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मकर सक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने देह त्यागी   : शंकराचार्य नरेंद्रानंद                     

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मकर सक्रांति के दिन ही भीष्म पितामह ने देह त्यागी   : शंकराचार्य नरेंद्रानंद                     

 संगम में स्नान कर सनातन धर्म संस्कृति के शत्रुओं के उन्मूलन की कामना                               

मकर सक्रांति पर शुद्ध घी और काजल का दान मोक्ष प्राप्ति का मार्ग                     

पुराणों में मकर सक्रांति को देवताओं का दिन बताया गया                                   .                                                         

फतह सिंह उजाला                                   

गुरुग्राम ।    काशी सुमेरु पीठाधीश्वर अनन्त श्री विभूषित पूज्य जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी नरेन्द्रानन्द सरस्वती जी महाराज ने आज प्रात: मकर संक्रान्ति के पावन पर्व पर प्रयागराज त्रिवेणी संगम में स्नान कर राष्ट्र में सुख-शान्ति तथा सनातन धर्म, संस्कृति, परम्परा के शत्रुओं के समूल उन्मूलन की कामना से माँ गंगा का पूजन किया | इस अवसर पर पूज्य शंकराचार्य जी महाराज ने मकर संक्रान्ति के माहात्म्य के विषय में कहा कि शास्‍त्रों में मकर संक्रान्ति के दिन स्‍नान, ध्‍यान और दान का विशेष महत्‍व बताया गया है। पुराणों में मकर संक्रान्ति को देवताओं का दिन बताया गया है। इस दिन किया गया दान सौ गुना होकर वापस लौटता है। इस दिन शुद्ध घी एवम् कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है। यह जानकारी शंकराचार्य नरेंद्रानंद के निजी सचिव स्वामी बृजभूषण आनंद के द्वारा मीडिया से सांझा करते हुए दी गई है । प्रयागराज में गंगा स्नान के उपरांत शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज  मकर सक्रांति के महत्व और विस्तार से चर्चा करते हुए बताया महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रान्ति का ही चयन किया था। मकर संक्रान्ति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं |श्रीमद्भागवत एवम् देवी पुराण के अनुसार शनि महाराज का अपने पिता से वैर भाव था, क्योंकि सूर्य देव ने उनकी माता छाया को अपनी दूसरी पत्नी संज्ञा के पुत्र यमराज से भेद-भाव करते देख लिया था | इस बात से नाराज होकर सूर्य देव ने संज्ञा और उनके पुत्र शनि को अपने से अलग कर दिया था। इससे शनि और छाया ने सूर्य देव को कुष्ठ रोग का शाप दे दिया था | पिता सूर्यदेव को कुष्ट रोग से पीड़ित देखकर यमराज काफी दुखी हुए। यमराज ने सूर्यदेव को कुष्ठ रोग से मुक्त करवाने के लिए तपस्या की। लेकिन सूर्य ने क्रोधित होकर शनि महाराज के घर कुम्भ जिसे शनि की राशि कहा जाता है उसे जला दिया। इससे शनि और उनकी माता छाया को कष्ठ भोगना पड़ रहा था। यमराज ने अपनी सौतली माता और भाई शनि को कष्ट में देखकर उनके कल्याण के लिए पिता सूर्य को काफी समझाया। तब जाकर सूर्य देव शनि के घर कुम्भ में पहुँचे | कुम्भ राशि में सब कुछ जला हुआ था। उस समय शनि देव के पास तिल के अलावा कुछ नहीं था, इसलिए उन्होंने काले तिल से सूर्य देव की पूजा की। शनि की पूजा से प्रसन्न होकर सूर्य देव ने शनि को आशीर्वाद दिया कि शनि का दूसरा घर मकर राशि मेरे आने पर धन धान्य से भर जाएगा। तिल के कारण ही शनि को उनका वैभव फिर से प्राप्त हुआ था। इसलिए शनि देव को तिल प्रिय है। इसी समय से मकर संक्रान्ति पर तिल से सूर्यदेव एवम् शनि की पूजा का विधान शुरू हुआ। इस अवसर पर पूज्य शंकराचार्य जी महाराज के साथ विश्वगुरु स्वामी करुणानन्द सरस्वती, स्वामी बृजभूषणानन्द सरस्वती, स्वामी अभेदानन्द, विनोद कुमार त्रिपाठी, सुनील कुमार शुक्ल, वेद विद्यालय के बटुक आदि ने भी संगम स्नान किया ।

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