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सन्तुलित नहीं है देश की आर्थिक दशा: साध्वी कनकप्रभा

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सन्तुलित नहीं है देश की आर्थिक दशा: साध्वी कनकप्रभा
-कहा, भगवान महावीर के दर्शन में विसर्जन
-तेरापंथ धर्म संघ की अष्टम् असाधारण साध्वी प्रमुखा हैं कनकप्रभा

प्रधान संपादक योगेश

गुरुग्राम। तेरा पंथ की मुख्य साध्वी प्रमुखा कनकप्रभा ने कहा कि आज देश की आर्थिक दशा सन्तुलित नहीं है। एक ओर अमीरी का प्रदर्शन तथा दूसरी ओर गरीबी की यातनायें। अमीरी और गरीबी के संघर्ष से दो वर्गों की निष्पत्ति हुई है। एक वर्ग दूसरे पर दोषारोपण करता है और दूसरा वर्ग प्रतिपक्षी की भूलें दोहराता है। यह बात उन्होंने अखिल भारतीय महिला मंडल के अमृत महोत्सव कार्यक्रम के तहत जूम ऐप पर गुरुग्राम महिला मंडल को प्रवचन करते हुए कही। यह कार्यक्रम 31 जनवरी तक चलेगा।  
अपने वक्तव्य में जैन साध्वी कनकप्रभा ने कहा कि आर्थिक समस्या को समाधान देने के लिए हिंसात्मक पद्धतियां काम में आ रही हैं। सत्याग्रह, अनशन, असहयोग आन्दोलन, अवज्ञा आन्दोलन आदि अहिंसानिष्ठ प्रयोगों में हिंसा उभर रही है। कुछ असामाजिक तत्वों के नेतृत्व में कर्मकर वर्ग हिंसा पर उतारू हो रहा है। चारों ओर नक्सलपंथियों का आतंक छा रहा है। इस विषम परिस्थिति में मनुष्य शान्ति के लिए उत्सुक है। शान्ति यदि कहीं है तो आदमी के मन में है। मानसिक शान्ति को उपेक्षित करके बाह्य जगत में भटक रहा है। मनुष्य की सबसे बड़ी भूल यही है। इस भूल का समाधान है विसजन।
पिछले पचास वर्षों से नारी चेतना को जागृत करने का कार्य कर रहीं साध्वी कनकप्रभा ने समाज को जागृत करते हुए कहा है कि विसर्जन अपने लिए किया जाता है। इसका प्रासंगिक फल समाज को मिलता है। इससे आत्महित के साथ सामाजिक समस्याओं का समाधान मिलता है। व्यक्तिगत स्वामित्व के विस्तार की इच्छा का विसर्जन ही लोकैषणा का विसर्जन है। अभ्यास की भूमिका पर वस्तुओं का विसर्जन भी किया जाता है।
उन्होंने कहा कि भगवान महावीर ने विसर्जन का प्रकार और उसका फलित बताते हए कहा है कि वंता लोगस्स, संजोगं, जंति वीरा महाजाणं। लोक संयोग का त्याग करने वाले वीर महायान (निर्वाण) प्राप्त करते हैं। विसर्जन का यह प्रकार नैतिक, आध्यात्मिक और सामाजिक सभी दृष्टियों से महत्वपूर्ण है। साध्वी कनकप्रभा ने कहा कि किसी भी चीज को देखना पाप नहीं है। पाप है उसमें आकण्ठ निमग्न होना। सुनना बुरा नहीं है, बुराई है राग-द्वेषमूलक मन की प्रवृत्ति। स्पर्श, रस और घ्राण की भी यही स्थिति है। मनुष्य अपनी इच्छाओं का विसर्जन करना सीख ले तो आसक्ति स्वयं कम हो जाती है।

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