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मैडम भीकाजी कामा 13 अगस्त 1936 पुण्य-तिथि.

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मैडम भीकाजी कामा 13 अगस्त 1936 पुण्य-तिथि.
भीखाजी जी रूस्तम कामा अथवा मैडम कामा भारतीय मूल की पहली फ्रांसीसी नागरिक थीं जिन्होंने दुनिया के विभिन्न देशों में जाकर भारत के स्वतंत्रता के पक्ष में माहौल बनाने का कार्य किया।

मैडम कामा ने जर्मनी के स्टटगार्ट शहर में 22 अगस्त 1907 में अंतर्राष्ट्रीय समाजवादी सम्मेलन और आकर्षण का केंद्र थी मैडम कामा, उन्होंने अपने बैग से स्टैंड सहित भारतीय झण्डा निकालकर टेबल पर रखा और कहा कि बोलने से पूर्व मैं अपने देश का झण्डा फहराती हूँ, उनके भाषण की समाप्ति पर सभाभवन तालियों की गड़गड़ाहट से गूँज उठा।

भीकाजी कामा का जन्म 24 सितम्बर 1861 को बम्बई में एक पारसी परिवार में हुआ था। मैडम कामा के पिता प्रसिद्ध व्यापारी थे। इनके पिता का नाम सोराबजी पटेल था। भीखाजी के नौ भाई-बहन थे। उनका विवाह 1885 में एक पारसी समाज सुधारक रुस्तम जी कामा से हुआ था।

उन्होंने अपनी शिक्षा एलेक्जेंड्रा नेटिव गल्र्स संस्थान में प्राप्त की थी और वह शुरू से ही तीव्र बुद्धि वाली और संवेदनशील थी।

वे हमेशा ब्रिटिश साम्राज्य विरोधी गतिविधियों में लगी रहती थी। वर्ष 1896 में मुम्बई में प्लेग फैलने के बाद भीकाजी ने इसके मरीजों की सेवा की थी। बाद में वह खुद भी इस बीमारी की चपेट में आ गई थीं। इलाज के बाद वह ठीक हो गई थीं लेकिन उन्हें आराम और आगे के इलाज के लिए यूरोप जाने की सलाह दी गई।

वर्ष 1906 में उन्होंने लन्दन में रहना शुरू किया जहां उनकी मुलाक़ात प्रसिद्ध भारतीय क्रांतिकारी श्यामजी कृष्ण वर्मा, हरदयाल और वीर सावरकर से हुई। लंदन में रहते हुए वह दादाभाई नवरोजी की निची सचिव भी थीं। दादाभाई नोरोजी ब्रिटिश हाउस ऑफ़ कॉमन्स का चुनाव लड़ने वाले पहले एशियाई थे। जब वो हॉलैंड में थी, उस दौरान उन्होंने अपने साथियों के साथ मिलकर क्रांतिकारी रचनाएं प्रकाशित करायी थी और उनको लोगों तक पहुंचाया भी।

वे जब फ्रांस में थी तब ब्रिटिश सरकार ने उनको वापस बुलाने की मांग की थी पर फ्रांस की सरकार ने उस मांग को खारिज कर दिया था। इसके पश्चात ब्रिटिश सरकार ने उनकी भारतीय संपत्ति जब्त कर ली और भीखाजी कामा के भारत आने पर रोक लगा दी। उनके सहयोगी उन्हें भारतीय क्रांति की माता मानते थे.

भीकाजी ने वर्ष 1905 में अपने सहयोगियों विनायक दामोदर सावरकर और श्यामजी कृष्ण वर्मा की मदद से भारत के ध्वज का पहला डिजाइन तैयार किया। भीका जी ने लिंग समानता के लिए भी कार्य किया था। भीकाजी कामा ने 22 अगस्त 1907 को जर्मनी में हुई इंटरनेशनल सोशलिस्ट कांफ्रेंस में भारतीय स्वतंत्रता के ध्वज को बुलंद किया था।

उनके सम्मान में भारत में कई स्थानों और गलियों का नाम उनके नाम पर रखा गया है। 26 जनवरी 1962 में भारतीय डाक ने उनके समर्पण और योगदान के लिए उनके नाम का डाक टिकट जारी किया था। भारतीय तटरक्षक सेना में जहाजों का नाम भी उनके नाम पर रखा गया था।

देश की सेवा और स्वतंत्रता के लिए सब कुछ कुर्बान कर देने वाली इस महान महिला की मृत्यु 13 अगस्त 1936 में मुम्बई के पारसी जनरल अस्पताल में हुयी। उस वक्त उनके मुख से निकले आखिरी शब्द थे। वंदे मातरम्

हम सभी को व्यक्तिगत स्वार्थ की भावना का परित्याग कर राष्ट्र के नव निर्माण में अपना सर्वोत्तम कर्त्तव्य कर्म करने का यत्न करना चाहिए।

मैं अपने कृतित्व और व्यक्तित्व से समाज की भावी पीढ़ी को संस्कारित करके अपने मानव होने की जिम्मेदारी ईमानदारीपूर्वक निभा रहा हूँ ।
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