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परिवार के बुजुर्ग संस्कार – अनुभव का अनमोल खजानाः विनोद शर्मा

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परिवार के बुजुर्ग संस्कार – अनुभव का अनमोल खजानाः विनोद शर्मा

दान-धर्म ,सेवा भाव यह सभी गुण होते हैं पारिवारिक वंशानुगत

दान-धर्म और जरूरतमंद की मदद भारतीय सनातन की पहचान

किसी की भी मदद करने से अन्य लोगों को मिलती है प्रेरणा

फतह सिंह उजाला
पटौदी । 
परिवार के बुजुर्ग संस्कार सहित अनुभव का अनमोल खजाना होते हैं। बेशक से अतीत में हमारे बड़े बुजुर्ग आज के माहौल की तरह अधिक पढ़े लिखे हुए नहीं हो, लेकिन भारतीय सनातन संस्कृति संस्कार सामाजिक एकता ताना-बाना आपसी भाईचारा एक दूसरे की मदद करना यह सब हमारे अपने बुजुर्गों के मार्गदर्शन की बदौलत ही आज हम इन सभी का पालन भी करते आ रहे हैं । दान धर्म और जरूरतमंद की मदद करना , यह सब भारतीय सनातन संस्कृति का अभिन्न अंग रहा है और जब तक सूरज चांद है , यह सिलसिला और कार्य अनवरत जारी ही रहेगा। यह बात वरिष्ठ भाजपा नेता और हेली मंडी के पूर्व पार्षद विनोद शर्मा ने अपने स्वर्गीय पिता पंडित परसराम शर्मा की 20वीं पुण्यतिथि के मौके पर जरूरतमंद लोगों को जरूरत का सामान भेंट करते हुए कही ।

इससे पहले पूर्व पार्षद विनोद शर्मा , महेश शर्मा पिंकी, विनोद शर्मा की पुत्री जोकि शूटर दीदी और दंगल गर्ल के नाम से मशहूर शिक्षा विभाग दिल्ली में कार्यरत है हर्षू शर्मा ,पूर्व पार्षद श्री पाल चौहान, सुमन शर्मा, महिमा शर्मा, चहित शर्मा, ज्योति शर्मा, मनीषा शर्मा, विजय भारद्वाज, अनिल भारती, सुरेंद्र कपूर गर्ग,धीरज शर्मा, दुुष्यंत शर्मा, यश्सस्वी शर्मा, यश्सपाल जांगड़ा, सुरेश भाटोटिया सहित अन्य के द्वारा स्वर्गीय पंडित परसराम के समाधि स्थल पर पुष्प अर्पित कर उन्हें नमन करते हुए उनके द्वारा किए गए समाज हित के कार्यों को जारी रखने का संकल्प लिया गया। इस मौके पर हेली मंडी नगर पालिका क्षेत्र के विनोद प्रधान कॉलोनी में लगभग एक सौ जरूरतमंद परिवार के सदस्यों को पारिवारिक जरूरत और आवश्यकता का सामान स्वर्गीय पंडित परसराम के परिवार की मौजूदा और वर्तमान पीढ़ी के सदस्यों के द्वारा अपने हाथों से भेंट किया गया ।

इस मौके पर विनोद शर्मा ने कहा भारतीय समाज का ताना-बाना और हमारी अपनी सनातन संस्कृति का सबसे मजबूत सामाजिक ताना-बाना जरूरत के समय एक दूसरे की मदद करना ही है । वास्तव में देखा जाए तो दान धर्म करना , पुण्य के कार्य करना ,जरूरतमंद के काम आना या अन्य किसी भी प्रकार से किसी किसी की भी जरूरत के मुताबिक मदद करना , यह सब पूर्ण अनुवांशिक गुण ही होते हैं । यह गुण पीढ़ी दर पीढ़ी चलते ही रहते हैं । हां इतना अवश्य हो सकता है कि मदद करने का तरीका बदल जाए या बदल गया हो । भारतीय सनातन संस्कृति और शास्त्रों में भी कहा गया है नेकी करो और भूल जाओ । वास्तव में देखा जाए तो इंसान जब जन्म लेता है तब भी खाली हाथ होते हैं और जब इस दुनिया में अपना जीवन पूरा कर महाप्रस्थान करता है ,तब भी उसके हाथ खाली ही होते हैं ।

उन्होंने कहा व्यक्ति अथवा इंसान के द्वारा किए गए कार्य की बदौलत ही संबंधित व्यक्ति को याद किया जाता है या फिर उसकी समाज के बीच में पहचान कायम होती है । समाज हित में किए गए कार्यों की यही पहचान और संबंधित व्यक्ति के द्वारा किए गए समाज हित के कार्य किसी न किसी रूप में प्रेरणा देने का कार्य करते रहते हैं। इसलिए जितना संभव हो सके या जितना भी सामर्थ हो , उसी हैसियत से जरूरतमंद की मदद करते रहना चाहिए । एक दूसरे की मदद करते रहना ही हमारे सामाजिक एकता भाईचारे और संस्कारों की एक ऐसी पूंजी है , जो अन्य लोगों को भी हमेशा अपनी तरफ आकर्षित करती रहेगी।

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