महा शिवरात्रि के बारे में 25 कम ज्ञात तथ्य
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- 🕉️🔱महा शिवरात्रि भगवान शिव के सम्मान में प्रतिवर्ष मनाया जाने वाला एक हिंदू त्योहार है, और विशेष रूप से, शिव के विवाह की समाप्ति का दिन है। हिंदू कैलेंडर के प्रत्येक चंद्र-सौर महीने में, महीने की 13 वीं रात/14 वें दिन शिवरात्रि होती है, लेकिन साल में एक बार देर से सर्दियों (फरवरी/मार्च, या फाल्गुन) में और गर्मियों के आगमन से पहले, महा शिवरात्रि होती है। जिसका अर्थ है “शिव की महान रात”।
- 🕉️🔱महा शिवरात्रि का उल्लेख कई पुराणों में मिलता है
- 🕉️🔱महा शिवरात्रि का उल्लेख कई पुराणों, विशेष रूप से स्कंद पुराण, लिंग पुराण और पद्म पुराण में मिलता है। मध्यकालीन युग के ये शैव ग्रंथ इस त्योहार से जुड़े विभिन्न संस्करणों को प्रस्तुत करते हैं, और उपवास का उल्लेख करते हैं, शिव के प्रतीक जैसे लिंगम के प्रति श्रद्धा।
- 🕉️🔱शिव सृजन, संरक्षण और विनाश का नृत्य करते हैं
- 🕉️🔱विभिन्न किंवदंतियां महा शिवरात्रि के महत्व का वर्णन करती हैं। शैव परंपरा में एक किंवदंती के अनुसार, यह वह रात है जब शिव सृजन, संरक्षण और विनाश का स्वर्गीय नृत्य करते हैं। भजनों का जाप, शिव शास्त्रों का पाठ और भक्तों का कोरस इस लौकिक नृत्य में शामिल हो जाता है और हर जगह शिव की उपस्थिति को याद करता है।
- 🕉️🔱शिव पूजा के लिए रात का सबसे महत्वपूर्ण समय
- 🔱🕉️निशिता कला या वह समय जब भगवान शिव पृथ्वी पर शिव लिंगम के रूप में प्रकट हुए, शिव पूजा के लिए रात का सबसे महत्वपूर्ण समय है। दूध, शहद, चीनी, मक्खन, काले तिल, गंगा जल आदि से शिवलिंग को स्नान कराया जाता है। इसके बाद शिवलिंग पर चंदन का लेप और चावल लगाया जाता है और ताजे फल और फूल चढ़ाए जाते हैं।
- 🕉️🔱शिव और पार्वती का विवाह – महाशिवरात्रि
- 🔱🕉️एक अन्य कथा के अनुसार यह वह रात है जब शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। इस रात में भगवान शिव के रुद्र अभिषेकम के दर्शन करने के लिए लाखों लोग 12 ज्योतिर्लिंग शिव मंदिरों या उनके स्थानीय मंदिरों में जाते हैं। शिव पंचाक्षरी मंत्र, ओम नमः शिवाय का जप भक्तों द्वारा उनके विभिन्न नामों के साथ किया जाता है। यह अविवाहित महिलाओं के लिए एक विशेष रात है, जो भगवान शिव जैसा पति चाहती हैं क्योंकि वह आदर्श साथी हैं।
- 🕉️🔱पिछले पापों से मुक्ति पाने का वार्षिक अवसर
- 🔱🕉️एक अलग किंवदंती में कहा गया है कि शिव के प्रतीक जैसे लिंग को चढ़ाने का एक वार्षिक अवसर है, यदि कोई हो, तो पिछले पापों को दूर करने के लिए, एक पुण्य मार्ग पर फिर से शुरू करने और इस तरह कैलाश पर्वत और मुक्ति तक पहुंचने के लिए।
- 🕉️🔱नृत्य परंपरा का महत्व
- 🔱🕉️इस उत्सव में नृत्य परंपरा के महत्व की जड़ें ऐतिहासिक हैं। महा शिवरात्रि ने कोणार्क, खजुराहो, पट्टाडकल, मोढेरा और चिदंबरम जैसे प्रमुख हिंदू मंदिरों में वार्षिक नृत्य समारोहों के लिए कलाकारों के ऐतिहासिक संगम के रूप में कार्य किया है। इस घटना को नाट्यंजलि कहा जाता है, जिसका शाब्दिक अर्थ है “नृत्य के माध्यम से पूजा”, चिदंबरम मंदिर में, जो नाट्य शास्त्र नामक प्रदर्शन कला के प्राचीन हिंदू पाठ में सभी नृत्य मुद्राओं को दर्शाती अपनी मूर्तिकला के लिए प्रसिद्ध है।
- 🕉️🔱महा शिवरात्रि को आत्मा की सबसे चमकदार रात माना जाता है
