विश्व स्ट्रोक दिवस पर शारदाकेयर हेल्थसिटी ने लॉन्च की समर्पित स्ट्रोक क्लिनिक
- क्लिनिक के साथ शुरू हुआ कॉम्प्रिहेंसिव रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम
- मरीजों की सहायता और देखभाल के लिए स्ट्रोक प्रोटोकॉल भी लॉन्च किए गए
Chief Editor Yogesh Jangar
ग्रेटर नोएडा,: विश्व स्ट्रोक दिवस के अवसर पर, उत्तर भारत के प्रमुख मल्टीस्पेशियलिटी अस्पताल शारदाकेयर हेल्थसिटी ने स्ट्रोक मरीजों की बेहतर रिकवरी और लंबे समय तक बेहतर जीवन गुणवत्ता के लिए समर्पित स्ट्रोक क्लिनिक और कॉम्प्रिहेंसिव स्ट्रोक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम की शुरुआत की।
इस पहल का उद्देश्य मरीजों को एकीकृत, बहु-विशेषज्ञ (multidisciplinary) देखभाल प्रदान करना है — जिसमें न्यूरोलॉजिस्ट, मनोवैज्ञानिक, फिजियोथेरेपिस्ट और रिहैबिलिटेशन विशेषज्ञ मिलकर काम करेंगे ताकि मरीजों को संपूर्ण इलाज और तेज़ रिकवरी मिल सके। इस कार्यक्रम का नेतृत्व डॉ. आतमप्रीत सिंह, सीनियर डायरेक्टर और हेड, न्यूरोलॉजी, शारदाकेयर हेल्थसिटी द्वारा किया जा रहा है।
अस्पताल ने इस अवसर पर एक जागरूकता सेमिनार का भी आयोजन किया, जिसमें शहर भर के 25 से अधिक डॉक्टरों ने भाग लिया। इस सेमिनार में स्ट्रोक की पहचान, रोकथाम, इलाज और इलाज के बाद की देखभाल पर चर्चा की गई।
भारत में हर 20 सेकंड में एक व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक होता है, यानी हर साल लगभग 18 लाख नए मामले सामने आते हैं। स्ट्रोक देश में मृत्यु और विकलांगता के प्रमुख कारणों में से एक है, लेकिन लोगों में इसकी रोकथाम और समय पर इलाज को लेकर जागरूकता अब भी कम है। साथ ही, स्ट्रोक के बाद की रिहैबिलिटेशन को लेकर मरीजों और उनके परिवारों में पर्याप्त जानकारी की कमी है, जिससे रिकवरी में बाधा आती है। इसी को ध्यान में रखते हुए, स्ट्रोक क्लिनिक के साथ-साथ स्ट्रोक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम भी चलाया जाएगा। यह क्लिनिक सोमवार से शुक्रवार, दोपहर 2 बजे से शाम 5 बजे तक खुलेगी और 24×7 उपलब्ध टीम मरीजों को समन्वित और निरंतर देखभाल सुनिश्चित करेगी।
स्ट्रोक के बढ़ते मामलों पर प्रकाश डालते हुए डॉ. आतमप्रीत सिंह, सीनियर डायरेक्टर और हेड, न्यूरोलॉजी, शारदाकेयर हेल्थसिटी ने कहा — “ब्रेन स्ट्रोक किसी को भी हो सकता है — उम्र, लिंग, शिक्षा या आर्थिक स्थिति की परवाह किए बिना। स्ट्रोक में समय सबसे कीमती होता है — अगर इलाज 4.5 घंटे के भीतर हो जाए तो परिणाम काफी बेहतर होते हैं। हर सेकंड में लाखों न्यूरॉन्स नष्ट होते हैं, इसलिए अस्पताल तक जल्द पहुंचना बहुत जरूरी है। स्ट्रोक को पहचानने के आसान संकेत हैं B.E.F.A.S.T. — Balance (संतुलन बिगड़ना), Eyes (दृष्टि धुंधलाना या देख पाने में दिक्कत), Face (चेहरे का टेढ़ा होना), Arm (हाथ-पैर में कमजोरी), Speech (बोलने में परेशानी) और Time (फौरन कार्रवाई करें)। पिछले 15–20 वर्षों में युवा लोगों में स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़े हैं। इसके पीछे मुख्य कारण हैं — बैठे रहने की आदत, मोटापा, गलत खानपान, धूम्रपान और शराब का सेवन। बेहतर डायग्नोस्टिक तकनीक और जागरूकता से अब पहले से जल्दी पहचान भी हो पा रही है। भारत में इस्केमिक स्ट्रोक (रक्त के थक्के से होने वाला स्ट्रोक) सबसे आम है, लेकिन केवल 1% मरीजों को ही IV थ्रोम्बोलाइसिस यानी 4.5 घंटे के अंदर दिया जाने वाला क्लॉट-बस्टिंग इंजेक्शन मिल पाता है। स्ट्रोक के लक्षण पहचानना बेहद जरूरी है, खासकर इंट्रासेरेब्रल हैमरेज (मस्तिष्क में रक्तस्राव) जैसे मामलों में, जो स्ट्रोक का सबसे घातक रूप है। हाई ब्लड प्रेशर (हाइपरटेंशन) अभी भी हेमरेजिक स्ट्रोक का सबसे बड़ा जोखिम कारक है।”
