चुका है। आज वैश्विक स्तर पर जंगली बाघों की आबादी का लगभग 75% हिस्सा भारत में है। भारत ने 2022 के तय वर्ष से चार साल पहले 2018 में ही बाघों की संख्या को दोगुना करने का लक्ष्य हासिल कर लिया था। भारत में बाघ न केवल एक संरक्षण प्रजाति है, बल्कि पूरे भारतीय उपमहाद्वीप में अधिकांश पर्यावरणीय क्षेत्रों के लिए यह एक अम्ब्रेला प्रजाति के रूप में भी काम करती है। इस प्रकार बाघों को सुरक्षित रखने से वन पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे छोटे स्तरों पर जीवनों को संरक्षण प्राप्त होता है।
देश में तेंदुओं की संख्या में 60 फीसदी की बढ़ोतरी
देश में तेंदुओं की जनसंख्या में 60 फीसदी से अधिक की वृद्धि दर्ज की जा चुकी है। देश में 2014 में 7,910 तेंदुए थे। अब ये संख्या बढ़कर 12,852 हो गई हैं। यदि प्रदेशों में तेंदुए की संख्या की बात की जाए तो सबसे अधिक मध्य प्रदेश में-3421, कर्नाटक में-1783 और महाराष्ट्र में 1690 पाए गए हैं।
जैव विविधता क्यों महत्वपूर्ण है ?
उल्लेखनीय है कि किसी पारितंत्र में पाई जाने वाली प्रत्येक प्रजाति की अपनी -अपनी भूमिका होती है। प्रत्येक प्रजाति के अस्तित्व का महत्व होता है। प्रत्येक जीव न केवल अपनी क्रियाएं करता है ,बल्कि साथ-साथ दूसरे जीवों के पनपने में भी सहायक होता है। सह-जीविता इसका एक उदाहरण है। दूसरा, पारितंत्र में जितनी अधिक विविधता होगी, प्रजातियों के प्रतिकूल स्थितियों में भी रहने की संभावना और उनकी उत्पादकता भी उतनी ही अधिक होगी। दूसरे शब्दों में, प्रजातियों के ह्रास से समूचे तंत्र के अस्तित्व पर संकट आ जाएगा। यानि जिस पारितंत्र में जितनी प्रकार की प्रजातियां होती हैं, वह पारितंत्र उतना ही अधिक स्थायी होता है।
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