- 🔱🕉️महा शिवरात्रि को वह दिन माना जाता है जब आदियोगी या पहले गुरु ने अस्तित्व के भौतिक स्तर पर अपनी चेतना जागृत की थी। तंत्र के अनुसार चेतना की इस अवस्था में कोई वस्तुनिष्ठ अनुभव नहीं होता और मन का अतिक्रमण हो जाता है। ध्यानी समय, स्थान और कार्य-कारण का अतिक्रमण करता है। इसे आत्मा की सबसे चमकदार रात के रूप में माना जाता है, जब योगी शून्य या निर्वाण की स्थिति प्राप्त करता है, जो समाधि या रोशनी के बाद की अवस्था है।
- 🕉️🔱महा शिवरात्रि शिव और शक्ति के मिलन का जश्न मनाती है
- 🔱🕉️महा शिवरात्रि ब्रह्मांड की दो सबसे बड़ी शक्तियों शिव और शक्ति के मिलन का उत्सव मनाती है। ऐसा माना जाता है कि महा शिवरात्रि भगवान शिव की प्रिय रात्रि है। इस शुभ रात्रि के दौरान भगवान शिव का नाम लेने से भक्तों को अपने पापों से मुक्ति मिल सकती है। इस रात भगवान शिव की भक्तिपूर्वक पूजा करने से व्यक्ति को सफलता और समृद्धि प्राप्त करने में मदद मिलती है और बुरी आत्माओं को दूर भगाता है।
- 🕉️🔱बिल्व पत्ते 10.🔱🕉️ शिवरात्रि के दिन एक शिकारी, जिसने एक जंगल में कई पक्षियों को मार डाला था, का एक भूखे शेर ने पीछा किया। शेर के हमले से बचने के लिए शिकारी बिल्व के पेड़ पर चढ़ गया। शेर रात भर पेड़ के नीचे अपने शिकार का इंतजार करता रहा। शिकारी पेड़ से गिरने से बचने के लिए जागते रहने के लिए बिल्व वृक्ष की पत्तियों को तोड़कर नीचे गिराता रहा। … जारी रखा …
- 🕉️🔱बिल्व पत्ते
- 🔱🕉️पत्ते एक शिव लिंग पर गिरे जो पेड़ के नीचे स्थित था। बिल्वपत्र चढ़ाने से प्रसन्न होकर शिव ने पक्षियों को मारकर शिकारी द्वारा किए गए सभी पापों के बावजूद शिकारी को बचाया। यह कहानी शिवरात्रि पर बिल्वपत्र से शिव की पूजा करने की शुभता पर जोर देती है।
- 🕉️🔱शिव लिंग की कथा
- 🔱🕉️शिव लिंग की कथा का महा शिवरात्रि से भी गहरा संबंध है। कहानी के अनुसार, ब्रह्मा और विष्णु ने भगवान शिव के आदि (शुरुआत) और अंत (अंत) की खोज के लिए बहुत खोज की। ऐसा माना जाता है कि फाल्गुन महीने के अंधेरे पखवाड़े में 14 वें दिन, शिव ने सबसे पहले खुद को लिंग के रूप में प्रकट किया था। तब से, इस दिन को अत्यंत शुभ माना जाता है और इसे महा शिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है – शिव की भव्य रात। … जारी रखा …
- 🕉️🔱भक्त इस रात में भगवान शिव की पूजा करते हैं
- 🔱🕉️इस अवसर को मनाने के लिए भगवान शिव के भक्त दिन में उपवास रखते हैं और रात भर भगवान की पूजा करते हैं। कहा जाता है कि शिवरात्रि के दिन भगवान शिव की पूजा करने से व्यक्ति को सुख-समृद्धि की प्राप्ति होती है। इस त्यौहार से जुड़े दिलचस्प तथ्यों में से एक है मीठे दूध में मिश्रित भांग का प्रसाद के रूप में सेवन करना, जिसे शिव अनुयायी “ठंडाई” के नाम से भी जानते हैं।
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🕉️🔱महाशिवरात्रि – गृहस्थ महिमा
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🕉️🔱महाशिवरात्रि – फाल्गुन महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी या तेरस। हर महीने यह तेरस शिवरात्रि कहलाता है किंतु कामऋतु वसंत में कामदहनी शिव के विवाह वाला तेरस महती अर्थ धारण कर लेता है। शिव का विवाह गृहस्थ जीवन की प्रतिष्ठा है। गिरि वन प्रांतर में अनेक प्रकार के जीव जंतुओं से उलझते सुलझते, उन्हें पालतू बनाते यायावर मनुष्य का ‘गृह प्रवेश’ है। इस दिन समाज से दूर रहने वाला विनाशी औघड़ घुमंतू फक्कड़ी संन्यासी गृहस्थ बनता है। शक्ति से जुड़ शव शिव हो जाता है। उससे जुड़ गिरि वन प्रांतर की बाला मैदानों की गोरी गउरा हो जाती है।
