सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी और बच्चों की हत्या के लिए मौत की सजा पाए व्यक्ति को बरी किया
सुप्रीम कोर्ट ने पत्नी और बच्चों की हत्या के लिए मौत की सजा पाए व्यक्ति को बरी किया
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को 2013 में अपने परिवार की हत्या के लिए मौत की सजा का सामना कर रहे एक व्यक्ति को बरी कर दिया. अदालत ने कहा कि जब मामला सनसनीखेज हो जाता है तो जांच एजेंसियों पर अपराधी को खोजने का भारी दबाव होता है और जब अदालतें किसी जघन्य अपराध में न्याय देने के लिए उत्साहित होती हैं, तो यह सुनिश्चित होता है कि आरोपी व्यक्ति पर्याप्त सबूतों के बिना ही सही, मौत की सजा तक पहुंच जाए.
जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस संजय करोल और जस्टिस संदीप मेहता की तीन सदस्यीय पीठ ने आरोपी की मृत्युदंड की पुष्टि करने वाले पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय के आदेश को खारिज कर दिया. पीठ ने कहा कि कोई भी व्यक्ति उस कहर की व्यापकता की कल्पना कर सकता है जो एक शांत गांव में मची होगी, जो एक सुबह एक परिवार के चार सदस्यों की मौत की खबर से जागता है, जिनमें से दो की उम्र अभी पांच साल भी नहीं हुई है, तथा परिवार के दो अन्य सदस्य गंभीर रूप से घायल हैं.
पीठ ने कहा, “यह स्वाभाविक है कि मामला कुछ ही समय में इतना सनसनीखेज हो जाए कि स्थानीय अखबारों की सुर्खियां बन जाए और जांच एजेंसियों पर अपराधी को पकड़ने का भारी दबाव हो. न्याय व्यवस्था की विफलता तब सामने आ जाती है जब किसी पर दोष मढ़ने की इतनी जल्दी, घटिया जांच और खराब तरीके से चलाए गए मुकदमे की ओर ले जाती है.”
शीर्ष अदालत ने कहा कि इसका नतीजा यह हुआ कि अभियोजन पक्ष का मामला ढीला-ढाला है और उसमें हर जगह बड़ी खामियां हैं, फिर भी इतने जघन्य अपराध में न्याय देने के लिए अदालतों का उत्साह यह सुनिश्चित करता है कि आरोपी व्यक्ति बिना किसी पर्याप्त सबूत के ही मौत की सजा तक पहुंच जाए. पीठ ने कहा, “यही वह दुख है जो इस मामले में निहित है.”
व्यक्ति को बरी करते हुए पीठ ने कहा कि जब मानव जीवन दांव पर लगा हो और उसकी कीमत खून की हो, तो मामले को पूरी ईमानदारी से निपटाया जाना चाहिए.
पीठ ने मामले में अभियोजन पक्ष के प्रमुख गवाहों की गवाही में बड़े विरोधाभासों पर जोर दिया और कहा कि यह नहीं कहा जा सकता कि अभियोजन पक्ष ने अपने मामले को उचित संदेह से परे साबित कर दिया है. पीठ ने कहा, “मौजूदा मामले में, जहां अभियोजन पक्ष के प्रमुख गवाहों की गवाही में बड़े विरोधाभास हैं और साथ ही जांच संबंधी स्पष्ट खामियां भी हैं, यह नहीं कहा जा सकता कि अभियोजन पक्ष ने आरोप को उचित संदेह से परे साबित कर दिया है. दोहराव की कीमत पर, हमें यह कहना होगा कि सबूत का मानक बिल्कुल सख्त है और इससे कोई समझौता नहीं किया जा सकता.”
पीठ ने कहा कि वह आरोपी-अपीलकर्ता को आरोपित अपराध का दोषी नहीं ठहरा सकती क्योंकि उसका अपराध उचित संदेह से परे साबित नहीं हुआ है. पीठ ने गवाहों द्वारा अलग-अलग समय पर सुनाई गई एक ही घटना के अलग-अलग रूपों की ओर इशारा किया.
आरोप है कि बलजिंदर ने 29 नवंबर, 2013 को अपनी पत्नी, बच्चों और साली की हत्या कर दी और दो अन्य को घायल कर दिया. हत्याओं से कुछ दिन पहले दोषी अपनी सास से मिलने गया था और अपनी पत्नी और बच्चों को जान से मारने की धमकी दी थी, जो पैसों के विवाद के चलते उसे छोड़कर चले गए थे.