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पाप करते समय परमात्मा की “दयालुता “

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आज के वैदिक विचार 🌷

पाप करते समय परमात्मा की “दयालुता “

जब मनुष्य दुष्कर्म की ओर तत्पर होता है तो दयालु एवं सर्वव्यापक परमात्मा उसके मन में भय, लजा, संकोच के भाव उत्पन्न करके मनुष्य को ऐसा कार्य न करने के लिए सतर्क कर देता है लेकिन मनुष्य अपने अन्दर विद्यमान काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि मानसिक रोगों के कारण ईश्वर की चेतावनी की अनदेखी कर देता है। इसके विपरीत जब मनुष्य कोई श्रेष्ठ धर्मयुक्त कार्य करने का निश्चय करता है तो सर्वान्तयांमी ईश्वर उसके हृदय में प्रसन्नता, उत्साह, गर्व, नम्रता का भाव भरकर ऐसा कार्य करने के लिए प्रेरित करता है।

सज्जनो! ईश्वर ने मनुष्य को कर्म स्वतंत्रता का अधिकार देकर अद्वितीय उपकार किया है। कर्म स्वतंत्रता का वरदान मनुष्य के सामने तीन रास्ते खोलता है :

( 1 ) मनुष्य योनि में श्रेष्ठ पुण्य कर्म करके देवयोनि प्राप्त करना अथवा योगाभ्यास व साधना द्वारा मुक्ति/मोक्ष पाना।

( 2 ) पाप कर्मों (कुकर्म, दुष्कर्म, भ्रष्टाचार, अन्याय हिंसा आदि) को अपेक्षा उत्तम कर्म, परोपकारी कर्म अधिक करना, पाप कर्म न करना और पुनः मनुष्य योनि प्राप्त करना।

( 3 ) नोच पाप रूपी कर्म करना अथवा पुण्य कर्मों की अपेक्षा अधिक पाप कर्म करना और मृत्यु के उपरान्त नोच योनियों में जाना।

आपके सामने तिराहा है, जिधर जाना है जाओ, क्योंकि ईश्वर ने कर्म करने की पूर्ण स्वतंत्रता आपको दे रखी है। उसने आपको कठपुतली बना कर सृष्टि में नहीं भेजा है। कोई आपको रोकेगा नहीं ईश्वर भी नहीं। हाँ! कर्म का फल देने का अधिकार ईश्वर ने अपने पास रखा है और पाप कर्म कभी भी क्षमा नहीं होते हैं।आइये! सोच समझकर कर्म करने का संकल्प लें और ईश्वर की चेतावनी पर ध्यान दें।

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