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सहमति यदि हो तो आसानी से हो सकता है विवाह विच्छेद, जानिए तलाक के लिए अपनाए जाने वाली कानूनी प्रक्रिया

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सहमति यदि हो तो आसानी से हो सकता है विवाह विच्छेद, जानिए तलाक के लिए अपनाए जाने वाली कानूनी प्रक्रिया

जागरूक नागरिक उज्ज्वल भविष्य भारत का
हरिओम विश्वकर्मा एडवोकेट जालौन

तलाक और पुनर्विवाह
अभी हाल ही में पूर्व क्रिकेटर अरुण लाल ने दूसरी शादी की है. 66 वर्षीय अरुण लाल ने अपने से 28 साल छोटी बुलबुल साहा के साथ शादी की है. इस शादी में उनकी पहली पत्नी की सहमति भी शामिल है. उन्होंने पहली शादी रीना से की थी. हालांकि बाद में दोनों में तलाक हो गया था. उनकी तबीयत भी बहुत खराब रहती है. उन्होंने रीना की मर्जी के बाद ही दूसरी शादी की है.

विवाह एक पवित्र बंधन
सनातनी धर्म में विवाह एक संस्कार और पवित्र रिश्ता होता है। शादी जहां दो व्यक्ति का मिलन होता है, वहीं तलाक (Divorce) दोनों व्यक्तियों के बीच अलगाव. भारत में हिंदू विवाह एक धार्मिक प्रक्रिया भी है और एक कानूनी प्रक्रिया भी, जो हिंदू मैरिज एक्ट 1955 ( Hindu Marriage Act Of 1955 ) के तहत आता है. कई बार आपसी मनमुटाव, वैचारिक मतभेद, रोज-रोज के झगड़े इतने बढ़ जाते हैं कि बात तलाक तक आ पहुंचती है.

विवाह विच्छेद
किसी रिश्ते में यदि पति और पत्नी एक दूसरे के साथ खुश नहीं हैं और अलग होना चाहते हैं तो कानून में इसके लिए तलाक का प्रावधान है. जरूरी नहीं कि हर बार झगड़ों की वजह से ही तलाक लिए जाएं. इसके पीछे करियर, अलग जीवनशैली वगैरह भी कारण हो सकते हैं. ऐसे मामलों में आपसी सहमति से तलाक लिया जा सकता है.

आपसी सहमति से तलाक
आपसी सहमति से तलाक लेने की प्रक्रिया में दोनों पक्ष यानी पति और पत्नी दोनों अलग होने यानी तलाक का फैसला लेते हैं तो हिंदू मैरिज एक्ट, 1955 की धारा 13B (Hindu Marriage Act/Section 13 B) के तहत इसका प्रावधान किया गया है. हालांकि इसके लिए कुछ शर्तें निर्धारित हैं. आइए जानते हैं पूरी प्रक्रिया के बारे में.

हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के प्रावधान
हिंदू मैरिज एक्ट में शादी के अलावा तलाक का भी प्रावधान किया गया है. वर्ष 1976 तक इसमें आपसी सहमति से तलाक की व्यवस्था नहीं थी, लेकिन इसकी जरूरत समझे जाने के बाद 1976 में एक संशोधन किया गया. इस एक्ट में धारा 13 में सब-सेक्शन जोड़कर सहमति से तलाक की व्यवस्था की गई. धारा 13-बी में आपसी सहमति से तलाक के लिए सबसे अनिवार्य शर्त का जिक्र किया गया है. शर्त ये है कि जब दोनों पार्टनर को साथ रहना असंभव लगने लगे तो एक साल या उससे अधिक समय तक एक-दूसरे से अलग रह सकते हैं और फिर तलाक के लिए आवेदन कर सकते हैं.

आपसी सहमति से तलाक
दंपती एक साल या उससे ज्यादा समय से अलग रह रहे हों. दोनों पार्टनर यानी पति और पत्नी दोनों में साथ रहने पर कोई सहमति न हो.

अगर दोनों पक्षों में सुलह की कोई स्थिति न हो तो तलाक की अर्जी फाइल की जा सकती है.

दोनों पक्षों की ओर से तलाक की पहली अर्जी के बाद कोर्ट 6 महीने का समय दिया जाता है. इस दौरान कोई भी पक्ष अर्जी वापस ले सकता है.

नए नियमों के मुताबिक, इस 6 महीने की अवधि को कम करने के लिए आप आवेदन कर सकते हैं.

जांच-परख के बाद कोर्ट यह अवधि कम कर सकता है.

