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जो धैर्यवान है और परिश्रम से नहीं घबराता, सफलता उसकी दासी बन जाती है.

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जो धैर्यवान है और परिश्रम से नहीं घबराता, सफलता उसकी दासी बन जाती है. ———— संतोष————-
लाभ से लोभ और लोभ से पाप बढ़ता है. पाप के बढ़ने से धरती रसातल मे जाता है. धरती अर्थात् मानव समाज दुःख रुपी रसातल मे जाता है.

हिरण्याक्ष का अर्थ है संग्रह वृत्ति.

हिरण्यकशिपु का अर्थ है भोग वृत्ति.

हिरण्याक्ष ने बहुत एकत्रित किया, अर्थात् धरती को चुरा कर रसातल मे छिपा दिया.

हिरण्यकशिपु ने बहुत कुछ उपभोग किया. अर्थात् स्वर्गलोक से नागलोक तक सबको परेशान किया अमरता प्राप्त करने का प्रयास किया.

भोग बढ़ता है तो पाप बढ़ता है. जब से लोग मानने लगे है कि रुपये पैसे से ही सुख मिलता है, तब से जगत में पाप बढ़ गया है, केवल धन से सुख नहीं मिलता.

हिरण्याक्ष एवं हिरण्यकशिपु लोभ के ही अवतार है. जिन्हें मारने हेतु भगवान को वाराह एवं नृसिंह दो अवतार लेना पड़ा क्योंकि लोभ को पराजित करना बड़ा दुष्कर है.

जबकि काम अर्थात् रावण एवं कुम्भकर्ण, तथा क्रोध अर्थात् शिशुपाल एवं दन्तवक्त्र के वध हेतु एक एक अवतार राम एवं कृष्ण लेना पड़ा.

वृद्धावस्था मे तो कई लोगो को ज्ञान हो जाता है, किन्तु जो जवानी में सयाना बन जाय वही सच्चा सयाना है.

शक्ति क्षीण होने पर काम को जीतना कौन सी बड़ी बात है? कोई कहना न माने ही नही तो बूढ़े का क्रोध मिटे तो क्या आश्चर्य ❓⁉️

कहा गया है – अशक्ते परे साधुना. लोभ तो बृद्धावस्था में भी नहीं छूटता. सत्कर्म में विघ्नकर्ता लोभ है,

अतः सन्तोष द्वारा उसे मारना चाहिए. लोभ सन्तोष से ही मरता है.

अतः जाही बिधि राखे राम. वाही बिधि रहिए.

लोभ के प्रसार से पृथ्वी दुःखरुपी सागर में डूब गयी थी. तब भगवान ने वाराह अवतार ग्रहण करके पृथ्वी का उद्धार किया.

वराह भगवान संतोष के अवतार हैं. वराह : वर+अह, वर अर्थात श्रेष्ठ. अह का अर्थ है दिवस. कौन सा दिवस श्रेष्ठ है ❓⁉️

जिस दिन हमारे हाथो कोई सत्कर्म हो जाय वही दिन श्रेष्ठ है. जिस कार्य से प्रभू प्रसन्न हों, वही सत्कर्म है. सत्कर्म को ही यज्ञ कहा जाता है.

समुद्र में डूबी पृथ्वी को वराह भगवान ने बाहर तो निकाला, किन्तु अपने पास न रखकर मनु को अर्थात् मनुष्यों को सौंप दिया.

जो कुछ अपने हाथो मे आये उसे अभावग्रस्त को दिया जाय यही सन्तोष है.

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