मातृशक्ति का सनातन संस्कृति में सर्वोच्च महत्व: शंकराचार्य नरेंद्रानंद
मातृशक्ति का सनातन संस्कृति में सर्वोच्च महत्व: शंकराचार्य नरेंद्रानंद
जीवन का प्रवाह और प्राण शक्ति का स्रोत मातृशक्ति मातृशक्ति के चार स्वरूप गीता गंगा गायत्री गौ माता फतह सिंह उजाला
गुरुग्राम । म०प्र० के कटनी जनपदान्तर्गत बरही (श्री पूर्णेश्वरी माता मन्दिर-सन्दीप कालोनी) में श्रीमद्देवीभागवत् कथा ज्ञानयज्ञ के शुभारम्भ पर अपना आशीर्वचन प्रदान करने हेतु पधारे श्री काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने कहा कि मातृशक्ति का सनातन संस्कृति में सर्वोच्च महत्व है | हमारी संस्कृति कहती है कि-
“यत्र नार्यस्तु पूज्यन्ते, रमन्ते तंत्र देवता ” | यह जानकारी शंकराचार्य के निजी सचिव के द्वारा मीडिया के साथ सांझा की गई है।
जीवन का प्रवाह, हमारी प्राणशक्ति का स्रोत मातृशक्ति ही है | ब्रह्माण्ड के हर तत्व में निहित और हर तत्व की सृजनकर्ता मातृशक्ति ही है | इसलिए सनातन धर्म के अनुसार मातृशक्ति को सच्चिदानन्दमय ब्रह्मस्वरूप भी कहा गया है | इसके बिना किसी भी ईश्वरीय तत्व का उद्भव सम्भव ही नहीं है | मातृशक्ति को आद्यशक्ति भी कहा गया है | माँ भगवती का हर स्वरूप अध्यात्म के मूल तत्वों- ज्ञान, सेवा, पराक्रम, समृद्धि, परमानन्द, त्याग, ध्यान और सृजन शक्ति का अवतरण है | मातृशक्ति के चार स्वरूप-गीता, गंगा, गायत्री और गौ माता हैं |
पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने कहा कि आद्यशक्ति माँ भगवती की साधना को जीवन में धारण कर मनुष्य अपनी क्षुद्रताओं से परे जाकर अपने इष्ट के देवत्व से एकाकार कर सकता है | हम सभी आद्यशक्ति माँ भगवती की संतान हैं | हम सभी में एक ही चेतना है, एक ही प्राण हैं | हमारे किसी भी भेद से कष्ट माँ भगवती को ही होगा | ऐसा इसलिए, क्योंकि उसने हमें इस पावन धरा पर आपसी प्रेम व भाईचारे का अनुपम संदेश हर जगह फैलाने के लिए भेजा है | यही राष्ट्र साधना है | आधुनिक समय में भारतवासियों ने माता के महत्व और शक्ति को विस्मृति के तिमिर में विलुप्त कर दिया | जब तक भारत में मातृशक्ति का मान-सम्मान और आदर करता रहा, तब तक भारत समस्त संसार का मुकुटमणि रहा | इतिहास में दृष्टि डालें तो माता का ही महत्त्व दिखायी देगा | हर एक वीर ने, प्रत्येक वीरांगना ने मातृभूमि के लिये तन, मन, धन सब कुछ न्यौछावर कर दिया | रानी दुर्गावती यद्दपि असहाय अबला स्त्री थीं, किन्तु वीर माता की पुत्री ने माता का दूध पीकर ही दो बार यवनों को युद्ध में पराजित किया था, और अन्त में लड़ते-लड़ते ही प्राण त्याग दिये थे | इस अवसर पर स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती, कथा व्यास डा० प्रभाकर त्रिपाठी, कामता तिवारी, भोलेनाथ तिवारी, सन्दीप अग्रवाल, बंस गोपाल तिवारी सहित अन्य महानुभाव उपस्थित थे |
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