अर्जी के लिए कुछ जरूरी दस्तावेज
शादी का प्रमाण पत्र
पति और पत्नी का पता
दोनों के परिवार के बारे में जानकारी
विवाह की कुछ तस्वीरें
पिछले 3 वर्षों के इनकम टैक्स स्टेटमेंट
पेशे और आय का विवरण (सैलरी स्लिप, नियुक्ति पत्र)
संपत्ति का स्वामित्व और विवरण
एक वर्ष से अलग रहने के सबूत
ये बेसिक जरूरतें हैं.
इनके अलावा भी संबंधित डॉक्यूमेंट लग सकते हैं.

पारिवारिक न्यायालय (फैमिली कोर्ट) में चलती है प्रक्रिया
सबसे पहले दोनों पक्षों की ओर से फैमिली कोर्ट में हस्ताक्षर की गई एक संयुक्त याचिका दायर की जाती है. इसमें दोनों पार्टनर का एक संयुक्त बयान होता है कि दोनों साथ नहीं रह सकते हैं और तलाक चाहते हैं. इस बयान में संपत्ति के बंटवारे और बच्चों की कस्टडी के बारे में भी आपसी समझौता शामिल होता है.
बयान दर्ज करने के बाद न्यायालय के सामने पेपर पर हस्ताक्षर किए जाते हैं. इसके बाद दोनों पक्ष को सुलह करने या मन बदलने के लिए 6 महीने का समय दिया जाता है. इन 6 महीने में दोनों पक्षों के बीच सहमति नहीं बनती है तो अंतिम सुनवाई के लिए दोनों उपस्थित होते हैं.
पहली याचिका डालने के 18 महीने के भीतर दूसरी याचिका डालनी पड़ती है. 18 महीने के भीतर दूसरा प्रस्ताव न लाने पर अदालत तलाक का आदेश पारित नहीं करती है. 18 महीने से ज्यादा होने पर फिर से पहली याचिका डालनी होगी.

अगर दूसरी याचिका के दौरान कोई एक पक्ष अर्जी वापस लेता है तो उस पर जुर्माना लगाया जा सकता है.

तलाक का आदेश पारित होने से पहले कोई पक्ष किसी भी समय अपनी सहमति वापस ले सकता है. ऐसे मामले में अगर पति और पत्नी के बीच कोई पूर्ण समझौता न हो या अदालत पूरी तरह से संतुष्ट न हो, तो तलाक का आदेश पारित नहीं करता है.

दोनों पक्षों में हर बिंदु पर आपसी सहमति की जांच-परख के बाद अदालत को ठीक लगे तो ही अंतिम चरण में तलाक का आदेश दिया जाता है.

संपत्ति में बंटवारा और बच्चों के संरक्षण का फैसला
आपसी सहमति से लिए गए तलाक में पति और पत्नी दोनों पक्ष को बच्चों के ​संरक्षण के मुद्दे को आपस में सुलझाने की जरूरत होती है. ऐसी स्थिति में माता-पिता में से किसी एक के पास बच्चे को रखने पर सहमति जरूरी है. दो बच्चे हों तो माता और पिता आपसी सहमति से फैसला कर सकते हैं. इसमें बच्चों की मर्जी शामिल हो तो और बेहतर है. सहमति नहीं बनने पर कोर्ट जाना होता है और मामला बहुत पेचीदा हो जाता है.

वहीं प्रॉपर्टी का मामला भी दोनों को आपसी सहमति से निपटाना पड़ता है. अगर पत्नी वर्किंग वुमन न हो और पति पर आश्रित हो तो उसे आपसी समझौते से गुजारा भत्ता दिए जाने पर सहमति जरूरी है. अन्यथा ये तय करने के लिए कानून की मदद भी ली जा सकती है.

तलाक के बाद ही दूसरी शादी मान्य
जानकारों के मुताबिक पहली पति या पत्नी से तलाक के बाद ही दूसरी शादी की जा सकती है. अभी हाल ही में पूर्व क्रिकेटर अरुण लाल ने दूसरी शादी की है. 66 वर्षीय अरुण लाल ने अपने से 28 साल छोटी बुलबुल साहा के साथ शादी की है. इस शादी में उनकी पहली पत्नी की सहमति भी शामिल है. उन्होंने पहली शादी रीना से की थी. हालांकि बाद में दोनों में तलाक हो गया था. उनकी तबीयत भी बहुत खराब रहती है. उन्होंने रीना की मर्जी के बाद ही दूसरी शादी की है. बता दें कि दोबारा शादी करने के लिए पहले पार्टनर से तलाक नहीं लेने पर व्यक्ति को दोषी माना जाता है. IPC की धारा 494 के तहत ऐसे व्यक्ति के लिए सजा का प्रावधान है.

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