जगत कल्याण के लिए यज्ञ-अनुष्ठान का अपना महत्व: शंकराचार्य नरेंद्रानंद
जगत कल्याण के लिए यज्ञ-अनुष्ठान का अपना महत्व: शंकराचार्य नरेंद्रानंद
लक्षचंडी महायज्ञ में शामिल होने के लिए शंकराचार्य नरेंद्रानंद पहुंचे कुरुक्षेत्र
काशी सुमेरु पीठाधीश्वर शंकराचार्य नरेंद्र आनंद ने की सर्व कल्याण की कामना
भारतीय सनातन संस्कृति में धर्म नगरी कुरुक्षेत्र की अपनी विशेष पहचान
कुरुक्षेत्र में ही भगवान श्री कृष्ण ने जन कल्याण को दिया था गीता का ज्ञान
फतह सिंह उजाला
गुरुग्राम । जगत कल्याण के लिए यज्ञ-महायज्ञ जैसे अनुष्ठान का भारतीय सनातन संस्कृति में अनादि काल से अपना एक विशेष महत्व और स्थान रहा है । ऋषि-मुनियों से लेकर आज के भौतिक दौर में भी किए जाने वाले यज्ञ महायज्ञ जैसे अनुष्ठान के महत्व सहित उपयोगिता को दुनिया भर के वैज्ञानिक भी स्वीकार कर चुके हैं। यह बात काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य स्वामी नरेंद्रानंद सरस्वती महाराज के द्वारा कहीं गई । शंकराचार्य नरेंद्रानंद धर्म-कर्म नगरी कुरुक्षेत्र में आयोजित लक्षचंडी महायज्ञ के मौके पर विशेष रूप से पहुंचे थे। इस मौके पर निर्वाणी अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर स्वामी विवेकानंद भारती और टीकरमाफी आश्रम झूंसी के श्री हरि चौतन्य ब्रह्मचारी महाराज सहित अन्य प्रकांड विद्वान साधु संत भी मौजूद रहे ।
काशी सुमेरु पीठाधीश्वर जगतगुरु शंकराचार्य नरेंद्र आनंद सरस्वती महाराज में अपने कुरुक्षेत्र प्रवास के दौरान दूरभाष पर बताया कि कुरुक्षेत्र धर्म और कर्म के लिए जब तक ब्रह्मांड है और सूरज चांद मौजूद हैं, इसे याद किया जाता रहेगा । भगवान श्री कृष्ण ने अपना विराट स्वरूप इसी धर्मनगरी कुरुक्षेत्र की धरा पर दिखाते हुए विश्व के सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन को अपने विराट स्वरूप के दर्शन करवाए थे । इसके बाद ही कौरवों और पांडवों के बीच धर्म युद्ध भी हुआ था । यहां आगमन पर अपने आप को सौभाग्यशाली मांनते हुए उन्होंने कहा कुरुक्षेत्र में ब्रह्मसरोवर में स्नान कर सूर्य देवता को अर्घ्य अर्पित करना बहुत ही सौभाग्य और पुण्य का कार्य है । उन्होंने कहा सनातन धर्म में हवन-यज्ञ-महायज्ञ जोकि विभिन्न देवी देवताओं का आह्वान कर के संपूर्ण विधि विधान और मंत्रोच्चारण के साथ किए जाते हैं , उनका एकमात्र उद्देश्य जगत सहित प्रत्येक जीव का कल्याण ही होता है । इस प्रकार के आयोजन अनुष्ठान कभी भी व्यक्तिगत हित के लिए नहीं होते है। यज्ञ – महायज्ञ में विभिन्न प्रकार की जड़ी बूटियों कि जो आहुति अर्पित की जाती है, उससे पर्यावरण शुद्ध होता है और जब पर्यावरण शुद्ध होगा तो प्रत्येक जीव को शुद्ध पर्यावरण का लाभ भी मिलना तय है।
कुरुक्षेत्र में आयोजित लक्षचंडी महायज्ञ के मौके पर शंकराचार्य नरेंद्रानंद सरस्वती ने सभी का आह्वान किया कि भारतीय सनातन संस्कृति को अपनी आने वाली पीढ़ी तक पहुंचाने के लिए ऋषि मुनियों के द्वारा आरंभ की गई तमाम सनातन परंपराएं जीवित रखना हम सभी के जीवन का भी मुख्य लक्ष्य होना चाहिए। क्योंकि मानव जीवन का आधार ही धर्म और कर्म है । यही शिक्षा भगवान श्री कृष्ण के द्वारा धर्मनगरी कुरुक्षेत्र में भी दी गई । उन्होंने प्रत्येक जीव के कल्याण की कामना करते हुए कहा कि दीपावली त्योहार पर लक्ष्मी की कृपा सभी पर बनी रहे । जीवन यापन के लिए लक्ष्मी अथवा धन का होना बहुत जरूरी है। लेकिन जीवन में जो भी धन कमाया जाए यथा सामर्थ दोनों हाथों से जन कल्याण के लिए कुछ ना कुछ हिस्सा अवश्य दान भी करते रहना चाहिए और यज्ञ-हवन-महायज्ञ में शामिल होकर आहुतियां अर्पित करके अपने जीवन का कल्याण करते रहना चाहिये।
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