स्ट्रोक के इलाज में हो रही प्रगति पर बात करते हुए डॉ. सिंह ने कहा — “तकनीकी प्रगति ने स्ट्रोक की पहचान और इलाज में क्रांतिकारी बदलाव लाया है। अब MRI और AI आधारित तकनीकें स्कैन समय को 7–10 मिनट से घटाकर केवल 3–4 मिनट में कर देती हैं, जिससे ब्रेन डैमेज का स्पष्ट और तेज आकलन संभव हुआ है. मैकेनिकल थ्रॉम्बेक्टॉमी, जिसमें एक डिवाइस की मदद से धमनियों में जमा थक्का निकाला जाता है, बड़ी धमनियों वाले स्ट्रोक मरीजों के इलाज में क्रांतिकारी साबित हुई है। इन नई तकनीकों और समय पर इलाज से मरीजों की रिकवरी और जीवन की गुणवत्ता दोनों बेहतर हो रही हैं।”
स्ट्रोक के बाद रिहैबिलिटेशन की भूमिका पर प्रकाश डालते हुए डॉ. धरम पांडे, डायरेक्टर, डिपार्टमेंट ऑफ फिजियोथेरेपी एंड रिहैबिलिटेशन साइंसेज, ने कहा — “स्ट्रोक का इलाज सिर्फ आपातकालीन उपचार तक सीमित नहीं है — यह लंबी रिहैबिलिटेशन और समग्र रिकवरी का हिस्सा है। शारदाकेयर हेल्थसिटी में हमारा कॉम्प्रिहेंसिव स्ट्रोक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम पारंपरिक थेरेपी को नई पीढ़ी की तकनीकों के साथ जोड़ता है, जैसे रोबोटिक्स-असिस्टेड रिहैबिलिटेशन, इनर्शियल स्ट्रेंथनिंग सिस्टम, और वर्चुअल रियलिटी आधारित गेमिफाइड ट्रेनिंग, जिससे मरीज की भागीदारी और मोटर रिकवरी में सुधार होता है। हमारे सेंसर-आधारित एक्सरसाइज सिस्टम और 3D मोशन एनालिसिस टेक्नोलॉजी रीयल-टाइम फीडबैक देती हैं, जिससे थेरेपिस्ट हर मरीज के लिए सटीक और व्यक्तिगत थेरेपी प्लान बना पाते हैं। इसके अलावा, फ़ंक्शनल इलेक्ट्रिकल स्टिमुलेशन (FES) और इलेक्ट्रोमायोग्राफी (EMG) बायोफीडबैक तकनीकें नसों और मांसपेशियों की कार्यक्षमता दोबारा सक्रिय करने, बोलने में कठिनाई (dysphasia) और मानसिक रिकवरी में मदद करती हैं। इन तकनीकों से स्ट्रोक रिहैबिलिटेशन अधिक मापनीय, इंटरएक्टिव और परिणाम-उन्मुख बनता है — जिससे मरीज तेजी से ताकत, कार्यक्षमता और स्वतंत्रता हासिल कर पाते हैं।”
इस पहल पर टिप्पणी करते हुए श्री ऋषभ गुप्ता, मैनेजिंग डायरेक्टर, शारदाकेयर हेल्थसिटी ने कहा —
“शारदाकेयर हेल्थसिटी में हम स्ट्रोक रिकवरी को केवल आपातकालीन देखभाल नहीं, बल्कि एक निरंतर यात्रा मानते हैं। हमारा नया स्ट्रोक क्लिनिक और व्यापक रिहैबिलिटेशन प्रोग्राम हमारे उन्नत, मरीज-केंद्रित और तकनीक-आधारित इलाज के प्रति समर्पण का प्रतीक है। हमारा फिजियोथेरेपी और रिहैबिलिटेशन विभाग नवीनतम न्यूरो-रिहैबिलिटेशन सिस्टम्स से सुसज्जित है और इसमें न्यूरोफिजियोथेरेपिस्ट, ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट, स्पीच और लैंग्वेज थेरेपिस्ट, तथा ऑर्थोटिस्ट जैसे विशेषज्ञ शामिल हैं, जो अनुभवी न्यूरोलॉजिकल रिहैबिलिटेशन विशेषज्ञों के मार्गदर्शन में काम करते हैं। यह एकीकृत ‘वन-रूफ’ मॉडल मरीजों को व्यक्तिगत, गहन और लक्ष्य-उन्मुख पुनर्वास प्रदान करता है, जिससे स्ट्रोक सर्वाइवर अपनी गतिशीलता, आत्मविश्वास और जीवन की गुणवत्ता वापस पा सकें।”