🕉️🔱संहार से जुड़े होने के कारण शिव की दिशा दक्षिण मानी जाती है। दक्षिण में यमपुरी है। वर्ष का वह आधा भाग जब सूर्य दक्षिणायन होते हैं, पितृयान यानि पितरों का समय माना जाता है। पितर देवतुल्य हैं। उनका तर्पण आगामी पीढ़ी करती है। मृत्यु की कठोर सचाई के बीच इस तरह की व्यवस्था, जीवन की प्रतिष्ठा है कि चाहे जो हो, जीवन जयी रहेगा। जीवन जयी हो इसलिये शिव का विवाह आवश्यक है। वह घर परिवारी हो, यम को निर्देशित करते हुये भी संतति को जन्म दे तो संतुलन हो, विरुद्धों का सामंजस्य हो। बिना सामंजस्य के कैसा जन, कैसा समाज, कैसी पूजा, कैसी व्यवस्था? थोड़ा गहरे उतरें तो यह ऋत की प्राचीन अवधारणा का लौकिक रूप है।
🔱🕉️शिव का विवाह वसंत की काम ऋतु में होता है। जोगी महाभोगी हो उद्दाम वासना में लिप्त होने से पहले समाधिस्थ होता है, काम द्वारा जगाया जाता है। शिव क्रोध से ग्रस्त होता है। त्रिनेत्र द्वारा काम का दहन होता है तब शिवा और शिव युगनद्ध होते हैं। सृष्टि नर्तन का रूपक है यह जिसमें शिव का तांडव है तो शिवा का लास्य भी!
🕉️🔱भले कैलास के खोह में रहते हों, शिवयुगल आदि दम्पति हैं। ब्रह्मा सरस्वती तो शापित हो कलंकी हो गये। विष्णु युगल भी आदर्श नहीं, लक्ष्मी चंचला हैं तो उनके स्वामी बला के सुतक्कड़। बच गये गौरी महेश। सारी सीमाओं के बावजूद वे घर घर के हैं। वे लोक दम्पति हैं। सुख, दुख, कलह, मिलाप, कथा, व्यथा, उपासना, वासना आदि आदि सब धारण किये गाँव गाँव घूमते रहते हैं। गृहस्थ के प्रिय देव महादेव हैं। घरनी की प्रिय देवी गउरा पार्वती हैं।
🔱🕉️गृहस्थ सबका भार वहन करता है। गृहस्थ धर्म का निबाह निर्बल के वश का नहीं, इसके लिये महादेव सा पौरुष और गिरिजा सा धैर्य ममत्त्व चाहिये। मनु कहते हैं:
🕉️🔱जिस प्रकार वायु का आश्रय सभी जीवित प्राणी करते हैं, वैसे ही गृहस्थ का अन्य तीन आश्रम। इसलिये गृहस्थ सर्वोत्तम आश्रम है। ऋषि, पितर, देव, भूत और अतिथि इन सबका पोषण गृहस्थ को ही करना है। यह आश्रम दुर्बल इन्द्रियों वाले के लिये नहीं है। तो इस आश्रम का आदर्श महादेव का दाम्पत्य ही होगा न!
🔱🕉️गृहस्थों के आदर्श गौरीशंकर!
🕉️🔱भगवान शिव यूँ तो देवताओं, दानवों, सिद्धों, साधकों, भक्तों, योगियों, कवियों और कलाकारों सभी के आराध्य महादेव हैं लेकिन गृहस्थों के सबसे आदर्श देवता हैं। जगत में एकमात्र शिव हैं जिनकी गृहस्थी परम सुख व शांति से परिपूर्ण होकर मङ्गलमय है। यही कारण है कि हम सभी सांसारिक गृहस्थ अपनी गृहस्थी में मङ्गल के लिए शिवजी और भगवती पार्वती की शरण लेते हैं। कुवाँरी कन्याएँ मनोवांछित वर तथा सुहागिनें अखण्ड सुहाग के लिए शिव-पार्वती से जुड़े ही व्रतों को करती है और अपने दाम्पत्य को आनन्दित एवं घर-आँगन को आलोकित करती है।
🔱🕉️सृजन का पर्व महाशिवरात्रि
🕉️🔱पर्व का अर्थ ही मिलना है। महाशिवरात्रि शिव व पार्वती के मिलन के प्रतीक से पुरुष और प्रकृति के मिलन का महापर्व है। शिवजी आदि, अनादि, अजन्मा और अयोनिज होकर स्वयंभू हैं तथा देवी पार्वती आद्य शक्ति। इन दोनों के प्राकट्य की कोई तिथि नहीं है मगर इनके मिलन की तिथि महाशिवरात्रि अवश्य लोक प्रसिद्ध है। यह सृजन का प्रतीक है। शिव सिखाते हैं गृहस्थी सृजन से, मिलन से, पर्व से महकती है। लिङ्ग रूप में शिव की पूजा परम्परा और जलाधारी भी मिलन के इसी प्रतीक की अभिव्यक्ति है।
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