गुरुग्राम के पारस हॉस्पिटल मे 60 वर्षीय ब्रेन डेड महिला का अंग दान करके बचाई गई 4 जाने
गुरुग्राम के पारस हॉस्पिटल मे 60 वर्षीय ब्रेन डेड महिला का अंग दान करके बचाई गई 4 जाने
● न्यूरोसर्जरी टीम ने महिला के इलाज़ में की पूरी कोशिश: डॉक्टरों ने किया ब्रेन डेड घोषित
● नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांटेशन ऑर्गनाइजेशन (एनओटीटीओ) के दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए महिला की दोनों किडनी और दोनों आंखें दान करके 4 लोगों की जान बचाई गई।
● भारत में कुल आबादी की मात्र 0.34 % आबादी ही अंगदान करती हैं। यह आंकड़ा पूरी दुनिया में सबसे कम है।
प्रधान संपादक योगेश
गुरुग्राम: पारस हॉस्पिटल में मृतक से अंगदान के मामले में दिल्ली/ एनसीआर में एक बार फिर सफ़लता हासिल की है। दरअसल एक 60 वर्षीय ब्रेन डेड महिला के अंगो से पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में 4 लोगों की जिन्दगी बचाई गई। मृतक महिला के शरीर से 2 किडनी और 2 आंखो (कॉर्निया) को दिल्ली/ एनसीआर में अलग अलग लोगों में लगाया। बताते चलें कि इस मामले में नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांटेशन ऑर्गनाइजेशन (एनओटीटीओ) के नियम के अनुसार अंगों को 10 जुलाई की शाम के 6 बजे पर मृतक के शरीर से निकाल कर अन्य लोगो में लगाया गया। महिला की एक किडनी पारस अस्पताल, गुड़गांव में एक मरीज को दी गई और दूसरी एशियन हॉस्पिटल फरीदाबाद में एक अन्य मरीज को दी गई। दोनों कॉर्निया श्रॉफ आई सेंटर के आई बैंक में रखी गई हैं.
जब मरीज़ को ब्रेन डेड घोषित किया गया तो पारस हॉस्पिटल के डॉक्टरों ने मरीज़ के परिवार वालों से अंगदान के बारे में सलाह मशविरा किया। मृतक महिला अपने अंगों से कई जिंदगियों को बचा सकती थी इसी के बारे में सोचते हुए उसके परिवार वालो ने अंगदान के लिए सहमति दी। नेशनल ऑर्गन एंड टिश्यू ट्रांसप्लांटेशन ऑर्गनाइजेशन (एनओटीटीओ) के नियमो के अनुसार पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम में एक किडनी एक मरीज़ को लगाई गई और दिल्ली के प्राइवेट अस्पतालों में दो मरीजों को एक किडनी और एक आंख लगाई गई।
पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के किडनी ट्रांसप्लांट और नेफ्रोलॉजी डिपार्टमेंट के डायरेक्टर एंड एचओडी डॉ पी एन गुप्ता ने इस केस के बारे में विस्तार से बताया। उन्होने कहा, “पूरी टीम के प्रयासों की वजह से कई लोगों में अंगो को ट्रांसप्लांट करने की 20 घंटे की प्रक्रिया को सफलतापूर्वक अंजाम दिया गया । बहुत ही कम मरीजों को अंगदान के महत्त्व के बारे में पता होता है। अंगदान करने से इस केस में 4 जिंदगियों को बचाया गया। ब्रेन डेड होने पर समाज को अंगो को दान करने पर जोर देना चाहिए। क्योंकि इस कदम से जिन लोगों का कोई अंग खराब हो चुका होता है उनकी जिन्दगी में सुधार हो सकता है। अंगदान ज्यादा न होने की मुख्य वजह यह है कि लोगों को उन लोगों की जिन्दगी की हकीकत का अंदाजा नहीं होता है जो डैमेज हो चुके अंगो के साथ जीते हैं। अंगो को कोई भी दान कर सकता है। इसमें उम्र, जाति, लिंग और तबका मायने नही रखता है। इस विश्व अंगदान दिवस (13 अगस्त) पर आइए हम मौत के बाद अपने अंगों को दान करने और कई लोगों की जान बचाने का संकल्प लें, जिससे जागरूकता फैलाई जा सके और अंगदान के बारे में फैले किसी भी मिथक और डर को खत्म किया जा सके।”
इस केस के बारे में बात करते हुए पारस हॉस्पिटल, गुरुग्राम के रीजनल डायरेक्टर डॉ समीर कुलकर्णी ने कहा, “हम 60 वर्षीय महिला के हॉस्पिटल में भर्ती होते ही उसके केस के हर पहलू का अध्ययन कर रहे थे। बहुत कोशिश करने के बाद भी हम उसे नहीं बचा सके और मृतक के परिवार को उनकी मौत से काफ़ी गहरा धक्का लगा, लेकिन उनके परिवार वालों द्वारा मुश्किल समय में भी अंगों को दान करने और दूसरों के जीवन को बचाने की उनकी इच्छा इस बात की गवाही देती है कि दुनिया में अच्छाई की कमी नहीं है। हमने उनके फैसले की वजह से चार लोगों की जान बचाई। एक परिवार के फैसले ने चार अन्य परिवार में खुशी लाई है। 13 अगस्त को हर साल विश्व अंग दान दिवस मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य अंग दान के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाना, अंगदान को लेकर फैले भ्रम को दूर करना है। इस दिन को मनाने का उद्देश्य लोगों को ज्यादा जीवन बचाने के लिए मौत के बाद स्वस्थ अंग दान करने के लिए प्रोत्साहित करना है।”
आंकड़ों के अनुसार, इस समय भारत में मौत के बाद अंगदान धीरे-धीरे बढ़ रहा है, लेकिन हम अभी भी स्पेन और अमेरिका जैसे देशों से बहुत पीछे हैं, वहां पर प्रति मिलियन जनसंख्या 46.9 % और 31.96 % अंगदान होता है। भारत में केवल 0.34 प्रति मिलियन जनसंख्या मृत्यु के बाद अंग दान करती है, भारत का यह आंकड़ा दुनिया में सबसे कम है।
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