क्रांतिकारी पृथ्वी सिंह आज़ाद 15 सितम्बर जन्मोत्सव .
क्रांतिकारी पृथ्वी सिंह आज़ाद 15 सितम्बर जन्मोत्सव .
बाबा पृथ्वी सिंह आज़ाद भारत के स्वतंत्रता सेनानी तथा गदर पार्टी के संस्थापक में से एक थे. स्वतंत्रता के पश्चात् वे पंजाब के भीमसेन सचर सरकार में मन्त्री रहे. वे भारत की पहली संविधान सभा के भी सदस्य रहे. सन् 1977 में भारत सरकार ने उन्हें पद्मभूषण से अलंकृत किया.
पृथ्वी सिंह को ज़िन्दा शहीद भी कहा जाता है. उन्हें लाहौर षड्यंत्र केस में फांसी की सज़ा सुनाई गई थी जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. स्वतंत्रता संग्राम में उन्हें कई बार जेल जाना पड़ा. उन्हें सेल्युलर जेल में रखा गया था.
उनकी लेनिन के देश में नामक पुस्तक बहु चर्चित पुस्तकों में से एक है. आज़ादी के बाद भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी के मुख्यालय अजय भवन में जीवन पर्यन्त रहे. 5 मार्च, 1989 को 96 वर्ष की उम्र में उनका शरीर शांत हो गया.
भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में अपना सर्वस्व न्यौछावर कर देने वाले कुछ ऐसे क्रांतिकारी भी रहे, जिन्हें आजादी मिलने के बाद या तो भुला दिया गया या फिर उनके बारे में कहीं कोई जानकारी दर्ज थी ही नहीं, इसलिए देश उन्हें भूल गया. ऐसे ही क्रांतिवीर थे पृथ्वीसिंह आजाद, जिनके बारे में छुटपुट जानकारी ही देश के सामने आ सकी.
बाबा पृथ्वीसिंह आजाद ऐसे क्रांतिवीर थे, जिनके जीवन का प्रत्येक क्षण देश की स्वतंत्रता के लिए अर्पित था. 15 सितंबर 1892 को पंजाब के सर्कपुर टावर, जिला अम्बाला में जन्मे, पृथ्वीसिंह आजाद कुछ कमाने के लिए कई देशों की यात्रा करते हुए अमेरिका पहुंचे थे. वहां वे भारत की आजादी के लिए लड़ रही ‘गदर पार्टी’ में शामिल हो गए.
गदर पार्टी के आह्वान पर वे अपने साथियों के साथ वापस भारत लौटे और अम्बाला की सैनिक छावनियों में भारतीय सैनिकों को अंग्रेजों के विरुद्ध विद्रोह करने की प्रेरणा देने लगे. दुर्भाग्य से 8 दिसम्बर 1914 को उन्हें बंदी बनाकर लाहौर की सेंट्रल जेल भेज दिया गया. उन्हें लाहौर षड्यंत्र केस में अन्य कई क्रांतिकारियों के साथ अभियुक्त बनाया गया.
न्यायालय ने उक्त केस में 24 क्रांतिकारियों को फांसी का दंड घोषित किया. उन क्रांतिकारियों में बाबा पृथ्वीसिंह आजाद भी थे. उस समय जेल में फांसी देने के बाद शवों को नहलाया नहीं जाता था. जेल परिसर में जेल के ही कर्मचारियों द्वारा शव को जला दिया जाता था.
अतः राजबंदियों की मांग थी कि जिस दिन हमें फांसी दें, उसके पहले स्नान करने की व्यवस्था करें. मगर क्रूर अंग्रेजी शासक क्रांतिकारियों को मानसिक प्रताड़ना देने का कोई मौका छोड़ना नहीं चाहते थे.
जेल में बाबा पृथ्वीसिंह आजाद की कोठरी के सामने रोज एक बाल्टी पानी रख दिया जाता था. क्रांतिकारियों को लगता था कि आज उन्हें फांसी दी जाएगी. ऐसी मानसिक क्रूरता लगातार 14 दिनों तक की गई. किंतु इससे न तो बाबा पृथ्वीसिंह आजाद डिगे, न ही कोई अन्य क्रांतिकारी.
हम सभी को व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना का परित्याग कर राष्ट्र के नव निर्माण में अपना सर्वोत्तम कर्त्तव्य कर्म करने का यत्न करना चाहिए .
मैं अपने कृतित्व और व्यक्तित्व से समाज की भावी पीढ़ी को संस्कारित करके अपने मानव होने की जिम्मेदारी ईमानदारीपूर्वक निभा रहा हूँ .
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